राजनिवास ने झूठ से उठाया पर्दा, खोली दिल्‍ली सरकार की पोल, एक-एक फाइल का दिया हिसाब

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नई दिल्ली । उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया द्वारा बुधवार को विधानसभा में रखी गई उप राज्यपाल कार्यालय की आउटकम रिपोर्ट पर उपराज्‍यपाल ने कड़ी आपत्ति दर्ज कराते हुए राजनिवास में रखी एक-एक फाइल का हिसाब दिया। दिल्‍ली सरकार का यह आरोप रहा है कि राजनिवास में सारी फाइलें अटकी हुई है। इसके चलते दिल्‍ली का कार्य बाधित हो रहा है।

बृहस्पतिवार को राजनिवास से इस रिपोर्ट पर 11 पृष्ठों का जवाब जारी किया गया। इसमें कहा गया है कि उपराज्यपाल कार्यालय से दिल्ली सरकार की 97 फीसद फाइलों को मंजूरी दी गई है। कुछ अधूरी फाइलें ही स्पष्टीकरण के लिए लौटाई गईं जो नियमों के हिसाब से भी सही नहीं थीं। आउटकम रिपोर्ट पर राजनिवास का कहना है कि यह रिपोर्ट सीधे तौर पर तथ्यों के साथ धोखा है। भ्रामक जानकारी देकर जनता को गुमराह करने का प्रयास किया गया है। राजनिवास का यह भी कहना है कि दिल्ली सरकार ने इस रिपोर्ट के जरिए खुद की गलतियों का ठीकरा उपराज्यपाल के सिर फोडऩे का प्रयास किया है।

साथ ही यह भी कहा गया है कि अगर निर्वाचित सरकार ने नियमों का पालन किया होता तो उप राज्यपाल को निर्णय लेने में और आसानी होती। राजनिवास के मुताबिक रिपोर्ट में उन योजनाओं का उल्लेख ही नहीं किया गया है जो बिना किसी कारण 768 दिनों से मंत्रियों के पास लंबित पड़ी हैं।

राजनिवास के मुताबिक आज तक उप राज्यपाल कार्यालय को दिल्ली सरकार की करीब 10 हजार फाइलें और प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं। इनमें से 97 फीसद को बगैर किसी बदलाव के तुरंत ही मंजूरी दे दी गई। विचारों में मतभेद के कारण केवल दो प्रस्ताव ही राष्ट्रपति के पास भेजे गए। तीन फीसद फाइलें ही सुझावों के साथ सरकार को वापस भेजी गई हैं।

वे दो प्रस्ताव जो राष्ट्रपति को भेजे गए 

1- स्व. राम किशन ग्रेवाल को एक करोड़ रूपए देने का मामला राष्ट्रपति को भेजा गया था। मुख्य मुद्दा यह था कि क्या कथित आत्महत्या के मामले में करदाताओं के पैसे को मुआवजे के रूप में दिया जा सकता है ?

2- दिल्ली विद्युत विनियामक आयोग (डीईआरसी) के चेयरमैन की नियुक्ति का मामला इलेक्ट्रीसिटी अधिनियम, 2013 के अनुरूप न होना और सक्षम प्राधिकारी के अनुमोदित नहीं होने के कारण राष्ट्रपति को भेज दिया गया था।

कुछ प्रमुख योजनाओं की हकीकत

1- अक्षय पात्रा फाउंडेशन की मिड डे मिल योजना

उपमुख्यमंत्री द्वारा 18.09.2017 को बिना किसी अन्य एनजीओ को मौका दिए सीधे अक्षय पात्रा फाउंडेशन को चार एकड़ सरकारी जमीन का लाइसेंस देने के संबंध में एक पत्र उपराज्यपाल महोदय को प्राप्त हुआ। उपराज्यपाल कार्यालय की ओर से  20.10.2017 को उपमुख्यमंत्री को यह सुझाव दिया गया कि प्रासंगिक नियमों एवं संबंधित विभाग के परामर्श के बाद ही यह फाइल भेजे। पारदर्शी तरीके से निविदा प्रक्रिया का पालन किए बिना सरकारी भूमि का आवंटन नहीं किया जा सकता है। निर्वाचित सरकार से फाइल अभी तक प्राप्त नहीं हुई है।

