विदेशी नीति बांग्लादेशियो पर मोदी का रहम ,बन गया शेख हसीना से मोहब्बत का सबब ,पाकिस्तान के मुहं पर तमाचा

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नौ सालों से बांग्लादेश की कमान शेख हसीना के हाथों में है और इस दौरान भारत के साथ मुहं में क्रांतिकारी बदलाव आए हैं. इन नौ सालों में दोनों देशों के बीच कई समझौतों पर हस्ताक्षर हुए और कइयों को लगता था कि ये संभव नहीं है.

शेख हसीना भारत के दौरे पर आई हैं और उन्होंने कहा है कि दोनों देशों का द्विपक्षीय संबंध बाक़ी दुनिया के लिए एक मॉडल की तरह है.

शेख हसीना की सूझ-बूझ के कारण बांग्लादेश की भी आर्थिक सेहत सुधरी है और पिछले नौ सालों में मुल्क को कोई मंदी का सामना नहीं करना पड़ा.

दोनों देशों के बीच ज़मीन की अदला-बदली हुई, सड़क मार्ग से संपर्क बहाल हुआ, चटगांव और मोंगला बंदरगाह को लेकर सहमति बनी, रक्षा समझौते हुए और साथ ही पूर्वोत्तर के राज्यों में अलगाववादियों से निपटने के लिए बांग्लादेश भारत को मदद देने को तैयार हुआ.

बांग्लादेश की पूर्व राजदूत नसीम फिरदौस का मानना है कि पिछले नौ सालों में भारत और बांग्लादेश के संबंध नई ऊंचाई पर पहुंचे हैं.

फिरदौस कहती हैं कि मनमोहन सरकार के जाने और मोदी सरकार के आने के बाद बांग्लादेश में एक किस्म की आशंका थी कि संबंध पटरी से उतर जाएंगे. लेकिन फिरदौस मानती हैं कि भारत में सरकार बदलने के बावजूद संबंध पटरी से नहीं उतरे.

फिरदौस मानती हैं कि दोनों देशों के बीच ज़मीन के आदान-प्रदान और समुद्री सीमाओं पर सार्थक पहल बड़ी उपलब्धियां हैं. वो कहती हैं कि हाल के वर्षों में दोनों देशों के नागरिकों की आवाजाही बढ़ी है.

भारत सरकार ने बांग्लादेश के नागरिकों को वीजा देने की प्रक्रिया को भी पहले की तुलना में सरल बनाया है.

हालांकि इसके साथ ही वो तबका भी है जो भारत विरोधी भावना से ग्रसित है और बल्कि ये भावना इनमें बढ़ी है. देश के भीतर शेख हसीना सरकार की तीस्ता नदी और रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर कड़ी आलोचना होती है.

रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर उस तबके को लगता है कि शेख हसीना भारत से म्यांमार पर दबाव डलवाने में नाकाम रही हैं. इसके साथ ही बांग्लादेश में यह भी एक अवधारणा है कि यहां के सत्ता परिवर्तन में भारत की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ज़रूर भूमिका रहती है.

बांग्लादेश के पूर्व राजदूत हुमायूं कबीर मानते हैं कि दोनों देशों के आम लोगों के बीच काफ़ी मधुर संबंध हैं. हालांकि उनका मानना है कि यहां के आम लोग ऐसा नहीं मानते हैं कि पांच जनवरी 2014 को बांग्लादेश में हुए आम चुनाव में भारत की कोई भूमिका थी.

कबीर कहते हैं, ”एक स्वतंत्र देश के नागरिक इस बात को कभी पसंद नहीं करेंगे कि उनके यहां होने वाले चुनाव में कोई दूसरा देश हस्तक्षेप करे. यह संबंध दो सरकारों और देशों के स्तर पर कायम हुआ है. कोई भी द्वीपक्षीय संबंध टिकाऊ और विश्वसनीय तभी होता है जब दोनों देशों के लोग इस बात को महसूस करें कि उन्हें इससे फ़ायदा हो रहा है.”

 

बांग्लादेश के 98 फ़ीसदी उत्पाद बिना कोई शुल्क के भारतीय बाज़ार में आते हैं. दोनों देशों के बीच मधुर संबंध से आर्थिक हित भी जुड़े हुए हैं. इसी साल बांग्लादेश में आम चुनाव होने वाले हैं.

बांग्लादेश में कई लोग हैं जो इस बात को मानते हैं कि भारत, बांग्लादेश के चुनाव को लेकर सक्रिय रहता है. अवामी लीग का भारत के साथ रिश्ता किसी से छुपा हुआ नहीं है.

बांग्लादेश के एक और पूर्व राजदूत एमडी ज़मीर जो कि सत्ताधारी पार्टी अवामी लीग के सलाहकार परिषद के सदस्य भी हैं, उनका कहना है कि स्थिर बांग्लादेश भारत के हक़ में है. ज़मीर कहते हैं कि बांग्लादेश की आर्थिक और राजनीतिक स्थिरता भारत को स्थिर बनाने में मददगार साबित होती है.

2009 में शेख हसीना के सत्ता में आने के बाद बांग्लादेश ने भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के अलगाववादी संगठनों पर लगाम लगाई. हालांकि बांग्लादेश ने इसको कभी रेखांकित नहीं किया.

बांग्लादेश का अलगाववादियों को पकड़कर भारत के हवाले करना भारत के लिए किसी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं था. ज़मीर कहते हैं कि भारत कभी नहीं चाहेगा कि बांग्लादेश अस्थिर रहे और भारत ये भी जानता है कि वर्तमान सरकार के नेतृत्व में ही बांग्लादेश स्थिर रह सकता है.

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