15 रजब, हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाहे अलैहा की शहादत,हाये अफसोस सो रही हैं शिया क़ौम,महिलाओं की आदर्श,पर्दे में छुपा सूरज की पढिये पूरी दास्तान,दिल होगा मज़बूत,छलक आएंगे आंसू

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मरयम फ़ात्मा

आज हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाहे अलैहा की शहादत का दिन हैं,हम देख रहे हैं आज के दिन व्हाट्सएप, फेस बुक पर अकीदत का इज़हार करने वाली शिया क़ौम सो रही हैं।हर तरफ सन्नाटा हैं,मजलिसों में बिरयानी और शीरमाल बाटने वाले और खूब ज़ायका लेकर खाने वालो के 13 रजब से ऐसा पेट भरे हैं कि बदहज़मी और शुगर बढ़ जाने से  लुंज पुंज पड़े  अभी थकान निकाल रहे है।इस अज़ीम हज़रत ज़ैनब की शहादत को भुला बैठे हैं।

आइये  पढिये  हज़रत ज़ैनब की ज़िंदगी

परवरिश इन महान हस्तियों की छत्र छाया में हुई।

उनके नाना पैग़म्बरे इस्लाम, पिता हज़रत अली और माता हज़रत फ़ातेमा ज़हेरा संपूर्ण मानव जाति की महानतम हस्तियां थीं। अतः हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाहे अलैहा की परवरिश अध्यात्म के प्रकाश और पवित्रता की ज्योति में हुई।

हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाहे अलैहा का जन्म वर्ष पांच या छह हिजरी क़मरी में जमादिल औवल महीने के 5 तारीख़ को मदीना नगर में हुआ। उनके जन्म पर इमाम हुसैन की ख़ुशी सबसे ज़्यादा थी। वह दौड़ते हुए हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पास पहुंचे और उत्साह से चिल्लाते हुए कहा कि अल्लाह ने मुझे एक बहन दी है। मां हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने    अपने पति हज़रत अली अलैहिस्सलाम से कहा कि हे अली! हम अपनी बेटी का क्या नाम रखें? हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उत्तर दिया कि हमारी बेटी का नाम पैग़म्बरे इस्लाम रखेंगे। मैं बेटी का नाम रखने में पहल नहीं कर सकता। पैग़म्बरे इस्लाम उस समय कहीं गए हुए थे। जब वापस आए तो घर पहुंचते ही सीधे अपनी बेटी हज़रत फ़ातेमा के घर पहुंचे। उन्हें अपनी नवासी के जन्म की ख़बर मिल गई थी। पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा कि बेटी फ़ातेमा बच्ची का मेरे पास लाओ मैं उसे देखना चाहता हूं।

हज़रत फ़ातेमा ज़हेरा ने नवजात शिशु को पैग़म्बरे इस्लाम की गोद में दिया और कहा कि हम आपकी प्रतीक्षा में थे ताकि आप आकर बच्ची का नाम रखें। बच्ची पैग़म्बरे इस्लाम की गोद में थी और उनके होटों पर मुसकुराहट थी। उन्होंने कहा कि इस बच्ची का नाम ईश्वर रखेगा। मैं प्रतीक्षा करूंगा कि इस बच्ची का आसमानी  नाम निर्धारित हो। इसी बीच ईश्वरीय फ़रिश्ते हज़रत जिबरईल आए और पैग़म्बरे इस्लाम को बताया कि इस बच्ची का नाम ज़ैनब रखा गया है। ज़ैनब का अर्थ होता है पिता की शोभा।

बाल्यकाल से ही हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाहे अलैहा को अपने भाई इमाम हुसैन से इतना अधिक लगाव हो गया था कि उसे बयान नहीं किया जा सकता। वह हमेशा अपने भाई के साथ रहना चाहती थीं। प्रेम प स्नेह की यह स्थिति देखकर हज़रत फ़ातेमा को भी आश्चर्य होता था। एक दिन हज़रत फ़ातेमा ने अपने पिता पैग़म्बरे इस्लाम को इस बारे में बताया और कहा कि मैं ज़ैनब और हुसैन के स्नेह व प्रेम से आश्चर्य में हूं। ज़ैनब अगर हुसैन को एक क्षण भी नहीं देखती तो व्याकुल हो जाती है। हुसैन पास न हों तो ज़ैनब तड़पने लगती हैं।

