चौदह सौ साल पुरानी रवायत को अल्हाज सैयद जमाल दिलशाद रमज़ान के महीने में किये हैं जिंदा

ज़रा हटके धर्म-दर्शन बाराबंकी
 20 साल से बेगमगंज बाराबंकी के अपने ३मंज़िला मकान में महिलाओ की सामूहिक रूप से तरावीह की नमाज का करवा रहे हैं आयोजन
सैकड़ो महिलाएं दुनिया और देश मे शांति के लिये यहाँ मांगती हैं दुआएं*

वक्त गुजरने के साथ ही हर क्षेत्र में बदलाव हो रहा है। लोगों की बदली सोच का एक अच्छा नतीजा राजधानी से सटे बाराबंकी में  देखने को मिल रहा है। रमजान के इस पवित्र महीने में चौदह सौ साल पुरानी रवायत को अल्हाज सैयद जमाल दिलशाद  जिंदा किये हुए हैं लगभग 20 साल से बेगमगंज के अपने मकान में  महिलाओ की सामूहिक रूप से तरावीह की नमाज का आयोजन कर रहे है।

पुरुष  हाफिज के पीछे तरावीह की नमाज पढ़ रही हजारों महिलाएं देश-दुनियां में अमनचैन के लिए दुआएं भी इस मुकाम पे कर रही हैं।
 यहाँ पर पूरे पर्दे और एहतराम के साथ महिलाएं व युवतियां पहुंचती हैं।
मुस्लिम समाज के एक पक्ष का मानना है कि रमजान के पवित्र महीने में औरतों का अपने घरों से निकल कर नमाज के लिए इकट्ठा होना शुभ संकेत है। इससे इनमें आत्मविश्वास बढ़ा है। नई विचारधाराएं जन्म लेने लगी हैं। साकारात्मक सोच में इजाफा हुआ है। प्रेरणा स्रोत बनने लगी हैं पर्दा में रहने वाली महिलाएं। एक लाभ यह भी हो रहा है कि एक जगह जमा हुई इन महिलाओं के बीच देश-दुनियां की बातें होने लगी हैं। पूरे घटनाक्रम से यह अवगत हैं। एक-दूसरे का हालचाल पूछने से सामाजिक जिम्मेदारी बढ़ी है तथा इनमें चेतना जगी है। सीधे तौर पर यह कहा जा सकता है कि जमात के साथ तरावीह की नमाज अदा करने की इस सदियों पुरानी परम्परा को जीवित कर हर उम्र की औरतों ने महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने में अपनी भागीदारी सुनिश्चित की है।
यहाँ तरावीह पड़ा रहे शिक्षाविद् हाफिज मोहम्मद वैश और हाफिज मोहम्मद इरशाद बोले-नियम व शर्त के साथ पढ़ सकती हैं महिलाएं
इस्लामिक शिक्षाविद् हाफिज मुमताज रसूल ने बताया कि आज से करीब चौदह सौ साल पहले इस्लाम धर्म के पैगम्बर मोहम्मद (स.) के समय भी महिलाएं मस्जिदों में नमाज अदा करती थीं। अरब देश के शहर मदीना स्थित मस्जिद-ए-नबवीं में तो पैगम्बरे इस्लाम की इमामत (नेतृत्व) में महिलाओं ने फर्ज नमाज अदा किया। इस्लाम धर्म के दूसरे खलीफा हजरत उमर फारूक रज़ी अन्हा ने तराबीह की नमाज अदा करने का सिलसिला शुरू किया। जिसका लाभ महिलाओं ने भी उठाया।
इस्लामिक शिक्षाविद् के अनुसार महिलाओं के मस्जिद में नमाज पढ़ने पर प्रतिबंध नहीं लेकिन कुछ नियम एवं शर्ते हैं। जिनका पालन जरूरी है।
अरब देशों के अलावा दिल्ली के जामा मस्जिद समेत देश की कई मस्जिदों में महिलाएं आज भी जमात (समूह) में नमाज अदा करती हैं। बाराबंकी में यह व्यवस्था बेगमगंज में मेन रोड  स्थित तीन मंजिला सलीस मंज़िल अल्हाज जमाल दिलशाद साहब के मकान में बड़े एहतेराम से हो रही हैं। यहाँ इकट्ठा होने वाली सैकड़ो महिलाओं की तादात दिन पर दिन बढ़ रही हैं,2 घंटे तक चलने वाली इस इबादत में खान पान की और रोज़ेदारों की देख रेख कोई असुविधा न हो इसके लिए पत्नी सलीस सुल्ताना(हज्जिन),बहन रिज़वाना फारूकी,बहु शहमीन नाज़,बेटी अलीशा फ़राज़,और नबिहा जमाल व्यवस्था की पूरी जिम्मेदारी के साथ निभाती हैं।और बुजुर्गों से दुआएँ भी खूब पाती हैं।

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