कागज और रंगमंच के सेतु विजय तिवारी नहीं रहे,लखनऊ के रंगकर्म का हास्य रंग गया

प्रदेश लखनऊ शख्सियत

नवेद शिकोह

लखनऊ रंगकर्म को अखबारी कवरेज के रंगों से ग्लैमरस करने वाले हरफनमौला रंगकर्मी विजय तिवारी पर मृत्यु ने विजय प्राप्त कर ली। दर्जनों मीडियाकर्मियों और सम्पूर्ण रंगजगत के चहेते ज़िन्दादिल विजय तिवारी को तीन दिन पहले ब्रेनहेमरेज के बाद लखनऊ के ट्रामा सेंटर लाया गया था, जहां इलाज के दौरान शनिवार ग्यारह बजे चिकित्सकों ने इन्हें मृत्य घोषित कर दिया।
सोशल डिस्टेंसिंग का ख्याल रखते हुए कम सोगवारों के बीच आज रविवार को लखनऊ स्थित गुलाला घाट में इनका अंतिम संस्कार किया गया।
नाट्य संस्थाओं के मीडिया प्रभारी के तौर पर अखबारों और रंग समीक्षकों से उनका गहरा रिश्ता था। रंगकर्म और रंग समीक्षकों के बीच इन्होंने अद्भुत सामंजस्य क़ायम करने की शुरुआत की थी।

मशहूर नाट्य संस्था दर्पण से 47 वर्षों से जुडें रहे। वो यहां के अजीवन सदस्य थे और मौजूदा समय में प्रस्तुति नियंत्रण की ज़िम्मेदारी निभा रहे थे।

लखनऊ के रंगकर्म और अखबारों से क़रीबी रिश्ता रहा है। यहां की पत्रकारिता और रंगकर्म मुफलिसी में भी रईसाना मुस्कुराहट के साथ जीता रहा। विजय तिवारी अखबार और रंगकर्मी के बीच विदुषक के किरदार में जिंदादिली की मिसाल थे। हर फिक्र को धुएं में उड़ाने वाले इस रंगकर्मी ने ना सिर्फ रंगकर्मियो़ के लिए बल्कि उत्तर प्रदेश के समस्त कलाकारों के वेलफेयर के लिए तमाम काम किये। जायज़ जुरुरत़ो के लिए कलाकार और तमाम सरकारों के बीच भी विजय सेतु की भूमिका मे नज़र आये। उत्तर प्रदेश कलाकार एसोसिएशन के फाउंडर और सरबराह भी ये रहे।

क़रीब चालीस साल पहले हिंदी रंगमंच लखनऊ में दर्शकों का विस्तार करना चाहता था और यहां के अखबार कला और साहित्य को अपने दामन में समेट कर पाठकों व पृष्ठों में इज़ाफा कर रहे थे। अस्सी और नब्बे के दशक के दौरान ही अखबार और रंगकर्म अपने/अपने प्रयासों में विजयी हो गये थे। विजय तिवारी जैसे चंद रंगकर्मी अखबार और रंगमंच का ऐसा सेतु बने कि उस जमाने के आठ पेज के अखबारो़ में भी कला संस्कृति को खूब स्थान मिलने लगा। सशक्त भारतीय नाट्य विधा नौटंकी के पुरोधा उर्मिल कुमार थपलियाल की नौटंकी कॉलम ने जिस तरह नाट्य विधा को अखबार से जोड़ने का जो बड़ा योगदान दिया वैसे ही विजय तिवारी ने नाट्य प्रस्तुतियों को अखबार तक पंहुचाने में जीवनभर अपना योगदान दिया।
ज्ञात हो कि लखनऊ के बड़े-बड़े पत्रकारों या कला समीक्षकों का रंगकर्म से गहरा रिश्ता रहा है। नवीन जोशी, विजयवीर सहाय, रवि वर्मा, गौतम चटर्जी, आलोक पड़ाकर, संतोष वाल्मीकि, पवन मिश्रा, कृष्य नारायण कक्कड़, सुधा शुक्ला, कृष्ण मोहन मिश्रा, प्रतुल जोशी, आदियोग, कुमार सौवीर, पवन सिंह,राजवीर रतन,शबाहत हुसैन विजेता, ललित मिश्रा, रजनीश वैश्य, खुर्रम निज़ामी इत्यादि का रंगकर्म से किसी ना किसी रूप में वास्ता रहा है। कला और पत्रकारिता के इस रिश्ते की विजय पताका में विजय तिवारी का कहीं ना कहीं सामंजस्य ज़रूर रहा है।

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