लखनऊ- इस समय जब दुनिया में कोरोना वायरस फैला हुआ है और लगातार मौतें हो रही हैं तो शनिवार को एक सवाल के जवाब में वरिष्ठ धर्मगुरू आयतुल्लाहिल उज़्मा सीस्तानी का इस बारे में फतवा आया है।
आयतुल्लाह सीस्तानी के कार्यालय से जारी होने वाले फ़तवे में कहा गया है कि रमज़ान का महीना क़रीब आ गया है और विश्व भर में कोरोना वायरस फैला हुआ है। कुछ डाक्टरों का कहना है कि थोड़ी थोड़ी देर से पानी पीना चाहिए इससे वायरस का ख़तरा कम हो जाता है जबकि बदन में पानी की कमी होने की स्थिति में इम्यून सिस्टम कमज़ोर होता है। कुछ डाक्टर कहते हैं कि यदि हलक़ सूखा हो तो वायरस को यह मौक़ा मिल जाता है कि वह सांस की नली में चला जाए और फेफड़े तक पहुंच जाए जबकि पानी पीते रहने से यह होगा कि वायरस सांस की नली के बजाए आंतों में चला जाएगा और वहां मौजूद एसिड उसे ख़त्म कर देगा। तो सवाल यह है कि इस साल रमज़ान के महीने में क्या रोज़ा रखना वाजिब नहीं है?
इसके जवाब में आयातुल्लाहिल उज़्मा सीस्तानी का कहना है कि रमज़ान के रोज़े हर इंसान पर व्यक्तिगत रूप से वाजिब हैं। जिस व्यक्ति के पास भी रोज़ा वाजिब होने की सारी परिस्थितियां मौजूद होंगी उस पर रोज़ा वाजिब होगा जबकि हो सकता है कि किसी दूसरे व्यक्ति के पास ज़रूरी परिस्थितियां न हों तो उस पर रोज़ा वाजिब न हो। अब अगर रमज़ान का महीना आ गया है और कोई मुसलमान व्यक्ति डर रहा है कि रोज़ा रखने की स्थिति में और दूसरी सारी सावधानियां बरतने के बावजूद वह कोरोना से संक्रमित हो सकता है तो उस पर रोज़ा रखना वाजिब नहीं रहेगा। जिस दिन उसको यह आशंका होगी उस दिन का रोज़ा वाजिब नहीं रहेगा। अब अगर उसने एसा उपाय कर लिए कि बीमारी की आशंका ख़त्म हो गई या इतनी कम हो गई कि सूझबूझ रखने वाले लोग उतनी कम आशंका पर ध्यान न दें तो फिर रोज़ा रखना वाजिब होगा। उदाहरण स्वरूप वह अपने घर में रुकता है और बाहर नहीं निकलता ताकि संक्रमण की आशंका बिल्कुल ख़त्म हो जाए तो इस स्थिति में उसके लिए रोज़ा रखना वाजिब होगा।
तो हर इंसान को अपनी स्थिति देखकर उसके अनुसार फ़ैसला करना है
बा शुक्रिया -Pars today