क़ौम से किया अपील जहां जहां भी मुंकिरे आयाते इलाही का साथ देने वाले मौजूद हैं उनके आस पास के मोमनीन से अपील करते हैं कि वह “नही अनिल मुंकर” (बुराई से रोकने) के फरीज़े को अदा करें और उन लोगो को मुंकिरे कुरआन का साथ देने से रोकें ताकि बारगाहे मासूमीन अ०स० में हो सुरखुरु।
तहलका टुडे टीम
लखनऊ-दुनिया के सबसे बड़े इदारे 1200 मकतबों के बोर्ड तंज़ीमुल मकातिब के सेक्रेट्री हुजातुल इस्लाम मौलाना सैयद सफ़ी हैदर साहब का शिया वक़्फ़ बोर्ड चुनाव में मुर्तद का साथ देने वाले मुतावल्लीओ को लेकर आये बयान ने रमज़ान के महीने में हड़कंप मचा दिया है ।उन्होंने कहा
रसूल अल्लाह स०अ० ने फरमाया:”जो भी किसी ज़ालिम की उसके ज़ुल्म में मदद करेगा तो रोज़े कयामत इस हाल में लाया जाएगा कि उसकी पेशानी (माथे) पर लिखा होगा कि यह अल्लाह को रहमत से मायूस है।”
रहमते खुदा से मायूसी कुफ्र के मुतरादिफ है,कुरआन करीम ने भी साफ लफ्ज़ों में ऐलान किया कि”नेकी और तकवे में एक दूसरे की मदद करो,खबरदार!गुनाहों और ना फरमानी में किसी की मदद न करना।(सूरे माएदा,आयत 2)
रवायात की रौशनी में ज़ुल्म करने वाला,ज़ुल्म में मदद करने वाला, हत्ता ज़ुल्म से राज़ी रहने वाले तीनों ज़ुल्म में बराबर के साथी हैं।
-औकाफे हुसैनी में खुर्द बुर्द की सज़ा से बचने के लिए शिया वक्फ बोर्ड उत्तर प्रदेश के साबिक़ चेयरमैन ने तमाम हदों को पार कर दिया,अपने मसाएल को छुपाने के लिए दूसरे कई मसाएल खड़े करने की नाकाम कोशिश कीं,अयोध्या मामले में पार्टी बनना या इख्तेलाफी फिल्म पेश करना इसी सिलसिले की कड़ी थी और आखिर में कुरआने करीम की आयात का इंकार कर के अपनी हकीकत दुनिया पर ज़ाहिर कर दी।
कलामे इलाही की तौहीन पर जब हर तरफ से मज़म्मत का सिलसिला शुरू हुआ तो हमारे जैसे न जाने कितने यही समझे कि अब जब कि अल्लाह के कलाम की तौहीन का इर्तेकाब किया है तो जो मुसलमान अब तक उसके साथ रहे होंगे उन्होंने भी किनारा कशी कर ली होगी।और यह ज़ालिम अब तन्हा रह गया होगा।लेकिन जब कुछ मुतावल्लियो ने इस सब के बावजूद ना हक बल्कि इरतेदाद का साथ दिया और उसकी हिमायत में सामने आए तो हमारी हैरत की इंतेहा न रही और अफसोस भी हुआ कि हवसे दुनिया किस तरह आखेरात और अज़ाबे दाएमी से भी बे खौफ बना देता है।
वह तमाम लोग जो किसी भी हवाले से उसकी हिमायत कर रहे हैं वह सब भी काबिले मज़म्मत हैं और उसके जुर्म में बराबर के शरीक हैं।उन्हें फिर से अपने फैसले का जाएज़ा लेना चाहिए कि हुर बनना है या हुर्मला।
हम ऐसे तमाम लोगों को नसीहत करते हैं कि ना पाएदार दुनिया के लिए अपनी आखेरत बर्बाद न करें और उन तमाम लोगो की शदीद मज़म्मत करते हैं और उनसे एलान बराअत करते हैं अगर वह अपने बातिल पर अड़े रहें।
और जहां जहां भी मुंकिरे आयाते इलाही का साथ देने वाले मौजूद हैं उनके आस पास के मोमनीन से अपील करते हैं कि वह “नही अनिल मुंकर” (बुराई से रोकने) के फरीज़े को अदा करें और उन लोगो को मुंकिरे कुरआन का साथ देने से रोकें ताकि बारगाहे मासूमीन अ०स० में सुरखुरु हो सकें।
आखिर में मौलाना सफ़ी हैदर साहब ने बारगाहे माबूद में दुआ की अगर यह काबिले हिदायत हैं तो उनकी हिदायत फरमा,और अगर काबिले हिदायत नही है तो उनके शर से हम सब को महफूज़ फरमा।