पैग़म्बरे इस्लाम (स) की सुपुत्री हज़रत फातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के शहादत दिवस के अवसर पर भारत सहित पूरी दुनिया में मनाया जा रहा है शोक,हर तरफ मातम

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तहलका टुडे डेस्क

आज रविवार 17 जनवरी , 3 जमादिस्सानी को हज़रत फातेमा ज़हरा का शहादत दिवस है। इस अवसर पर जहां भारत के नगर लखनऊ हैदराबाद,दिल्ली,कारगिल,भोपाल,अहमदाबाद,मुम्बई,चन्नई,बेंगलेरू, कानपुर,वाराणसी,भुवनेश्वर, पटना,जोगिरामपुरी,आगरा, हुसैन टेकरी,तारागढ़,समाना सहित हर छोटे-बड़े शहरों, गांवों और इलाक़ो में शोकसभाओं का आयोजन हो रहा है वहीं दुनिया के बहुत सारे देशों में पैग़म्बरे इस्लाम (स) के परिजनों से श्रद्धा रखने वाले, मस्जिदों इमाम बाड़ों और पवित्र स्थलों में एकत्रित होकर हज़रत फातेमा ज़हरा का शोक मना रहे हैं। पैगम्बरे इस्लाम की पुत्री हज़रत फातेमा के लिए आयोजित शोक सभाओं में उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला जा रहा है और वक्ता, उनके सदगुणों पर चर्चा कर रहे हैं।

पैग़म्बरे इस्लाम (स) की की लाडली बेटी हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) के शहादत दिवस के मौक़े पर पूरे भारत में कोविड-19 की गाइडलाइनों का पालन करते हुए शोक सभाओं का आयोजन किया जा रहा है। इन शोकसभाओं में बड़ी संख्या में श्रद्धालु भाग ले रहे हैं। वहीं ईरान, पाकिस्तान, इराक़, सीरिया, लेबनान और दुनिया के बहुत सारे देशों में भी कोविड-19 की गाइडलाइनों का ख़्याल रखते हुए बड़ी संख्या में श्रद्धालु पैग़म्बरे इस्लाम (स) की लाडली बेटी का ग़म मना रहे हैं। उल्लेखनीय है कि, हज़रत फातेमा ज़हरा 20 जमादिस्सानी को हिजरत के पांचवे साल पवित्र मक्का नगर में जन्मी थीं। उन्हें उनके सदगुणों की वजह से कई उपाधियों से याद किया जाता है। हज़रत फातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा सभी मानवीय व नैतिक गुणों से सुसज्जित थीं और उपासना व आध्यात्मक के साथ ही उन्होंने विभिन्न अवसरों पर अपने पति हज़रत अली अलैहिस्सलाम के संघर्ष में उनका साथ दिया। इसी लिए उन्हें इस्लाम में महिलाओं का आदर्श कहा जाता है।

हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) की शहादत के अवसर पर तहलका टुडे की पूरी टीम संवेदना प्रकट करती है और उन पर सलवात भेजती है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने फ़रमाया है, मेरी बेटी जो कोई तुझ पर सलवात भेजेगा, ईश्वर उसपर दया करेगा और स्वर्ग में मैं जहां कहीं भी रहूंगा, वह उसे मुझसे मिला देगा।

ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम को उस काल में पुत्री प्रदान की जब लड़की का पैदा होना परिवार के लए बेइज़्ज़ती समझा जाता था। पैग़म्बरे इस्लाम अपनी लाडली बेटी का बहुत अधिक सम्मान करते थे और जब भी वह हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा को देखते थे उनके सम्मान में अपनी जगह से खड़े हो जाते थे, उनके पास जाते थे और उनके छोटे छोटे हाथों को चूमते थे और कभी अपनी लाडली बेटी को अपने सीने से लगाते थे और निरंतर चूमते रहते थे। उनका एक मशहूर कथन है कि मुझे फ़ातेमा से स्वर्ग की ख़ुशबू महसूस होती है।

हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा उस हस्ती का नाम है जिससे दुनिया भर के मुसलमान गहरी आस्था रखते हैं। बहुत से विषयों में अलग अलग मुस्लिम संप्रदायों में अलग अलग विचार हैं मगर हज़रत फ़ातेमा का व्यवक्तित्व ऐसा है जिनसे हर मुसलमान श्रद्धा रखता है बल्कि ग़ैर मुस्लिम भी उनका आदर करते हैं।
सुन्नी धर्मगुरु हाफ़िज़ मुहम्मद सईद हाशेमी इतिहास की प्रसिद्ध पुस्तक सही बुख़ारी से हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम की एक हदीस पेश करते हुए उनके गुणों को बयान करते हैं।क्या आपने चौदहवीं का चांद देखा है जो अपनी पूरी शक्ति के साथ चमकता है और पूरी दुनिया में अपनी रोशनी बिखेरता रहता है। धीरे धीरे चांद की उम्र कम होने लगती है और वह आधा हो जाता है, इसके बाद चांद का वह आधा हिस्सा भी धीरे धीरे ख़त्म होने लगता है यहां तक कि वह नज़रों से ओझल हो जाता है। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा पैग़म्बरे इस्लाम के लिए चौदहवीं के उसी चांद की तरह थीं। पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के बाद उनकी लाडली की ज़िदगी में अजीबो ग़रीब घटनाएं घटीं। उस ज़माने के लोगों पर निश्चेतना ने अपनी चादर तान ली थी।

