मुंबई : बॉम्बे हाईकोर्ट ने 18 साल की एक बलात्कार पीड़ित की गर्भपात के लिए दाखिल की गई याचिका पर कहा है कि वह गर्भ में पल रहे बच्चे के अधिकार पर भी विचार करेगा। पीड़ित ने 27 हफ्ते के गर्भ का अबॉर्शन कराने के लिए अदालत में अपील की है। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) एक्ट में अधिकतम 20 हफ्ते के गर्भ को ही गिराने की इजाजत है।
जस्टिस अभय ओका और महेश सोनक की बेंच आज बलात्कार पीड़ित की याचिका पर फैसला करेगा। बलात्कार की शिकार सतारा की एक कॉलेज छात्रा ने गर्भपात की इजाजत मांगी थी, जिसके बाद हाईकोर्ट ने इस मामले में एक मेडिकल पैनल गठित किया था। पीड़ित का कहना है कि जब वह नाबालिग थी, उस वक्त यौन शोषण की वजह से उसे गर्भवती होना पड़ा है।
बलात्कार पीड़ित ने याचिका में कहा है कि इस साल मार्च से मई के दौरान उसका यौन शोषण हुआ। इस दौरान आरोपी ने मामला उजागर करने पर उसे और उसके परिवार को जान से मारने की धमकी भी दी। मासिक धर्म रुकने पर पीड़ित ने 21 जुलाई को एक अस्पताल में जांच कराई, जहां डॉक्टरों ने बताया कि उसके गर्भ में 5 महीने का बच्चा है। 22 जुलाई को पीड़ित ने आरोपी के खिलाफ बलात्कार, आपराधिक धमकी और पॉक्सो एक्ट में एफआईआर दर्ज कराई।
अपनी याचिका में कॉलेज छात्रा ने कहा कि अदालत तक केस पहुंचने में इसलिए देरी हुई, क्योंकि उसके परिवार को एमटीपी एक्ट की कानूनी कार्यवाही के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। याचिका में पीड़ित ने कहा, अगर वह बच्चे को जन्म देती है, तो इससे उसे जिंदगी भर के लिए मानसिक आघात झेलना पड़ेगा। ऐसे में कोर्ट को अबॉर्शन की इजाजत दे देनी चाहिए।
4 सितंबर को इस मामले में सुनवाई करते हुए जजों ने ससून अस्पताल के डीन को एक मेडिकल बोर्ड बनाने के निर्देश दिए थे। साथ ही अदालत ने पीड़ित का मेडिकल परीक्षण करने को भी कहा। परीक्षण के बाद बोर्ड ने अबॉर्शन न कराने की रिपोर्ट सौंपी। जस्टिस ओका ने अपनी टिप्पणी में कहा, अगर वह प्रेग्नेंसी को खत्म करने के लिए अबॉर्शन कराती है, तो उसके जीवन को भी खतरा हो सकता है।
वहीं पीड़ित के वकील कुलदीप निकम ने अपनी दलील में कहा, पीड़ित को जीने का अधिकार है और इसमें सम्मान के साथ जीवन जीने का अधिकार शामिल है। जजों ने कॉलेज छात्रा की जिंदगी पर खतरे का जिक्र करते हुए निकम से पूछा कि अगर पीड़ित अबॉर्शन की इजाजत वाली अपनी याचिका वापस नहीं लेती है, तो हम मामले की सुनवाई करेंगे।
कोर्ट ने कहा कि चूंकि इस मामले में गर्भ में पल रहे बच्चे का अधिकार भी शामिल है, लिहाजा निष्कर्ष पर पहुंचना जरूरी है। हाईकोर्ट बेंच ने कहा कि मामले की सुनवाई चैंबर में की जाएगी, जहां जेजे अस्पताल और सेंट जॉर्ज अस्पताल के डॉक्टर भी मौजूद रहेंगे।