भाजपा के गाँधी,हीरो के बजाय बना दिये गए ज़ीरो,वरुण के खौफ से आतंकित भाजपा नेतृत्व की नाकाबंदी,शांत समंदर की भड़ास भाजपा में ला सकती है तूफान

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कृष्ण कुमार द्विवेदी(राजू भैया)

लखनऊ। भाजपा एवं देश की राजनीति में तेजी से बढ़ते भाजपा सांसद वरुण गांधी पर संभवत आतंकित भाजपा नेतृत्व ने पहरा लगा दिया है? वरुण भाजपा में गांधी होने की कीमत चुका रहे हैं। ऐसे में आने वाले समय में शांत समंदर बने इस युवा गांधी की भड़ास सामने आई तो भाजपा में तूफान खड़ा होना तय है।

गांधी खानदान के एक और चश्मोचिराग स्वर्गीय संजय गांधी एवं केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी के पुत्र भाजपा सांसद वरुण गांधी वर्तमान में राजनीति के फलक से अलग-थलग दिखाई दे रहे हैं। सियासत की मुख्यधारा से बनी यह दूरी स्वयं वरुण गांधी के द्वारा तैयार की गई है या फिर भाजपा नेतृत्व ने उन पर कोई लगाम कस रखी है ।यह चर्चा आम जनमानस में होती नजर आ ही जाती है। सुल्तानपुर से भाजपा सांसद वरुण गांधी तेजतर्रार एवं खुलकर अपनी बात रखने वाले युवा नेता के रूप में देश में जाने जाते हैं। अभी बहुत ज्यादा दिन नहीं हुए जब इस युवा नेता ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर बरबस ही खींचा था। वरुण की लोकप्रियता इतनी तेजी से आगे बढ़ी थी कि हिंदी भाषी क्षेत्र में उनके कार्यक्रमों की मांग काफी ज्यादा बढ़ गई थी। शुरू में तो भाजपा नेतृत्व ने कांग्रेसी गांधी खानदान से निपटने के लिए भाजपाई गांधी योद्धा को आगे किया लेकिन उसके बाद एकाएक भाजपाई रिंग मास्टरो ने इस शेर पर पहरा लगा दिया! वरुण गांधी के नाम पर बनी वरुण गांधी युवा बिग्रेड का फैलाव उत्तर प्रदेश के लगभग समस्त जनपदों में हो गया था। जहां भी वरुण पहुंचते थे उनके समर्थकों में युवाओं की संख्या अच्छी-खासी होती थी और वहां वरुण के प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश होने के नारे बरबस सुनाई ही दे जाते थे। यह कलरव इतना ज्यादा बढ़ता चला जा रहा था कि कहीं ना कहीं भाजपा के कई बड़े लंबरदार आतंकित हो चले थे? जिसके बाद इस युवा नेता को अलग-थलग करने की भाजपाई कोशिशे शुरू हो गई।

चर्चाओं के मुताबिक वरुण ने अपने आप को जिस तरह से एकांत प्रिय कर रखा है वह इस बात का भी संकेत दे रहा है कि शांत समंदर कभी भी तूफानों से घिरा नजर आ सकता है? उसका खामियाजा भाजपा को भी भुगतना पड़ सकता है! भाजपा के अंदर ही चर्चा के दौरान यह कहा जाता है कि वरुण गांधी के तेजी से बढ़ते हुए कदमों को रोकने के लिए भाजपा नेतृत्व के इशारे पर इस युवा नेता को किनारे लगाया गया! यही नहीं भगवा धारियों के एक वर्ग को इस पर भी एतराज था कि जिस गांधी खानदान से वह आज तक लड़ते आए हैं उसी गांधी खानदान के एक युवा नेता को कैसे भाजपा में आगे कर दिया जाए। यदि वरुण गांधी को आगे किया गया तो आगे संघर्ष भी सत्ता का गांधी खानदान से ही होगा। फिर यह स्थिति सामने होगी कि गांधी से गांधी देश में लड़ता नजर आएगा। दूसरे लोग राजनीतिक परिदृश्य से गायब हो जाएंगे। युवा नेता की मां मेनका गांधी भाजपा सरकार में मंत्री पद पर हैं। जो संतोष की बात हो सकती है, पर एक ऊर्जावान युवा नेता को इस तरह से पीछे रखना कहीं न कहीं युवा राजनीति के लिए बेईमानी ही है।
देश की राजनीति में अभी जब प्रियंका गांधी के आगमन पर रोमांचकारी हल्ला हुआ तो इसी के साथ एक चर्चा और हुई कि कांग्रेस कोई दूसरा बड़ा धमाका कर सकती है। इस चर्चा के बढ़ने के बाद सभी की निगाहें वरुण गांधी पर जा टिकी । लेकिन भाजपाई गांधी के कुनबे से ऐसी कोई हलचल नहीं हुई जिस पर ज्यादा देर तक नजरें गड़ाए रखी जा सके। विश्वस्त सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी एवं प्रियंका गांधी तथा वरुण गांधी के बीच संबंध अच्छे हैं। मामला गड़बड़ अलग से है !कुछ लोगों का कहना है कि जेठानी देवरानी के आपसी वैचारिक भिन्न-भिन्न मतों के चलते इस में रुकावट आ रही है? उधर दूसरी और भाजपा में गांधी होने के चलते वरुण को गांधी होने की कीमत अच्छी खासी चुकानी पड़ रही है संगठन स्तर पर उनके कद को कम किया गया भाजपा के स्टार प्रचारकों की सूची में उनके स्थान को प्रभावित किया गया अब आगे भाजपा नेतृत्व का क्या रुख होगा इसके लिए इंतजार करना होगा।

सूत्रों का यह भी कहना है कि शांत समंदर बने युवा गांधी का आक्रोश अथवा उनकी भड़ास यदि कहीं बाहर आ गई तो वह भाजपा के अंदर तूफान खड़ा कर सकती है। क्योंकि वरुण गांधी के नाम पर बनी उनकी ब्रिगेड टीम के तमाम युवा अपने नेता के इशारे का इंतजार भर कर रहे हैं। ऐसे में भाजपा नेतृत्व यदि इस रणनीति में है कि जो कुछ करें स्वयं वरुण करें यह स्थिति भी भाजपा के लिए मुफीद नहीं होगी। भाजपा के कुछ नेताओं में यह खौफ भले ही हो कि वरुण को यदि मौका मिला तो वह तेजी से आगे बढ़ सकते हैं और कई लोगों के लिए दल के अंदर चुनौती बन सकते हैं ।यह तो सियासी तौर पर भले ही ठीक हो। लेकिन आतंक अपने हथियार का इतना बढ़ जाए कि उसका प्रयोग विरोधी सेना पर भी न किया जा सके तो यह रणनीतिक असफलता से ज्यादा और कुछ नहीं है। फिलहाल यह तय है कि तेजतर्रार वरुण गांधी भाजपा में गांधी होने की आज बड़ी कीमत चुका रहे हैं??

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