2- राशन का घर पर वितरण

उपराज्यपाल कार्यालय को प्रस्ताव 14.03.2018 को प्राप्त हुआ था। वित्त विभाग ने पाया कि प्रस्तावित योजना में राशन की घरेलू वितरण प्रणाली केवल मानवीय हस्तक्षेप को ही नए हाथों में बदलेगी। इससे योजना के तहत राशन सामग्री और भ्रष्टाचार के विकल्प को समाप्त नहीं किया जा सकता। वित्त विभाग ने यह भी पाया है कि होम डिलीवरी स्कीम पर प्रतिवर्ष 250 करोड़ रूपए का खर्चा आएगा। यदि डीबीटी लागू किया जाए तो लाभार्थी इससे बचे हुए पैसे प्रतिमाह 05 किलो अतिरिक्त आटा खरीद सकता है। अब तक यह प्रस्ताव उपराच्यपाल कार्यालय में वापस नहीं आया है और निर्वाचित सरकार के साथ लंबित है।

3- स्वास्थ्य बीमा योजना

यह प्रस्ताव 04.08.2016 को उच्च न्यायालय के फैसले के बाद 30.08.2016 को प्राप्त हुआ था। इसने सरकार के निर्णय को उपराच्यपाल की मंजूरी के अभाव में निरस्त घोषित कर दिया था। फाइल 28.10.2016 सरकार को इस टिप्पणी के साथ वापस भेजी गई थी कि प्रस्ताव का रूप जीएफआर का उल्लंघन है। उठाई गई आपत्तियों का निराकरण किए बगैर चार महीने बाद फाइल को 20.02.2017 को फिर से पुन: प्रस्तुत किया गया था। 29.03.2017 को उपराच्यपाल ने ऐसे अन्य राच्यों/संघ शासित प्रदेशों से परामर्श करने की सलाह दी जहां दिल्ली जैसी समान बीमा योजनाएं चालू रहे ताकि वहां अपनाए गए तंत्र का पता लगाया जा सके। फाइल को एक वर्ष से अधिक समय के बाद भी चुनी गई सरकार द्वारा फिर से नहीं भेजा गया है।

4- आम आदमी मोहल्ला क्लीनिक

मोहल्ला क्लीनिक योजना के पायलट प्रोजेक्ट में ही आम आदमी पार्टी के स्वयंसेवकों की जगह किराए पर लेने, डाक्टरों को चुनने और नियुक्तियों में पारदर्शिता में कमी, भुगतान बढ़ाने के लिए डेटा हेराफेरी, किराए की साइटों के लिए अत्यधिक किराया आदि कई शिकायतें आई थीं। सतर्कता विभाग ने इन शिकायतों को पहली नजर में सही पाया था। इन शिकायतों के मददेनजर कुछ फाइलों को दिनांक 05.07.2017 को शिकायतें जांचने और उनमें उठाए गए मुददे हल करने के लिए मुख्यमंत्री को सलाह के साथ भेजा गया था। एस.ओ.पी/संगठनात्मक स्थिति की पुस्तिका और आम आदमी मोहल्ला क्लीनिक के साथ फाइल को 31.08.2017 को फिर वापस भेजा गया एवं इस प्रस्ताव पर 04.09.2017 को (सिर्फ 2 कार्य दिवसों के भीतर) सहमति दी गई।

5- मुख्यमंत्री तीर्थयात्रा योजना

यह प्रस्ताव 15.02.2018 को प्राप्त हुआ था जो कि 08.03.2018 को वापस किया गया था। सलाह दी गई थी कि ओडिशा, मध्य प्रदेश और राजस्थान के राच्यों में भी इसी तरह की योजना चल रही है। जहां आयकर दाताओं को अन्य पात्रता मानदंडों के अलावा योजना से बाहर रखा गया था। परंतु चुनी हुई सरकार ने इस प्रस्ताव में कोई आय सीमा निर्धारित नहीं की थी। क्षेत्र के विधायक का प्रमाण पत्र क्यों आवश्यक है, खासकर जब चुनाव पहचान पत्र पहले ही एक अनिवार्य स्थिति है। यह केवल इस योजना के राजनीतिकरण की ओर ले जाएगा। सरकार के दावे के बावजूद यह एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव है, जिस पर आज तक मंत्री से कोई जवाब नहीं मिला है। फाइल अभी भी चुनी हुई सरकार के पास लंबित है।

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