लखनऊ: राजनीति की रपटीली राहों में कुछ नेता ऐसे भी हैं जिनका संतुलन कुछ ऐसा रहता है कि सत्ता के वह हमेशा दुलारे बने रहते हैं. उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता नरेश अग्रवाल भी कुछ ऐसे ही हैं. उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सरकार है. कुछ दिन पहले तक नरेश अग्रवाल लखनऊ से लेकर दिल्ली तक बीजेपी नेताओं को फूटी आंखों नहीं सुहाते थे. हिंदू देवी-देवताओं को लेकर दिए एक बयान पर बीजेपी नेता उनसे माफी की मांग कर रहे थे. इतना ही नहीं राज्यसभा सांसद नरेश अग्रवाल हर मुद्दे पर बीजेपी की राह में रोड़ा अटकाने से नहीं चूक रहे थे. लेकिन अब वह बीजेपी के साथ हैं. उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के रहने वाले नरेश अग्रवाल सात बार विधायक चुने जा चुके हैं. उनके बेटे भी अखिलेश सरकार में मंत्री रह चुके हैं. लेकिन 23 मार्च को राज्यसभा चुनाव होना है. ये चुनाव इस बार ऐसा है कि समीकरणों के साथ अंकगणित का भी खेल है. कुछ भी लेकिन नरेश अग्रवाल के लिए यह एक बार फिर से सुनहरा मौका बनकर आया है और अब बीजेपी के साथ सत्ता के रथ पर सवार हो गए हैं. लेकिन इस खेल के माहिर खिलाड़ी नरेश अग्रवाल ने ऐसा पहली बार नहीं किया है. समाजवादी पार्टी ने इस बार उन्हें राज्यसभा का टिकट नहीं दिया है तो वह नाराज हो गए है. माना जा रहा है कि 2019 के चुनाव में नरेश अग्रवाल को बीजेपी का लोकसभा का चुनाव लड़ा सकती है. हालांकि अग्रवाल का दावा है कि वह बीजेपी में बिना किसी शर्त के शामिल हुए हैं. साथ ही यह भी ऐलान किया है कि उनका बेटा जो कि सपा विधायक है, राज्यसभा चुनाव में बीजेपी को समर्थन करेगा.
कितनी बार नरेश अग्रवाल ने बदला पाला
- 38 साल के राजनीतिकर सफर में नरेश अग्रवाल ने चार बार पार्टियां बदल चुके हैं और एक बार अपना दल भी बना चुके हैं. 1980 में वह पहली बार हरदोई से कांग्रेस के टिकट से विधायक चुने गए थे. 1997 में कांग्रेस के विधायकों को नई पार्टी बनाई और कल्याण सिंह को विश्वास मत हासिल करने में मदद की. वह कल्याण सिंह, राम प्रकाश गुप्ता और राजनाथ सिंह के शासनकाल में ऊर्जा मंत्री रहे.
- 2002 में हवा का रुख भांपते हुए वह सपा में चले गए और विधायक का चुनाव जीता और मुलायम सिंह की सरकार में परिवहन मंत्री बन गए.
- 2007 के विधानसभा चुनाव में वह समाजवादी पार्टी के टिकट पर हरदोई से विधायक चुने गए. लेकिन सरकार बन गई बहुजन समाज पार्टी की. लेकिन अग्रवाल ज्यादा दिन तक सत्ता से दूर नहीं रह पाए और बसपा में शामिल हो गए.
- लेकिन फिर 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा का पलड़ा भारी देखा और उन्होंने बसपा छोड़ दिया. इस बार उनके बेटा नितिन अग्रवाल भी सपा में शामिल हो गया. इस बार अग्रवाल को खूब फायदा मिला. बेटे को अखिलेश सरकार में मंत्री पद मिला तो उनको पार्टी ने राज्यसभा भेज दिया. इतना ही नहीं उनको सपा का राष्ट्रीय महासचिव बना दिया गया.