शायर मुनव्वर राना क्या बगैर ख़तने के है मुसलमान?,देखिये नासमझ सहबियों के बीच हज़रत अली अ ० ने गुस्ताख़ ऐ रसूल की कैसे काटी थी ज़बान

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तहलका टुडे डेस्क
नबी ए करीम स० के मदनी दौर में किसी गुस्ताख शायर ने नबी ए करीम स० की शान में गुस्ताखाना अशआर लिखे
सहाबा ने इस गुस्ताख को पकड़ कर बोरी में बंद करके नबी ए करीम स० के सामने फेंक दिया
सरकार ए दो आलम ने हुक्म दिया इस की ज़बान काट दो
तारिख़ लरज़ गई मक्का में जो पत्थर मारने वालों को माफ़ कर देता था कुड़ा करकट फेंकने वाली की तीमारदारी करता था ताईफ़ में पत्थरों के हमले में लहु लुहान होने के बाद भी जो इंतकाम ना लेकर आने दुश्मनों की आने वाली नस्लों को दुआओं से नवाज़ता था उसे मदीने में आकर आख़िर किया हो गया है ?
सहाबा ने अर्ज़ की या रसूल स० हमें इस गुस्ताख की ज़बान काटने की सआदत हासिल करने का मौक़ा दें ?
हुज़ूर स० ने फ़रमाया तुम नहीं और अली अ० को हुक्म दिया ए अली तुम इसकी ज़बान काट दो
मौला अली बोरी उठाकर शहर से बाहर निकले और हज़रत क़म्बर को हुक्म दिया जाओ और मेरा ऊंट लाओ
ऊंट आया मौला अली अलैहिस्सलाम ने ऊंट के पैरों से रस्सी खोल दी और उस शायर को भी खोल दिया
दो हज़ार दरहम उसके हाथ में दिये और उसे ऊट पर बैठा कर फ़रमाया तुम भाग जाओ पीछे आ रहे लोगों को मैं संभाल लूंगा

अब जो लोग तमाशा देखने आ रहे थे हैरान रह गए
या अल्लाह अली ने तो नबी ए करीम स० की ना फरमानी कर दी
रसूल ए ख़ुदा के पास शिकायत लेकर पहुंचे या रसुल ए ख़ुदा आपने कहा था ज़बान काट दो अली ने उस गुस्ताख को दो हज़ार दरहम देकर आजाद कर दिया
मोहसिन ए कायनात मुस्कुरा उठे और फ़रमाया अली मेरी बात समझ गये
अफ़सोस है तुम्हारी समझ में नही आई
लोग परेशान होकर ये कह कर चल दिए के यही तो कहा था ज़बान काट दो अली ने तो काटी ही नहीं

अगली सुबह फ़जर की नमाज़ को जब सब लोग जमा हुए तो किया देखते हैं वो शायर बैठा वुज़ू कर रहा है फिर वो मस्जिद में जाकर नबी ए करीम स० के पांव चूमने लगता है
जेब से एक पर्चा निकाल कर कहता है ए अल्लाह के रसूल स० आपकी शान में एक नात लिख कर लाया हुं
और यूं हुआ कि अली अ० ने गुस्ताख ऐ रसुल की ज़बान काट कर उसे मिदहत ए रसूल स० वाली ज़बान में तब्दील कर दिया

मैं इल्म का शहर हूँ अली उसका दरवाज़ा
हदीस

حوالہ: دعائم الاسلام، جلد 2، صفحہ 323

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