हॉगकांग : चीन की मंशा को पहचानकर ताइवान एशिया के ताकतवर देशों से मजबूत संबंध बनाने पर ध्यान दे रहा है। क्योंकि ताइवान को अपने देश में शामिल करने के चीनी मंशूबें को वह पहचान गया है। चीन द्वारा ताइवान को दुनिया से अलग-थलग करने की रणनीति अपनाई जा रही है।
लिहाजा, ताइवान भारत और जापान के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया और सिंगापुर पर भी नजर बनाए हुए है। दरअसल, पिछले कुछ वक्त में चीन ताइवान के कुछ करीबी देशों को विभिन्न लालच देकर उससे दूर करने में कामयाब हुआ है। इतना ही नहीं उसने ताइवान के आसपास अपनी सैन्य सक्रियता भी तेज की है।
चीन ने पिछले महीने लैटिन अमेरिकी देश अल-सल्वाडोर को अपनी तरफ किया। इससे पहले मई में केरेबियाई देश डोमनिकन गणराज्य और पनामा ने ताइवान का साथ छोड़कर चीन को नया दोस्त बनाया था। फिलहाल ताइवान के सिर्फ 17 देशों से राजनयिक संबंध हैं, जिनमें से 6 तो छोटे से द्वीप हैं।
एशिया के मजबूत देशों से संबंध मजबूत करने पर ताइवान के अधिकारी ने कहा, ‘ताइवान अपने पुराने साथियों को एकजुट नहीं रख पा रहा, इस वजह से क्षेत्र की बड़ी शक्तियों से रणनीतिक संबंध मजबूत किए जा रहे हैं।
इसी बीच ताइवान भारत से अपने संबंध मजबूत करने पर ध्यान दे रहा है। खबरों के मुताबिक, भारतीय सैन्य अधिकारी भी आधिकारिक पासपोर्ट की जगह सामान्य पासपोर्ट पर ताइपे आना-जाना कर रहे हैं।
भारत को उम्मीद है कि ताइवान हमें चीनी गतिविधियों, उनकी सेना की मौजूदगी कहां-कहां पर है और उनके हथियारों के बारे में जानकारी दे सकता है। वहीं ताइवान के अधिकारियों ने अपने सबमरीन प्रोग्राम में जापानी विशेषज्ञों को शामिल किया है।
सिंगापुर पहले ही ताइवान को इशारों-इशारों में कह चुका है कि वह उनके क्षेत्र में अपनी सेना की मौजूदगी रखना चाहता है। सिंगापुर यह सब चीन की नाराजगी के बावजूद करने को तैयार है। वहीं ऑस्ट्रेलिया, जिसके अमेरिका से भी अच्छे संबंध हैं वह फिलहाल मामले पर खुलकर कुछ नहीं बोल रहा।
लेकिन उसके भी ताइवान के साथ आने के संकेत हैं। बता दें कि ताइवान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहले भी कई बार चीन के खिलाफ बोल चुका है।
इसी साल जुलाई में ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग वेन ने चीन को लोकतंत्र के लिए वैश्विक खतरा बताते हुए अंतरराष्ट्रीय समुदाय से आजादी के लिए उसके शक्तिशाली पड़ोसी पर दबाव डालने का आग्रह किया।