देश का शरीफ और ईमानदार इन्सान जिस पर मुसलमानो को भी हैं नाज़,उस अटल बिहारी बाजपेयी को हिंदुस्तान का आखिरी सलाम,देखिये दुनिया और ज़िन्दगी अटल की ही जुबानी

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तहलका टुडे टीम

नई दिल्लीः पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी  एम्स में जिंदगी मौत की जंग लड़ रहे है. 93 वर्षीय वाजपेयी को बीती रात से लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखा गया है. एम्स अबसे थोड़ी देर में उनका मेडिकल बुलेटिन जारी करेगा. इससे पहले देर रात एम्स ने मेडिकल बुलेटिन जारी करके जानकारी दी थी कि पिछले 24 घंटों से उनकी स्थिति बिगड़ती जा रही है. उनकी हालत नाजुक है और वह लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर हैं.

किडनी, यूरिन पाइप में संक्रमण और छाती में जकड़न की शिकायत के बाद 11 जून से वह एम्स में भर्ती हैं. वाजपेयी बहु प्रतिभावान शख्सियत हैं. एक राजनेता के साथ ही वह बेहतरीन वक्ता और कवि के तौर पर भी जाने जाते हैं. उनके जीवन का सफर एक राजनेता से शुरु होकर एक कवि के पायदान तक पहुंचा. ‘मैं गीत नया गाता हूं’ और ‘दूध में दरार पड़ गई’ जैसी कविताएं लोगों के बीच काफी मशहूर रहीं. वाजपेयी की ऐसी ही कुछ बेहतरीन कविताएं ने उन्हें जनमानस के बीच एक कवि के रुप में स्थापित किया.

भारत को परमाणु देश बनाया
बीजेपी के संस्थापक सदस्यों में शामिल अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार साल 1996 में देश के पीएम बने. दूसरी बार साल 1998 में पीएम बने और चुनाव में जीत के बाद तीसरी बार साल 1999 में पीएम बने और साल 2004 तक पद पर बने रहे. वाजयेपी ऐसे अकेले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने पूरा 5 साल का अपना कार्यकाल पूरा किया. साल 1996 चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी.

जब-जब भारत की परमाणु शक्ति होने का जिक्र होगा वाजपेयी का जिक्र इसके साथ शामिल होगा. 11 मई 1998 को राजस्थान के पोखरण में तीन बमों के सफल परीक्षण के साथ भारत परमाणु शक्ति बन गया. ऐसे में भारत को परमाणु राष्ट्र बनाने वाले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी हैं . एक प्रधानमंत्री के तौर पर उनका ये एक बेहद साहासिक कदम रहा.

एक कवि के रुप में वाजपेयी
अटल बिहारी वाजपेयी कई सार्वजनिक मंच पर कविताएं पढ़ चुके हैं. वे राजनेता के साथ ही एक पत्रकार , कवि और बेहतरीन वक्ता भी रहे. उनकी ऐसी ही कुछ कविताएं जिन्होंने उन्हे कवि के रुप में भी पहचान दिलाई.

 

पहली अनुभूति

 

बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं
टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूं
गीत नहीं गाता हूं

 

लगी कुछ ऐसी नज़र बिखरा शीशे सा शहर
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूं
गीत नहीं गाता हूं

 

पीठ मे छुरी सा चांद, राहू गया रेखा फांद
मुक्ति के क्षणों में बार बार बंध जाता हूं
गीत नहीं गाता हूं

 

दूसरी अनुभूति

 

गीत नया गाता हूँ

 

टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर ,
पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर,
झरे सब पीले पात,
कोयल की कूक रात,
प्राची में अरुणिमा की रेख देख पाता हूं.
गीत नया गाता हूँ.
टूटे हुए सपनों की सुने कौन सिसकी?
अंतर को चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी.
हार नहीं मानूँगा,
रार नहीं ठानूँगा,
काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ.
गीत नया गाता हूँ.

 

मौत से ठन गई
ठन गई!
मौत से ठन गई!

 

जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,

 

रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई.

 

मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं.

 

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ,
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?

 

तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आज़मा.

 

मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर.

 

बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं.

 

प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला.

 

हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए.

 

आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,
नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है.

 

पार पाने का क़ायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफ़ाँ का, तेवरी तन गई.

 

मौत से ठन गई.

 

दूध में दरार पड़ गई

ख़ून क्यों सफ़ेद हो गया?
भेद में अभेद खो गया.
बँट गये शहीद, गीत कट गए,
कलेजे में कटार दड़ गई.
दूध में दरार पड़ गई.

 

खेतों में बारूदी गंध,
टूट गये नानक के छंद
सतलुज सहम उठी, व्यथित सी बितस्ता है.
वसंत से बहार झड़ गई
दूध में दरार पड़ गई.

 

अपनी ही छाया से बैर,
गले लगने लगे हैं ग़ैर,
ख़ुदकुशी का रास्ता, तुम्हें वतन का वास्ता.
बात बनाएँ, बिगड़ गई.
दूध में दरार पड़ गई.

 

झुक नहीं सकते

 

टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते

 

सत्य का संघर्ष सत्ता से
न्याय लड़ता निरंकुशता से
अंधेरे ने दी चुनौती है
किरण अंतिम अस्त होती है

 

दीप निष्ठा का लिये निष्कंप
वज्र टूटे या उठे भूकंप
यह बराबर का नहीं है युद्ध
हम निहत्थे, शत्रु है सन्नद्ध
हर तरह के शस्त्र से है सज्ज
और पशुबल हो उठा निर्लज्ज

 

किन्तु फिर भी जूझने का प्रण
अंगद ने बढ़ाया चरण
प्राण-पण से करेंगे प्रतिकार
समर्पण की माँग अस्वीकार

 

दाँव पर सब कुछ लगा है, रुक नहीं सकते
टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते

 

कदम मिलाकर चलना होगा

 

बाधाएं आती हैं आएं
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.

 

हास्य-रूदन में, तूफानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.

 

उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.

 

सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.

 

कुछ कांटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा.
क़दम मिलाकर चलना होगा.

 

जीवन की ढलने लगी सांझ

 

जीवन की ढलने लगी सांझ
उमर घट गई
डगर कट गई
जीवन की ढलने लगी सांझ.

 

बदले हैं अर्थ
शब्द हुए व्यर्थ
शान्ति बिना खुशियाँ हैं बांझ.

 

सपनों में मीत
बिखरा संगीत
ठिठक रहे पांव और झिझक रही झांझ.
जीवन की ढलने लगी सांझ.

 

एक बरस बीत गया

 

झुलासाता जेठ मास
शरद चांदनी उदास
सिसकी भरते सावन का
अंतर्घट रीत गया
एक बरस बीत गया

सीकचों मे सिमटा जग
किंतु विकल प्राण विहग
धरती से अम्बर तक
गूंज मुक्ति गीत गया
एक बरस बीत गया

पथ निहारते नयन
गिनते दिन पल छिन
लौट कभी आएगा
मन का जो मीत गया
एक बरस बीत गया

 

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