उत्तराखंड में जीव जंतुओं की पांच नई प्रजातियां मिली, मौसम पर पड़ेगा असर

देहरादून :  उत्तराखंड में तिब्बती क्षेत्र में पाई जाने वाली वन्य जीवों की कुछ प्रजातियों के मिलने की खबर से सभी लोग स्तब्ध हैं। वैज्ञानिकों ने उत्तराखंड में जीव-जंतुओं की पांच नई प्रजातियां खोजी हैं।

पिछले दो सालों से नेलांग वैली में शोध कर रहे वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट आफ इंडिया देहरादून के वैज्ञानिकों ने इनकी खोज की है।

ये सभी प्रजातियां अब तक तिब्बत के आसपास हाई एल्टीट्यूट में पायी जाती थीं। इंस्टीट्यूट के वार्षिक शोध सम्मेलन में इसका खुलासा किया गया।

वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. एस. सथ्यकुमार ने बताया कि नेलांग में पिछले दो सालों से कैमरा ट्रैप लगाकर और अन्य तरह से जीव जंतुओं और पेड़ पौधों पर शोध किया जा रहा था।

इसी दौरान वहां पांच नई प्रजाति के जीव जंतु कैमरा ट्रैप में देखे गए। इसमें करीब 11 हजार फीट की ऊंचाई पर नेलांग वैली, उत्तरकाशी में तिब्बतन आर्गाली (भेड़), यूरेशियन लिंस (बिल्ली की प्रजाति), तिब्बतन सेंड फॉक्स और केदारताल, गंगोत्री में वाइल्ड डॉग मिला है।

जलवायु परिवर्तन के शोध में वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे कि टिहरी गढ़वाल के लोगों पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ेगा।

तिब्बतन सेंड फॉक्स लोमडियों में सबसे चतुर मानी जाती है। तिब्बत के पठार, नेपाल, भूटान और सिक्किम में पायी जाती है। यह जानवर मांसाहार और शाकाहार दोनों तरह का भोजन करता है।

तिब्बतन आर्गाली जंगली भेड़ है, जो दुनिया में सबसे बड़े आकार की होती है। इसका वजन 180 किलो तक हो सकता है, जबकि ऊंचाई 140 सेंटीमेटर तक हो सकती है। इसके काफी बड़े सींग होते हैं।

नेलांग में शोध के दौरान चौंकाने वाला एक और तथ्य सामने आया। वहां लाल बंदर पाया गया। यह अब तक 11 हजार फीट की ऊंचाई में यह पहले कभी नहीं दिखा।

शोध में पता चला है कि हाई एल्टीट्यूट यानी, 3000 मीटर से ऊपर के इलाकों जलवायु परिवर्तन से .05 डिग्री तक तापमान बढ़ा है। जबकि 2 से 3 हजार मीटर तक और 2 हजार मीटर से नीचे के इलाकों में तापमान में परिवर्तन नहीं दिखा।

तीन हजार मीटर से ऊपर ह्यूमिडिटी (नमी) में भी 20 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी दर्ज की गई। इससे वहां जीवों और पेड़ पौधों की प्रजनन क्षमता पर असर पड़ रहा है। उत्तरकाशी के नेलांग वैली में ही वुली फ्लाइंग स्क्वेरल (उड़न गिलहरी) भी दिखी है।

करीब 80 साल पहले इस प्रजाति के खत्म होने की बात कही गई थी। करीब 30 साल पहले यह गिलहरी पाकिस्तान के हिमालयी क्षेत्र में देखी गई थी। यह हिमालयी जीव है। इसकी लंबाई करीब एक मीटर तक हो सकती है।

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