हिंदुस्तानी जायरीनों की बसों पर लेबनान में हमला,फरिश्ते बने हिजबुल्लाह,हिफाज़त से पहुचाया बेरुत एयरपोर्ट 

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शुजा अब्बास की रिपोर्ट

बेरुत-लेबनान देश की राजनीति में व्यापक भ्रष्टाचार को लेकर लेबनान में विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला इसी महीने 17 अक्टूबर को शुरू हुआ था जो आज तक जारी है,बीते 13 दिनों से सरकार का पूरा काम काज ठप्प हो गया है, यहां तक कि बैंक और स्कूल कॉलेज के साथ कारोबार भी बंद पड़े हैं.दो हफ्ते से लगातार चले रहे विरोध प्रदर्शनों और देश में कामकाज लगभग रुक जाने के बाद लेबनान के प्रधानमंत्री ने आखिरकार इस्तीफा देने का एलान कर दिया है.

मालूम हो अरबाईंन के लिए कर्बला गये हिंदुस्तानी लोगो का काफिला इराक के बाद सीरिया हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्लाम की बेटी जनाबे सकीना और उनकी बहन जनाबे ज़ैनब के रोज़े पर ज़ियारत करने गया था।
वहाँ से वापसी के वक़्त रास्ते मे  बसों पर तोड़ फोड़ शुरू हो गयी यहाँ फरिश्ते बनकर आये हिजबुल्लाह के लोगो ने आतंकियो से और बसों को जलने से बचाया और उनको पहाड़ो पर से लेकर आज सुबह सात बजे बेरुत एयरपोर्ट पहुचाया।
लखनऊ की ज़ायरीन डॉ फरहा नक़वी ने बताया की सिर्फ अल्लाह का करम और हज़रत जनाबे ज़ैनब और जनाबे सकीना का करिश्मा था जिनकी ज़ियारत में हम लोग आये थे,

खैरियत से एयरपोर्ट पहुँच गये,काफिले में सभी लोग खैरियत से है ख़ुदा का शुक्र है।

मालूम हो लेबनान में सोशल मीडिया पर रोक लगाए जाने से बौखलाए लोगों ने एक पूरे बेरुत शहर को आग के हवाले कर दिया है। इससे पनपी हिंसा की चपेट में पूरा शहर आ गया है। भारी जान माल के नुकसान के बाद सरकार ने टैक्‍स लगाने के फैसले को वापस ले लिया, लेकिन सरकार से गुस्‍साए लोगों ने मोर्चा खोल रखा है। लोगों को संभालने के लिए आर्मी समेत अन्‍य फोर्सेस को लगाया है।
लेबनान सरकार के खिलाफ जनता ने मोर्चा खोला लंबे समय से आर्थिक संकट झेल रहे मिडिल ईस्‍ट के देश लेबनान ने इससे निपटने के लिए कमेटी गठित की। कमेटी ने सरकार को सलाह दी कि लोग सोशल मीडिया के बिना नहीं रह पा रहे हैं। जानकारों के मुताबिक कमेटी की ओर से दी गई सलाह में कहा गया कि लोगों पास भले ही समुचित संसाधन नहीं लेकिन वह सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं। इससे उन्‍हें ज्‍यादा समय तक मोबाइल, लैपटॉप जैसे गैजेट्स में समय बिता रहे हैं। वह अपने रोजगार और नए आईडियाज पर काम करने की बजाय सोशल मीडिया पर जाकर एंज्‍वॉय कर समय गवां दे रहे हैं। इसके अलावा गैजेट्स के ज्‍यादा इस्‍तेमाल से लोग तमाम बीमारियों से भी ग्रसित होते जा रहे हैं। लोगों का समय और पैसा बचाकर आर्थिक संकट से निपटा जा सकता है।
फोन कॉल्‍स पर टैक्‍स लगाने से भड़के लोग सरकार ने इस सलाह पर गौर किया और फेसबुक मैसेंजर, वॉट्सएप समेत अन्‍य सोशल मीडिया एप्‍स पर टैक्‍स लगाने का हुक्‍म जारी कर दिया। इसके अलावा एप्‍स के जरिए फोल कॉल्‍स पर टैक्‍स की घोषणा कर दी गई। ऐप बेस्ट कॉलिंग पर प्रतिदिन लोगों को 0.20 डॉलर (भारतीय मुद्रा में 14.16 रुपये) का टैक्स देने का आदेश जारी किया गया।
रिपोर्ट्स के मुताबिक सरकार के इस फैसले से गुस्‍साए लोग लेबनान की राजधानी बेरुत में एकजुट हो गए। और मुख्‍य सरकारी भवन के सामने प्रदर्शन करने लगे। इस बीच सुरक्षाबलों से हुई झड़प ने हिंसक रूप ले लिया।
हिंसा और आग की चपेट में आई राजधानी पहले से ही रोजगार संकट से जूझ रहे लोग सरकार से नाराज थे और अब सरकार के नए आदेश से उनका गुस्‍सा चरम पर पहुंच गया। बेरुत में देखते ही देखते लोग सड़कों पर उतरे और शहर को आग के हवाले कर दिया। सुरक्षाबलों से हिंसक झड़प के बाद प्रदर्शनकारियों ने सरकारी भवनों, वाहनों, दफ्तरों और कम्‍युनिटी सेंटर्स में आग लगा दी। बड़े पैमाने पर आगजनी के चलते राजधानी बेरुत के आसमान पर काला धुआं छा गया। प्रदर्शन‍कारियों के भयंकर गुस्‍से को भांप सरकार ने टैक्‍स लगाने का फैसला वापस ले लिया, बावजूद गुस्‍साए लोगों का प्रदर्शन रुकने का नाम नहीं ले रहा है। विश्‍व समुदाय ने चिंता जताई प्रदर्शनकारियों बेरुत में संसद के सामने इकट्ठा होकर प्रधानमंत्री सद अलहीरो से इस्‍तीफे की मांग की है।
प्रधानमंत्री ने लोगों से कहा है कि हम मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं। उन्‍होंने इस्‍तीफा देने से इनकार करते हुए लोगों से संयम बरतने की अपील की है। संयुक्‍त अरब अमीरात ने लेबनान में जारी हिंसा को देखते हुए अपने लोगों के लिए एडवायजरी जारी की है। बेरुत में यूएई के उच्‍चायुक्‍त हमद सइद सुल्‍तान अल शम्‍सी ने अपने लोगों की सुरक्षित वापसी के लिए यूएई ने बेरुत में कैंप भी बनाए जाने की बात कही है। करीब 150 लोगों को वतन वापस लाया गया है। इसी तरह अन्‍य देशों ने भी हिंसा पर चिंता जताते हुए अपने नागरिकों की सुरक्षा के इंतजाम करने और उनकी वापसी के प्रयास शुरू कर दिए हैं।.

सु्न्नी राजनेता साद अल हरीरी ने टेलीविजन पर राष्ट्र को संबोधित किया. उन्होंने कहा, “लेबनान के लोगों ने (अर्थव्यवस्था में) गिरावट को रोकने के लिए राजनीतिक समाधान के इस फैसले का पिछले 13 दिन से इंतजार किया है. मैंने इस दौरान लोगों की आवाज सुन कर यह कोशिश की है ताकि कोई रास्ता निकले.” उन्होंने यह भी कहा, “हमारे लिए अब समय आ गया है कि हमें एक झटका लगे, हम संकट का सामना करें. मैं बादबा (प्रेसिडेंशियल) पैलेस जा रहा हूं, सरकार का इस्तीफा देने. राजनीतिक जीवन में हमारे सभी सहयोगियों की और हमारी जिम्मेदारी है कि हम लेबनान की रक्षा करें और अर्थव्यवस्था को खड़ा करें.”

इससे पहले शिया मुसलमानों के गुट हिज्बुल्ला की वफादार माने जाने वाली एक भीड़ ने बेरुत में प्रदर्शनकारियों के एक शिविर पर हमला कर उसे तहस नहस कर दिया. सेंट्रल बेरूत में काले कपड़े पहने कुछ लोगों की भीड़ ने हाथों में डंडे और पाइप ले रखे थे और उन्होंने विरोध करने जमा हुए कार्यकर्ताओं के शिविर पर हमला कर दिया. यह शिविर पिछले कुछ दिनों से चल रहे प्रदर्शनों के केंद्र में है. पिछले हफ्ते हिज्बुल्ला के नेता सैयद हसन नसरल्ला ने कहा था कि प्रदर्शनकारियों ने जिन सड़कों को बंद किया था, उन्हें खोला जाना चाहिए. नसरल्लाह का यह भी कहना है कि प्रदर्शनकारियों को विदेशी दुश्मनों से पैसा मिल रहा है और वो उनका एजेंडा चला रहे हैं. 2008 में हिज्बुल्ला ने राजधानी बेरुत का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया था, उसके बाद से यह बेरुत की सड़कों पर अब तक का सबसे बड़ा संघर्ष कहा जा रहा है.

देश 1975-90 में हुए गृहयुद्ध के बाद पहली बार इतनी खराब आर्थिक स्थिति का सामना कर रहा है. लेबनानी मुद्रा पाउंड की हालत बेहद खराब है. बीते महीनों में डॉलर का एक काला बाजार भी उभर आया है. विदेशी मुद्रा का कारोबार करने वाले तीन डीलरों ने बताया कि सोमवार को एक डॉलर 1700 लेबनानी पाउंड में मिल रहा था जो मंगलवार को 1800 तक चला गया जबकि डॉलर की आधिकारिक कीमत 1507.5 पाउंड ही है.

हरीरी का इस्तीफा एक तरह से ताकतवर हिज्बुल्ला की नाफरमानी है क्योंकि नसरल्लाह ने चेतावनी दी थी कि इस तरह के कदम से सत्ता के गलियारे में एक खतरनाक खालीपन आएगा. संविधान के मुताबिक हरीरी की कैबिनेट अगली सरकार का गठन होने तक कार्यवाहक सरकार के रूप में काम करती रहेगी. हरीरी ने पिछले हफ्ते कुछ सुधारों का एलान कर लोगों की नाराजगी दूर करने की कोशिश की थी. इसमें गठबंधन सरकार के सहयोगी दलों को भी भरोसे में लिया गया था. इन कदमों में भ्रष्टाचार के खिलाफ कदम उठाने और आर्थिक सुधारों की बात थी. हालांकि इन पर तुरंत कदम ना उठाए जाने की वजह से प्रदर्शनों को शांत नहीं किया जा सका और विरोध करने वाले सरकार के इस्तीफे पर अड़ गए.

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