पैग़म्बरे इस्लाम ने जब यह सुना तो उनके चेहरे पर दुख छा गया और आंखों से आंसू बहने लगे। उन्होंने एक आह लेकर कहा कि मेरी बेटी यह बच्ची अपने भाई हुसैन के साथ कर्बला जाएगी और हुसैन के दुख और पीड़ा में साझीदार बनेगी।

हज़रत ज़ैनब के जीवन की कुछ झलकियां

इंसान जब दुनिया में आता है तो उसके पास न इल्म होता है और न तजुर्बा। जैसे-जैसे ज़िन्दगी की कठिनाईयों से गुज़रता है इल्म व तजुर्बे की वजह से उसके अंदर कमाल पैदा हो जाता है। वैसे तो इंसान के नेचर में यह बात पाई जाती है कि वह कमाल चाहता है

इंसान जब दुनिया में आता है तो उसके पास न इल्म होता है और न तजुर्बा। जैसे-जैसे ज़िन्दगी की कठिनाईयों से गुज़रता है इल्म व तजुर्बे की वजह से उसके अंदर कमाल पैदा हो जाता है। वैसे तो इंसान के नेचर में यह बात पाई जाती है कि वह कमाल चाहता है।

इस लिए वह हमेशा इस कोशिश में रहता है कि क्या करे जिस से उसके अंदर बुलंदी और कमाल पैदा हो जाए। क़ुरआन ने इंसान की इस ख़्वाहिश को सही रास्ते पर लगाने के लिए पैग़म्बरे अकरम (स) को आईडियल बनाया है, “तुम्हारे लिए रसूल (स) की ज़िन्दगी में बेहतरीन नमून-ए-अमल हैं।” (सूरए अहज़ाब, आयत 21)

यानी ख़ुदा यह बताना चाहता है कि देखो! अगर अपनी भलाई चाहते हो तो तुम्हें रसूले अकरम (स) को अपना आईडियल बनाना होगा, उनके बताए हुए रास्ते पर चलना पड़ेगा, उनकी इताअत करनी होगी क्यों कि वही हैं जिसके अंदर सारे कमाल और अच्छाईयाँ जमा हो गई हैं और उन्हीं की ज़ात हर तरह से पाक है। मगर आप जहाँ पूरी इंसानियत के लिए आईडियल हैं वहीं आप अपनी बेटी हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) को दुनिया की औरतों की सरदार का ख़िताब देकर अपने साथ-साथ औरतों के लिए भी एक औरत को आईडियल क़रार देते हैं। उधर हज़रत ज़हरा (स) ने एक ऐसी बेटी की परवरिश की जो अपने बाप ही की नहीं बल्कि पूरे ख़ानदान की ज़ीनत नज़र आती है। यक़ीनन जनाबे ज़ैनब (स) अपनी माँ की हू-बहू तस्वीर हैं। इसलिए आप भी दुनिया की औरतों के लिए एक बहतरीन नमून-ए-अमल हैं।

हज़रत ज़ैनब इस्लामी इतिहास की वह महान ख़ातून हैं जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता। आपने हज़रत अली (अ) और जनाबे ज़हरा (स) के बाद उन की सीरत पर अमल करते हुए उनके मक़सदों को एक नई ज़िन्दगी प्रदान की। दीन और दीन के वारिसों की सुरक्षा के लिए हर मुश्किल को बर्दाश्त किया। आपके ईसार व क़ुर्बानी की शुरुआत कर्बला से हुई है। इमाम  हुसैन (अ) ने जिस महान मक़सद के लिए क़ुरबानी पेश की थी आपने शहादत के बाद उस मक़सद के साथ वक़्त के इमाम की भी सुरक्षा की। अगर ज़ैनब (स) न होतीं तो शायद मैदाने कर्बला में चिराग़े हिदायत बुझ जाता। आप हर तरह से हज़रत ज़हरा (स) की हू-बहू तस्वीर थीं।

आप जब तक ख़ामोश थीं तो जनाबे ज़हरा (स) की मिसाल रहीं और जब आप ने ज़बान ख़ोली तो हज़रत अली (अ) की तस्वीर बन गईं। हमारी माँ बहनों के लिए आप एक बहतरीन आईडियल हैं क्यों कि आप ने इस्मत की गोद में परवरिश पाई है। ऐसी ख़ातून कि जिस का नाना मासूम, जिसका बाबा और माँ मासूम, जिसके दो भाई मासूम, यह शरफ़ शायद ही दुनिया की किसी औरत को मिला हो।

सच! जनाबे ज़ैनब (स) ने ऐसा किरदार पेश किया है जिस से आप पूरी इस्लामी हिस्ट्री के लिए आईडियल बन गई हैं। बहादुरी ऐसी कि जिसने इस्लाम के दुश्मनों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया, तक़रीर की ताक़त और गिरया ऐसा कि जिसने मुनाफ़िक़ों को ज़लील और रुसवा कर डाला। आपके ईमान व इरफ़ान, ईसार, बहादुरी और फ़िदाकारी को कर्बला में आसानी से देख जा सकता है।

60 हिजरी का इस्लाम वह इस्लाम था जो हक़ीक़तों से कोसों दूर था, जिसमें बिदअतों का बोलबाला था, इलाही अहकाम को पामाल किया जा रहा था, इस्लाम के हाकिम धोखे और अपनी ताक़त के बल पर लोगों को यह समझाने पर तुले थे कि देखो यही हक़ीक़ी इस्लाम है। और सीधी-सादी बल्कि नासमझी की शिकार अवाम भी उन के झांसे में आकर उनको इस्लाम और अवाम का हक़ीक़ी दर्दमंद समझने लगी थी। ऐसे माहोल में दीने मोहम्मद (स) के हक़ीक़ी वारिस ने कश्ती-ए-निजात बनकर सदाए हक़ बुलंद की और अपने भरे घर को ख़ुदा की राह में निछावर करके दीने इस्लाम को मौत के मुंह से निकाल लिया जिस से इस्लाम को एक नई हयात मिली।

यज़ीदी भवर में डूबती इस्लाम की कश्ती को हुसैन (अ) और आप के सहाबियों ने बचा तो लिया लेकिन उसे साहिल पर लगाने के लिए ज़ैनब (स) की ज़रूरत थी। ज़ैनब (स) ने ज़िन्दगी के हर मोड़ पर हुसैन (अ) का साथ दिया। हमेशा साए की तरह उन के साथ-साथ रहीं।

वैसे तो जनाबे ज़ैनब (स) बहुत सी ख़ुसूसियतों की मालिक थीं लेकिन आप की कुछ ख़ुसूसियतों को यूँ बयान किया जा सकता है।

ज़ैनबः शरीकतुल हुसैन (अ)

इसमें कोई शक नहीं है कि अली (अ) की बेटी ज़ैनब (स) शरीकतुल हुसैन (अ) हैं। इमामे अली (अ) की दूसरी बेटी के होते हुए सिर्फ़ जनाबे ज़ैनब को यह शरफ़ क्यों मिला? इस पर बात करना ज़रूरी है। ज़ैनब (स) शरीकतुल हुसैन (अ) कैसे हैं। वह कौन सी चीज़ है जिस में जनाबे ज़ैनब (स) हुसैन (अ) की शरीक हैं। क्या हुसैन (अ) के सफ़र में शरीक होने की वजह से शरीकतुल हुसैन (अ) हैं? अगर ऐसा है तो और भी औरतें इमाम हुसैन (अ) की हमसफ़र थीं जिन में हज़रत अली (अ) की दूसरी बेटियाँ भी शामिल हैं। इस से पता चलता है कि इसकी वजह कुछ और है।

कुछ लोगों का कहना है कि जनाबे ज़ैनब (स) के शरीकतुल हुसैन (अ) होने की एक वजह यह है कि दोनों भाई-बहन अली व फ़ातिमा ज़हरा (स) की औलाद थे। लेकिन इस में तो जनाबे उम्मे कुलसूम (स) भी हज़रत ज़ैनब (स) के बराबर थीं।

तो फिर क्या ऐसा इस लिए है कि हुसैन (अ) पर पड़ने वाली मुसीबतों में जनाबे ज़ैनब (स) इमाम हुसैन (अ) के साथ बराबर की शरीक थीं? लेकिन इस बारे में भी दूसरी सारी औरतें भी हुसैन (अ) की मुसीबतों में बराबर की शरीक थीं।

सिर्फ़ जनाबे ज़ैनब (स) को शरीकतुल हुसैन (अ) का ख़िताब मिलना इस बात की तरफ़ इशारा है कि कोई न कोई ख़ास बात जनाबे ज़ैनब (स) में ज़रूर थी। आइए! देखते हैं कि वह ख़ास बात क्या थी।

इस में कोई शक नहीं है कि इमाम हुसैन (अ) के सारे सहाबी और बनी हाशिम इस शहादत के मर्तबे में और पड़ने वाली मुसीबतों में हुसैन (अ) के साथ बराबर के शरीक थे। लेकिन इमाम और दूसरों में फ़र्क़ यह है कि हुसैन (अ) सदाए हक़ बुलंद करने वाले थे जबकि दूसरे इमाम हुसैन (अ) की आवाज़ पर लब्बैक कहने वाले थे। कर्बला के क़ैदियों में वही इफ़्तेख़ार जनाबे ज़ैनब (स) को हासिल है, जो दूसरे शहीदों में इमाम हुसैन (अ) को हासिल था। यही वह ख़ास वजह है जिसकी वजह से जनाबे ज़ैनब को शरीकतुल हुसैन कहा जाता है। (क़यामे इमाम हुसैन, अस्बाब व नताएज, 3)

इबादत और राज़ो नियाज़

इस अज़ीम ख़ातून की एक ख़ासियत यह भी थी कि आप ख़ुदा की बारगाह में दुआओं, मुनाजातों और बन्दगी में भी अपनी मिसाल आप थीं। रिवायतों में मिलता है कि आप शबे आशूर और शामे ग़रीबाँ में भी नमाज़े शब पढ़ना नहीं भूली थीं। आप पूरी रात इबादत और तिलावते क़ुरआने मजीद में बसर करती थीं। इमाम ज़ैनुल आबिदीन (अ) फ़रमाते हैं किः- “जब हम लोगों को कूफ़े से शाम ले जाया जा रहा था, तब भी इतनी मुसीबतों के बावजूद फूफी ज़ैनब (स) ने नमाज़े शब को कभी नहीं छोड़ा।”

जहाँ मौक़ा मिलता था दुआओं और परवरदिगार की इबादत में मशग़ूल हो जाती थीं। इमाम हुसैन (अ) आख़िरी विदा लेते वक़्त अपनी प्यारी बहन ज़ैनब (स) से कह रहे थे, “ऐ बहन! मुझे नमाज़े शब में न भूलना।”

एक मासूम के यह अलफ़ाज़ जनाबे ज़ैनब (स) की बन्दगी के मर्तबे को बता रहे हैं जिसका तसव्वुर भी आम इंसान के बस में नहीं है। यही वह ख़ुसूसियतें थीं जिनकी वजह से आपको सानी-ए-ज़हरा (स) भी कहा जाने लगा था।

शुजाअत और बहादुरी

जनाबे ज़ैनब (स) को शुजाअत अपने बाबा अली (अ) और माँ जनाबे फ़ातिमा ज़हरा (स) से विरसे में मिली थी। जब इमामे सज्जा (अ) को इब्ने ज़ियाद के दरबार में लाया गया तो इब्ने ज़ियाद आप की हक़ पसंद गुफ़्तगू सुनकर आग बगोला हो गया और फ़ौरन जल्लाद को इमाम के क़त्ल का हुक्म दे दिया। इब्ने ज़ियाद का हुक्म सुन कर जनाबे ज़ैनब (स) बेताब होकर भतीजे से लिपट गईं और कहने लगीं, “ऐ इब्ने ज़ियाद बस कर। बहुत ख़ून बहा चुका। क्या अब तू हमारे ख़ून से सैराब नहीं हुआ। क़सम ख़ुदा की! मैं इससे जुदा नहीं हो सकती। अगर इसको क़त्ल करना चाहता हो तो पहले मुझे क़त्ल कर।”

बिन्ते अली ने मजलिस की बुनियाद डाल कर,

हर आने वाली नस्ल पे ऐलान कर दिया,

अब्बास की बहन की शुजाअत तो देखिये,

क़ातिल के घर में जीत का ऐलान कर दिया

यज़ीद के दरबार में हज़रत ज़ैनब का ऐतिहासिक ख़ुत्बा

यज़ीद के दरबार में जब हज़रत ज़ैनब (स) की निगाह अपने भाई हुसैन के ख़ून से रंगे सर पर पड़ी तो उन्होंने दुख भरी आवाज़ में जो दिलों की दहला रही थी पुकाराः

हे हुसैन, हे रसूलुल्लाह (स) के चहीते, हे मक्का और मिला के बेटे, हे सारे संसार की महिलाओं की मलिका फ़ातेमा ज़हरा (स) के बेटे हो मोहम्मद मुस्तफ़ा (स) की बेटी के बेटे।

रावी कहता हैः ईश्वर की सौगंध हज़रत ज़ैनब (स) की इस आवाज़ को सुनकर दरबार में उपस्थित हर व्यक्ति रोने लगा, और यज़ीद चुप था!!

यज़ीद ने आदेश दिया की उसकी छड़ी लाई जाए और वह उस छड़ी से इमाम हुसैन (अ) के होठों और पवित्र दांतो से मार रहा था।

अबू बरज़ा असलमी जो पैग़म्बरे इस्लाम (स) के सहाबी और उस दरबार में उपस्थित थे, ने यज़ीद को संबोधित करके कहाः हे यहीं तू अपनी छड़ी से फ़ातेमा (स) के बेटे हुसैन (अ) को मार रहा है? मैंने अपनी आँखों से देखा है कि पैग़म्बरे अकरम (स) हसन (अ) और हुसैन (अ) के होठों और दांतों को चूमा करते थे और फ़रमाते थेः

तुम दोनों स्वर्ग के जवानों के सरदार हो, ईश्वर तुम्हारे हत्यारे को मारे और उसपर लानत करे और उसके लिए नर्क तैयार करे और वह सबरे बुरा स्थान है।

यज़ीद ने जब असलमी की इन बातों को सुना तो क्रोधित हो गया और उसने आदेश दिया कि उनको दरबार से बाहर निकाल दिया जाए।

यज़ीद जो घमंड और अहंकार से चूर था, यह समझ रहा था कि उनसे कर्बला पर विजय प्राप्त कर ली है, उसने इन शेरों को पढ़ा जो उसके और बनी उमय्या के इस्लाम से दूर होने और इस्लामी शिक्षाओं को स्वीकार न करने का प्रमाण हैं:

काश मेरे वह पूर्वज जो बद्र के युद्ध में मारे गए थे आज देखते कि ख़ज़रज क़बीला किस प्रकार भालों के वार से रो रहा है।

वह लोग शुख़ी से चिल्लाह रहे थे और कह रहे थेः यज़ीद तेरे हाथ सलामत रहें!

मैं ख़िनदफ़ (2) की संतान नहीं हूँ अगर मैं अहमद (अल्लाह के रसूल (स)) के परिवार से इंतेक़ाम न लूँ

यज़ीद यह शेर पढ़ता जा रहा था और अपनी इस्लाम से दूरी और शत्रुता को दिखाता जा रहा था, और यही वह समय था कि जब अली (अ) की शेरदिल बेटी ज़ैनब (स) उठती है और वह एतिहासिक ख़ुत्बा पढ़ती हैं जिसे इतिहास कभी भुला न सकेगा। आप फ़रमाती हैं

प्रशंसा विशेष है उस ईश्वर के लिये जो संसारों का पालने वाला है, और ईश्वर की सलवात उसके दूत पर और उसके परिवार पर। ईश्वर ने सत्य कहा जब फ़रमायाः “वह लोग जिन्होंने पाप और कुकर्म किये उनका अंत (परिणाम) इस स्थान तक पहुँच गया कि उन्होंने ईश्वरीय आयतों को झुठलाना दिया और उनका उपहास किया”

हे यज़ीद! क्या अब जब कि ज़मीन और आसमान तो (विभन्न दिशाओं से) हम पर तंग कर दिया और और क़ैदियों की भाति हम को हर दिशा में घुमाया, तू समझता है कि हम ईश्वर के नज़दीक अपमानित हो गए और तू उसके नज़दीक सम्मानित हो जाएगा? और तूने समझा कि यह ईश्वर के नज़दीक तेरी शक्ति और सम्मान की निशानी है? इसलिये तूने अहंकार की हवा को नाक में भर लिया और स्वंय पर गर्व किया और प्रसन्न हो गया, यह देख कर कि दुनिया तेरी झोली में आ गई कार्य तुझ से व्यवस्थित हो गए और हमारी हुकूमत और ख़िलाफ़त तेरे हाथ में आ गई, तो थोड़ा ठहर! क्या तूने ईश्वर का यह कथन भुला दिया कि उसने फ़रमायाः “जो लोग काफ़िर हो गए वह यह न समझें कि अगर हम उनको मोहलत दे रहे हैं, तो यह उनके लाभ में है। हम उनको छूट देते हैं ताकि वह अपने पापों को बढ़ाएं और उनके लिये अपमानित करने वाला अज़ाब (तैयार) है”

आपने अली (अ) के लहजे में यज़ीद और दरबार में बैठे सारे लोगों को यह जता दिया कि देख अगर तू यह समझता है कि तूने हमारे मर्दों की हत्या करके और हम लोगों को बंदी बना कर अपमानित कर दिया है तो यह तेरी समझ का फेर है जान ले कि इज़्ज़त और सम्मान ईश्वर के हाथ में है, वह जिसको चाहता है उसकों सम्मान देता है और जिसको चाहता है अपमानित कर देता है।

इसी ख़ुत्बे में आपने एक स्थान पर फ़रमायाः

हे स्वतंत्र किये गए काफ़िरों के बेटे! (5) क्या यह न्याय है कि तू अपनी महिलाओं और दासियों को तो पर्दे में रखे, लेकिन अल्लाह के रसूल (स) की बेटियों को बंदी बनाकर इधर उधर घुमाता फिरे, जब कि तूने उनके सम्मान को ठेस पहुँचाई और उनको चेहरों के लोगों के सामने रख दिया, उनको शत्रुओं के माध्यम से विभिन्न शहरों में घुमाए ताकि हर शहर और गली के लोग उनका तमाशा देखें, और क़रीब, दूर शरीफ़ और तुच्छ लोग उनके चेहरों को देखें, जब कि उनके साथ मर्द और सुरक्षा करने वाले नहीं थे (लेकिन इन बातों का क्या लाभ, क्योंकि) कैसे उस व्यक्ति की सुरक्षा और समर्थन की आशा की जा सकती है कि (जिसकी माँ ने) पवित्र लोगों का जिगर खाया हो (आपने यज़ीद की माँ हिन्द की कहानी की तरफ़ इशारा किया है) और जिसका गोश्त शहीदों को रक्त से बना है?! और किस प्रकार वह हम अहलेबैत (अ) से शत्रुता में तेज़ी न दिखाए जो हम को अहंकार, नफ़रत, क्रोधित और प्रतिशोधात्मक नज़र से देखता है और फिर (बिना अपराध बोध और अपने अत्याचारों को देखे अहंकार के साथ) कहता हैः

काश मेरे पूर्वज होते और इस दृश्य को देखते और शुख़ी एवं प्रसंन्ता से कहतेः यज़ीद तेरे हाथ सलामत रहें।

इन शब्दों को उस समय कहता है कि जब अबा अब्दिल्लाह (अ) जो स्वर्ग के जवानों के सरदार हैं के होठ और पवित्र दांतों पर मारता है!

हां तू क्यों ऐसा नहीं कहेगा, जब कि तूने अल्लाह के रसूल के बेटों और अब्दुल मुत्तलिब के ख़ानदान के ज़मीनी सितारों का ख़ून बहाकर, हमारे दिलों के घवों को खोल दिया है, और तू हमारे ख़ानदान की जड़ ख़तरा बन गया है, तू अपने पूर्वजों को पुकारता है और समझता है कि वह तेरी आवाज़ को सुन रहे हैं?! (जल्दी न कर) बहुत जल्द तू भी उनके पास चला जाएगा, और उस दिन तू आशा करेगा कि काश तेरा हाथ शल होता और तेरी ज़बान गूँगी होती और तू यह बात न कहता और इन कुकर्मों को न करता)

फ़िर आप फ़रमाती हैं:

हे ईश्वर! हमारे अधिकार को ले, और हम पर अत्याचार कनरे वालों से इंतेक़ाम ले, और जिसने हमारे ख़ून को ज़मीन पर बहाया और हमारी साथियों की हत्या की उस पर अपना क्रोध उतार।

हे यज़ीद! ईश्वर की सौगंध (इस अपराध से) तूने केवल अपनी खाल उतारी है, और अपना गोश्त काटा है, और वास्तव में तूने स्वंय को बरबाद किया है, निःसंदेह वह बोझ – अल्लाह के रसूल (स) के बेटे की हत्या करके और उनके ख़ानदान और चहीतों का अपमान करके- अपने कांधे पर डाला है, तू पैग़म्बर के सामने जाएगा, वहां ईश्वर उन सबको इकट्ठा करेगा और उनकी परेशानी को दूर करेगा और उनके दिलों की आग को ठंडा करेगा, (हां) “यह न समझ कि जो लोग ईश्वर की राह में मार दिये गए, वह मर गए हैं, बल्कि वह जीवित है और ईश्वर से रोज़ी पाते हैं” यही काफ़ी है कि तू उस न्यायालय में हाज़िर होगा जिसका न्याय करने वाला ईश्वर है और अल्लाह का रसूल (स) तेरे मुक़ाबले में है और जिब्रईल गवाह और उनके साथे हैं।

बहुत जल्द जिसने हुकूमत को तेरे लिये निर्विघ्न किया और तुझे मुसलमानों की गर्दनों पर सवार कर दिया, जान जाएगा कि कितना बुरा अज़ाब अत्याचारियों के हिस्से में आएगा, और समझ जाएगा कि किसके ठहरे का स्थान बुरा है और किसकी सेना अधिक कमज़ोर और शक्तिविहीन है।

उसके बाद आपने अपने ख़ुत्बे के इस चरण में यज़ीद की धज्जियाँ उड़ा दीं:

अगर बुरे समय ने मुझे इस मक़ाम पर ला खड़ा किया है कि मैं तुझ से बात करूँ, लेकिन (जान ले) मैं निःसंदेह तेरी शक्ति को कम और तेरे दोष को बड़ा समझती हूँ और बहुत तेरी निंदा करती हूँ, लेकिन मैं क्या करूँ कि आख़े रोती और सीने जले हुए हैं।

बहुत आश्चर्य का स्थान है कि एक ईश्वरीय और चुना हुआ गुट, शैतान के चेलों और स्वतंत्र किये हुए दासों के हाथों क़त्ल कर दिया जाए और हमारा रक्त इन (अपवित्र) पंजों से टपके और हमारे गोश्त के टुकड़े तुम्हारे (अपवित्र) मुंह से बाहर गिरें, और तुम जंगली भेड़िये सदैव उन पवित्र शरीरों के पास आओ और उनके मिट्टी में मिलाओ!

