तहलका टुडे टीम
बाराबंकी। सुन्दर लाल बहुगुणा हिमालय का बेटा था। प्रकृति उनकी माँ थी। पेड़ पौधे उनके अपने सगे थे। वह पर्यावरण, हिमालय, जल, जंगल, जमीन पर लोगों के हक हकूकों के पैरोकार थे।
यह बात चिपको आन्दोलन के प्रणेता, स्वतंत्रता सेनानी, प्रख्यात पर्यावरणविद् सुन्दर लाल बहुगुणा के निधन पर गांधी भवन में आयोजित शोकसभा की अध्यक्षता कर रहे समाजवादी चिंतक राजनाथ शर्मा ने कही।
श्री शर्मा ने नम आंखों से आँसुओ का नज़राना इस क्रन्तिकारी को पेश करते हुए आगे कहा कि 94 वर्षीय सुंदर लाल बहुगुणा जी आजादी से पहले टिहरी रियासत के खिलाफ लड़ने और आजादी के बाद अपने देश में जल, जंगल, जमीन पर लोगों के अधिकारों पर ताउम्र संघर्ष करने वाली शख्सियत थे। पेड़ों को बचाने को लेकर चिपको के छोटे से आंदोलन को बहुगुणा जी ने ही दुनिया की नजरों के सामने रखा। दुनिया भर में उन्हें पर्यावरण संरक्षण के लिये जाना जाता है। अपने चिपको आन्दोलन के लिये उन्हे विश्व में वृक्ष मित्र के रुप में जाने गए। भारत सरकार ने उन्हे पदम् विभूषण से सम्मानित किया।
श्री शर्मा ने कहा कि ताउम्र लड़ने, संघर्ष करने वाली हिमालय की आवाज आज थम गई है। लोगों और पर्यावरण के लिए अपना जीवन लगा देने वाली आवाज हमारी पीढ़ी के लिए शिक्षक का काम करेगी। हमें लड़ना, संघर्ष करना सिखाएगी। हम अपने पर्यावरण, मिट्टी, पानी, हवा को बचाएंगे।
श्री शर्मा ने बताया कि सुन्दर लाल बहुगुणा खादी शताब्दी पर निकलने वाली आत्मनिर्भर भारत यात्रा के संरक्षक और मार्गदर्शक थे। वह गांधीवादी ही नही बल्कि समानता, भाईचारा और शांति के अलम्बरदार थे। उनके बेटे वरिष्ठ पत्रकार राजीव नयन बहुगुणा अपने पिता के ही तरह सादगी पसंद और सरल व्यक्तित्व के व्यक्ति हैं। सुन्दर लाल बहुगुणा के जाने के बाद हिमालय और खासकर पर्यावरण और जल, जंगल जमीन पर स्थानीय लोगों के हक-हकूकों की बहस में एक रिक्तता आ गई जो शायद ही कभी भरे।
इस मौके पर प्रमुख रुप से मृत्युंजय शर्मा, विनय कुमार सिंह, पाटेश्वरी प्रसाद, साकेत मौर्या, पी.के.सिंह, सत्यवान वर्मा, मनीष सिंह, संजय सिंह, कपिल सिंह यादव, नीरज दूबे, संतोष शुक्ला, अनिल यादव आदि लोग मौजूद रहे।