‘क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार. मिट्टी, पानी और बयार, जिंदा रहने के आधार.’ नारे से चिपको आंदोलन से इंक़लाब बरपा करने वाले पद्मश्री ‘वृक्षमित्र’ सुंदर लाल बहुगुणा का निधन

Latest Article

तहलका टुडे टीम

एम्स ऋषिकेश में भर्ती पर्यावरणविद सुंदर लाल बहुगुणा (94 वर्षीय) का शुक्रवार दोपहर 12 बजे निधन हो गया। सुंदर लाल बहुगुणा कोरोना से संक्रमित थे। चिपको आंदोलन के इस प्रणेता के निधन की खबर सुनकर पूरे राज्य में शोक की लहर है। दोपहर दो बजे पूर्णानंद घाट पर स्व. बहुगुणा का अंतिम संस्कार होगा।पीएम ने एक ट्वीट कर कहा, ‘श्री सुंदरलाल बहुगुणा जी का जाना हमारे राष्ट्र के लिए एक अपूरणीय क्षति है. उन्होंने प्रकृति के सान्निध्य में रहने की सदियों पुरानी हमारी परंपरा को सामने रखा. उनकी सादगी और दया भावना कभी भूलाई नहीं जा सकती. मेरी संवेदना उनके परिवार और प्रशंसकों के साथ है. ओम् शांति.’अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ऋषिकेश में भर्ती 94 वर्षीय पर्यावरणविद सुंदर लाल बहुगुणा को कोरोना के साथ ही निमोनिया भी हो गया था। उन्हें सिपेप मशीन सपोर्ट पर रखा गया था और उनका ऑक्सीजन सेचूरेशन लेवल 86 फीसदी पर आ गया था। एम्स में चिकित्सक उनके ब्लड शुगर लेवल और ऑक्सीजन लेवल को संतुलित करने में जुट थे लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। वह डायबिटीज के मरीज भी थे।
कोविड आईसीयू वार्ड में भर्ती बहुगुणा को अब एनआरबीएम मास्क ( नॉन रिब्रीथर मास्क) के माध्यम से आठ लीटर ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया था। संस्थान के चिकित्सकों की टीम उनके स्वास्थ्य की लगातार निगरानी व उपचार में जुटी थी।13 साल की उम्र में अमर शहीद श्रीदेव सुमन के संपर्क में आए
पर्यावरणविद पदमविभूषण और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म नौ जनवरी 1927 को टिहरी जिले में भागीरथी नदी किनारे बसे मरोड़ा गांव में हुआ। उनके पिता अंबादत्त बहुगुणा टिहरी रियासत में वन अधिकारी थे। 13 साल की उम्र में अमर शहीद श्रीदेव सुमन के संपर्क में आने के बाद उनके जीवन की दिशा ही बदल गई। सुमन से प्रेरित होकर वह बाल्यावस्था में ही आजादी के आंदोलन में कूद गए थे। उन्होंने टिहरी रियासत के खिलाफ भी आंदोलन चलाया।कब और क्यों हुआ था चिपको आंदोलन
चिपको आंदोलन की शुरुआत 1973 में उत्तराखंड (तत्कालीन उत्तर प्रदेश) के चमोली जिले से हुई थी. यहां बड़ी संख्या में किसानों ने पेड़ कटाई का विरोध करना शुरू किया था. वो राज्य के वन विभाग के ठेकेदारों के हाथों से कट रहे पेड़ों पर गुस्सा जाहिर कर रहे थे और उनपर अपना दावा कर रहे थे. इसकी शुरुआत सुंदरलाल बहुगुणा ने की थी और इसका नेतृत्व कर रहे थे.
धीरे-धीरे यह आंदोलन बहुत बड़ा हो गया. इसे चिपको आंदोलन इसलिए कहते हैं क्योंकि इस आंदोलन के तहत लोग पेड़ों से चिपक जाते थे और उन्हें कटने से बचाते थे. इस अभियान में महिलाओं ने बढ़चढ़ कर अहम भूमिका निभाई थी. महिलाएं पेड़ से चिपक जाती थीं और कहती थीं कि अगर पेड़ काटना है तो पहले उन्हें काटा जाए.

किस नारे ने भरी आंदोलन में जान

‘क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार.
मिट्टी, पानी और बयार, जिंदा रहने के आधार.’
यह नारा इस आंदोलन की शक्ति था. 1987 में इस आंदोलन को सम्यक जीविका पुरस्कार (Right Livelihood Award) का सम्मान दिया गया था.मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने गहरा शोक व्यक्त किया
मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने विश्व प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और पद्मविभूषण श्री सुंदरलाल बहुगुणा जी के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि चिपको आंदोलन को जन जन का आंदोलन बनाने वाले श्री सुंदरलाल बहुगुणा जी का निधन न केवल उत्तराखण्ड और भारतवर्ष बल्कि समस्त विश्व के लिये अपूरणीय क्षति है। सामाजिक सराकारों व पर्यावरण के क्षेत्र में आई इस रिक्तता को कभी नहीं भरा जा सकेगा। ईश्वर दिवंगत आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान दें, और शोकाकुल परिजनों को धैर्य व दुख सहने की शक्ति प्रदान करें।

विधानसभा अध्यक्ष ने बताया अपूरणीय क्षति
विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल ने बहुगुणा के निधन को देश के लिए अपूरणीय क्षति बताया है। विधानसभा अध्यक्ष ने सुंदरलाल बहुगुणा के निधन की खबर सुनते ही एम्स ऋषिकेश पहुंचकर उनके परिजनों को सांत्वना दी। विधानसभा अध्यक्ष ने दिवंगत आत्मा की शांति की प्रार्थना की।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *