नई दिल्ली : उद्योग संगठन एसोचैम ने रविवार को कहा कि ऋणशोधन अक्षमता दिवाला कोड (आईबीसी) के माध्यम से बैंकों की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) या खराब ऋण की समस्याओं का सफल समाधान होने से भारत के कॉरपोरेट बॉन्ड बाजार में तेजी आएगी.
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के साथ मिलकर एसोचैम द्वारा करवाए गए एक अध्ययन का हवाला देते हुए उद्योग संगठन ने कहा, “एसोचैम-क्रिसिल के अध्ययन के अनुसार, आईबीसी के तहत दबाव वाली परिसंपत्तियों के समाधान के लिए समय सीमा में कमी से न सिर्फ निवेशकों का विश्वास बढ़ेगा बल्कि उनको एएए रेटिंग से कम के बॉन्ड का बॉन्ड हासिल करने में भी मदद मिलेगी.”
कॉरपोरेट बॉन्ड बाजार जीडीपी में अहम
एसोचैम ने कहा, “देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 17 फीसदी योगदान करने वाला कॉरपोरेट बॉन्ड बाजार एएए रेटेड बॉन्ड को काफी तवज्जो देता है. आईबीसी द्वारा समयबद्ध तरीके से दबाव वाली परिसंपत्तियों का सफल समाधान करने पर इसमें बदलाव की उम्मीद है
” उद्योग संगठन ने कहा कि वर्तमान में करीब 90 फीसदी व्यापार एएए और एए रेटेड बॉन्ड तक सीमित है, लेकिन नतीजों की निश्चितता बढ़ने और आईबीसी के कारण तेज समाधान की उम्मीद होने से आने वाले दिनों में कम रेटेड बॉन्ड में घरेलू व विदेशी निवेशकों की दिलचस्पी बढ़ेगी.
सुधार करना बेहद महत्वपूर्ण
एसोचैम के अनुसार, अमेरिका में कॉरपोरेट बॉन्ड का योगदान 123 फीसदी और दक्षिण कोरिया में 74 फीसदी है. उद्योग संगठन ने कहा कि ब्राजील, रूस, चीन और यूके जैसे देशों ने दिवाला कानून में सुधार लाने के लिए कदम उठाए हैं. इसके अलावा बड़े संरचनात्मक सुधार के उपाय किए गए हैं. इन कदमों से इन देशों के वित्तीय बाजार में कॉरपोरेट बॉन्ड बाजार का काफी विकास हुआ है.
अध्ययन के अनुसार, वित्तपोषण की आवश्यकताओं के लिए बॉन्ड बाजार में बड़े कॉरपोरेट कर्जदारों की पहुंच को बढ़ावा देने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने व्यक्तिगत व समूह के बैंकों में पहुंच को सीमित करने के लिए मानक लागू किए हैं. संगठन ने कहा, “आईबीसी के साथ-साथ इससे भारतीय बांड बाजार को बढ़ावा मिलेगा.”
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