डिस्लेक्सिया से होना है फ्री, तो दिमाग को रखें ज्यादा से ज्यादा बिजी

सेहत

नई दिल्ली: आपने आमिर खान की फिल्म ‘तारे जमीं पर’ तो देखी होगी. उस फिल्म में एक बच्चे ने ईशान नाम का किरदार निभाया था. यह फिल्म उसी बच्चे के ईद-गिर्द थी. फिल्म में ईशान उम्र के साथ बढ़ता है, लेकिन उसे लिखने और पढ़ने में बहुत कठिनाई होती है, इतना ही नहीं वह शब्दों और अक्षरों को भी गलत पढ़ता है. कई बार तो वह अपनी बात भी सही से नहीं कर पाता, क्योंकि वह शब्दों के उच्चारण भी नहीं कर पाता है. मनोविज्ञानिकों ने इस परेशानी को डिस्लेक्सिया नाम दिया है.

क्या है डिस्लेक्सिया
यह एक ऐसी अवस्था का नाम है, जिसमें बच्चों को लिखने और पढ़ने, शब्दों को पहचानने और अपने पाठ्यक्रम को याद करने में दिक्कत होती है. इस अवस्था से अगर बच्चा गुजर रहा होता है, तो यह डिस्लेक्सिया है. प्रमुख शोधकर्ता निकोला मोलिनारो के मुताबिक, भाषा को समझने और उसे बोलने के लिए मस्तिष्क को प्रशिक्षित करने वाले हिस्से का ध्वनि के साथ सामंजस्य होना बेहद जरूरी होता है. समकालीन होने पर मस्तिष्क के भाषा से संबंधित हिस्से अधिक संवेदनशील हो जाते हैं और उन्हें प्रतिक्रिया करने में समय नहीं लगता है. इस हिस्से को ब्रोका कहते हैं और यह मस्तिष्क के सामने की ओर बाईं तरफ होता है.

डिस्लेक्सिया से बचाने के वैज्ञानिक निरंतर बेहतर तरीके तलाशते रहते हैं. इसी कड़ी में किए गए एक के बाद एक शोध में विशेषज्ञों ने कहा है कि मस्तिष्क प्रशिक्षण के जरिए इस विकार से बचा जा सकता है. स्पेन के बास्क सेंटर ऑन कॉग्निशन, ब्रेन एंड लैंग्वेज (बीसीबीएल) के शोधकर्ताओं ने 72 से अधिक डिस्लेक्सिया के मरीजों पर शोध कर यह जानकारी दी.

कैसे हुआ अध्ययन
शोधकर्ताओं ने दो अलग-अलग अध्ययन किए. एक में 35 और दूसरे में 37 डिस्लेक्सिया के मरीजों को शामिल किया गया. इस दौरान सभी को छह मिनट तक अलग-अलग वाक्य सुनाए गए. इसके बाद उनके मस्तिष्क की तरंगों और सक्रियता की जांच की गई, तो पाया कि सुनने के बाद उसे बोलने की कोशिश करने से मस्तिष्क की तरंगें ज्यादा सक्रिय हो जाती हैं.

क्या कहता है अध्ययन
शोधकर्ताओं ने लंबे अध्ययन के बाद यह पाया कि निरंतर ऐसा प्रशिक्षण करने वाले इस विकार से बाहर आ रहे हैं. शोधकर्ताओं के मुताबिक, पढ़ने, लिखने और बोलने में परेशानी वाले इस विकार से बचने का सबसे अच्छा और किफायती तरीका यही है कि मस्तिष्क को ज्यादा से ज्यागा बिजी रखा जाए. मस्तिष्क अगर निरंतर सक्रिय रहेगा तो इस तरह से इस विकार से बचा जा सकता है.

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