यह पैग़म्बरे इस्लाम की वही बेटी हैं जिन्हें वह अपने पिता की माता और अपने जिगर का टुकड़ा कहा करते थे। पैग़म्बरे इस्लाम कहते थे कि हे फ़ातेमा! निश्चित रूप से ईश्वर तुम्हारे क्रोध से क्रोधित और तुम्हारी प्रसन्नता से प्रसन्न होता है। पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के बाद एक अंधेरी रात में कुछ लोगों ने उस घर पर हमला कर दिया जिसका सम्मान ख़ुद पैग़म्बरे इस्लाम किया करते थे।
प्रोफ़ेसर मसऊद अख़्तर हज़ारवी, लंदन के अलहिरा एजुकेश्नल एंड कल्चरल सेन्टर में हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा को महिलाओं के लिए आदर्श बताते हुए कहते हैं कि आज की महिलाओं को उन्हें अपना आदर्श बना लेना चाहिए। पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा कि जो भी फ़ातेमा से श्रद्धा रखेगा वह स्वर्ग में मेरे साथ होगा और जो उनसे दुश्मनी रखेगा उसका ठिकाना नर्क है। इतिहास में लिखा है कि जब भी हज़रत फ़ातेमा जह़रा (स) अपने पिता पैग़म्बरे इस्लाम के पास जाती थीं वह खड़े होकर उनका स्वागत करते, उनका माथा चूमते और उनका हाथ पकड़ कर उन्हें उस जगह बिठाते जहां वह स्वयं बैठे होते। यात्रा पर जाने से पहले पैग़म्बरे इस्लाम सब से अंत में अपनी बेटी से मिलते जब लोगों ने पैग़म्बरे इस्लाम से यह पूछा कि आप किसे सब से ज़्यादा चाहते हैं? तो वे हमेशा यही जवाब देते, अपनी बेटी फ़ातेमा को। शायरे मशरिक़ अल्लामा इक़बाल ने भी हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के बारे में अनेक शेर कहे और महिलाओं से कहा कि उनके गुणों से सुसज्जित हों ताकि आपकी गोद में भी इमाम हसन और हुसैन जैसे बेटे परवरिश पाएं। प्रोफ़ेसर मसऊद अख़्तर हज़ारवी अपने संबोधन में इस तरफ़ इशारा करते हुए कहते हैं।

पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैही व आलेही व सल्लम की इस बेटी पर, पैग़म्बरे इस्लाम की शहादत के कुछ ही दिनों बाद इतने दुखों के पहाड़ तोड़े गये कि नबी की इस प्यारी बेटी को यह कहना पड़ा कि बाबा! आप के बाद मुझ पर इतनी मुसीबतें पड़ीं कि अगर दिनों पर पड़ती तो वह रात बन जाते। हज़रत फ़ातेमा पर हर तरह फ़ातेमा एक बेटी थीं, एक ऐसी बेटी जिनकी कोई मिसाल नहीं मिलती। शिष्टाचार के शिखर पर विराजमान, पवित्रता और गुणों से सुसज्जित। वे रचना और इंसानियत की पहेली का रहस्य थीं। उनका लक़ब उम्मे अबीहा था, जो पैग़म्बरे इस्लाम ने उन्हें प्रदान किया था। यह वही हस्ती थी, पैग़म्बर ने अनेक बार जिसके हाथों को चूमा था और फ़रमाया था कि फ़ातेमा अपने बाप की जान है, उसका बाप उस पर क़ुर्बान। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के बारे में हज़रत आएशा के हवाले से एक हदीस है जिसे सही बुख़ारी में नक़्ल किया गया है। इस तरफ़ सुन्नी धर्मगुरु हाफ़िज़ मुहम्मद सईद हाशेमी इशारा करते हुए कहते हैं। मदीना शहर अभी ईश्वरीय दूत पैग़म्बरे इस्लाम को खोने के ग़म में डूबा हुआ था कि एक दूसरी त्रासदी ने इस पवित्र शहर को अपनी चपेट में ले लिया और उनकी लाडली बेटी हज़रत फ़ातेमा ज़हरा परलोक सिधार गईं।

हज़रत फ़ातेमा जह़रा (स) ने अपने जीवन के अंतिम क्षणों में अपने पति हज़रत अली अलैहिस्सलाम को अपने पास बुलाया, हज़रत अली की आंखों से आंसू जारी थे इसी दशा में वह हज़रत फ़ातेमा जह़रा (स) के पास पहुंचे तो उन्होंने  हज़रत अली अलैहिस्सलाम से कहा: मेरा जीवन बस कुछ ही क्षणों में समाप्त होने वाला है, कुछ वसीयत करना चाहती हूं। हज़रत अली ने कहा : जो दिल में है वह बयान कीजिए। हज़रत फ़ातेमा जह़रा (स) ने कहाः आप ने कभी मुझ से झूठ नहीं सुना और न ही बुराई देखी है और जब से मैंने आप के साथ संयुक्त जीवन आरंभ किया, आप की किसी बात का विरोध मैंने नहीं किया। हज़रत फ़ातेमा जह़रा (स) ने कहाः ” जिन लोगों ने मेरे साथ अन्याय किया है और मेरे अधिकारों का हनन किया है उन्हें मेरी नमाज़े जनाज़ा में मत आने दीजिए, वह मेरे दुश्मन और पैग़म्बरे इस्लाम के दुश्मन हैं। वह मेरी नमाज़े मैयत में भी भाग न लें, हे अली जब रात को आंखें सो जाएं तब आप मुझे दफ़्न करिएगा।” हज़रत फातेमा ज़हरा के दर्द को उनकी वसीयत से समझा जा सकता है। यह इस्लाम की सब से महान आदर्श महिला की संक्षिप्त जीवनी है जिसने अपने कुछ दिनों के जीवन में रहती दुनिया तक के लिए उदाहरण स्थापित कर दिया।

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