संतोष शुक्ला
बाराबंकी। बीते चार दिनो से देवा रोड स्थित आस्था अस्पताल में भर्ती पत्रकार और तीमारदार अव्यवस्था से जूझ रहे है। पत्रकार होने के नाते उपलब्ध सेवाओ से वंचित तो रखा जा उल्टे दवाईया और इंजेक्शन की कीमते भी मनमानी वसूले जाने से परिजन परेशान है।तो पत्रकार की तड़प की आवाज़ अब अस्पताल की दीवारों से सोशल मीडिया पर गूंजने लगी है ।
जिलाधिकारी द्वारा देवा रोड स्थित आस्था और शेयरवुड को कोविड अस्पताल के रूप में अधिग्रहित किया गया है। जहाँ से लगातार मिल रही शिकायतो पर जिलाधिकारी ने मरीज और उनके तिमारदारो से ऑक्सीजन सिलेंडर आदि की खरीद फरोख्त नहीं कराने के आदेश भी इन अस्पतालो को दिये थे। इसके बावजूद आस्था अस्पताल द्वारा मरीजो के तीमारदारो से ऑक्सीजन गैस मंगवाने का कुकृत्य जारी है। यहां बीते चार दिनो से भर्ती वरिष्ठ पत्रकार संजय वर्मा उर्फ़ पंकज का महंगा इलाज़ तो किया ही जा रहा है। साथ ही ऑक्सीजन की व्यवस्था उन्हें स्वयं करवानी पड़ रही है। संजय से फोन पर बात किये जाने पर बुधवार शाम उन्होंने अपनी व्यथा बताते हुऐ कहा की पत्रकार होने के नाते सभी के सुख दुख में खड़े रह कर आधा जीवन गुजार दिया, लेकिन उसके बदले में आज स्वयं के इलाज़ के लिये कोई खड़ा होने वाला नहीं है। कोई भी सरकारी गैर कार्यक्रम के आयोजनो को निस्वार्थ कवरेज करना हो या किसी की आवाज़ बनना सब बेमानी साबित हो रहा है। अस्पताल में मिल रही महंगी दवायी और इंजेक्शन ने कमर तोड़ कर रख दी है।
डीएम के आदेश के बावजूद आस्था में ऑक्सीजन नहीं दी जा रही जिसके लिये पत्नी और रिश्तेदारो को भागदौड़ करनी पड़ रही है। संजय के रिश्तेदार भी सोशल मीडिया के माध्यम से यहां व्याप्त अव्यवस्थाओ की कलई खोल कर मदद की मांग कर रहे है, लेकिन कही से मदद नहीं मिल रही है।
मुख्यमंत्री के आदेश का नहीं हो रहा पालन
मुख्यमंत्री के आदेशानुसार पत्रकारो के लिये पांच लाख रूपये तक का मुफ्त इलाज़ की घोषणा सर्वजानिक होने के बावजूद एक – एक दवाई के लिये पत्रकार को संघर्ष करना पड़ रहा है। सूचना विभाग की तरफ से भी कोई मदद नहीं पहुंची है। एक आध जनप्रतिनिधियों को छोड़ दे तो उनकी मदद के लिये किसी ने हाथ नहीं बढ़ाया है। कोविड की रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद बीते चार दिनो से निमोनिया का इलाज़ जारी है, इसलिये स्थिति और गंभीर है। सवाल उठना लाज़मी है की पत्रकार को इलाज़ के लिये रूपये कहा से मिले।
एडीएम ने नोट किया पत्रकार का नाम
साथी पत्रकार को हो रही तकलीफ में है, यह पोस्ट पढ़ने के बाद कुछ पत्रकारो ने सूचना विभाग और उपजिलाधिकारी को फोन किया लेकिन किसी का फोन नहीं उठा। गनीमत रही की अपरजिलाधिकारी संदीप गुप्ता ने फोन उठाने के साथ अस्पताल का नाम नोट करने के साथ संजय वर्मा का नाम भी लिख लिया है। खबर लिखे जाने तक गरीब और असहाय लोगो की मदद करने वाले पत्रकार तक कोई मदद नहीं पहुंची थी। किसी प्रकार इलाज़ के रूपये जमा किये जा चुके थे। लेकिन आगे का इलाज़ भगवान भरोसे है।