अगर आज (हम पर विजय) को अपने लिये ग़नीमत समझता है, अतिशीघ्र उसके अपनी हानि और नुक़सान पाएगा, उस दिन अपने कुकर्मों के अतिरिक्त कुछ और नहीं पाएगा। और कदापि परवरदिगार अपने बंदों पर अत्याचार नहीं करेगा। मैं केवल ईश्वर से शिकायत करती हूँ और केवल उस पर विश्वास करती हूँ।

हे यज़ीद! जितनी भी मक्कारियां है उनका उपयोग कर ले, और अपनी सारी कोशिश कर ले और जितना प्रयत्न कर सकता है कर ले, लेकिन ईश्वर की सौगंध (इन सारी कोशिशों के बाद भी) हमारी यादों को (दिलों से) न मिटा सकेगा और वही (ईश्वरीय कथन) के (चिराग़ को) बुझा न सकेगा, और हमारे सम्मान और इज़्ज़ात को ठेस न पहुँचा सकेगा। इस घिनौने कार्य का धब्बा, तेरे दामन से कभी न मिट सकेगा। तेरी राय क्षीण और तेरी सत्ता का ज़माना कम है, और तेरी एकता का अंत अनेकता होगा जिस दिन आवाज़ देने वाला आवाज़ लगाएगाः “अत्याचारियों पर ईश्वर की लानत हो”

प्रशंसा और तारीफ़ विशेष है उस ईश्वर के लिये जो संसारों का परवरदिगार है। वही जिसने हमरे आरम्भ को सौभाग्य और मग़फ़िरत और अंत को शहादत और रहमत बनाया। ईश्वर से मैं उन शहीदों के लिये पूर्ण इन्आम और, इन्आमों पर अधिक चाहती हूँ (और उससे चाहती हूँ कि) हमको उनका अच्छा उत्तराधिकारी बनाए, वह दयालू और मोहब्बत करने वाला है, और ईश्वर हमारे लिये काफ़ी है और वह हमारा बेहतरीन समर्थक है। (7)

हज़रत ज़ैनब (स) का यह ख़ुत्बा इस्लामी इतिहास का सबसे बेहतरीन और मुह तोड़ ख़ुत्बा है, ऐसा लगता है कि यह सारा ख़ुत्बा इमाम अली (अ) की पवित्र आत्मा और उनकी वीरता की बूंदों से भीगकर उनकी महान बेटी के ज़बान से जारी हुआ है, कि सुनने वालों ने कहा कि ऐसा लगता है कि अली बोल रहे हैं।
शारांश

हज़रत ज़ैनब (स) ने अपने इस ख़ुत्बे में बहुत सी बातें कहीं है जिनको इस संक्षिप्त से लेख में बयान करना संभव नहीं है और न ही हम इस स्थान पर हैं कि इन सारी बातों को बयान कर सके, लेकिन संक्षेप में इस ख़ुत्बे के सारांश को बयान किया जाए तो कुछ इस प्रकार होगा

1.    इस्लामी इतिहास की इस वीर महिला ने सबसे पहले यज़ीद के अहंकार को चकनाचूर किया और क़ुरआन की तिलावत करके उसको बता दिया कि उसका स्थान ईश्वर के नज़दीन क्या है और बता दिया कि हे यज़ीदः तू हुकूमत दौलन, महल आदि को अपने लिये बड़ा न समझ तो उन लोगों में से है जिसे ईश्वर ने मोहलत दी है ताकि वह अपने पापों का बोझ बढ़ाते रहें और उसके बाद वह उन्हें नर्क के हलावे कर दे।

2.    उसके बाद आपने यज़ीद के पूर्वजों के साथ मक्के की विजय के समय पैग़म्बरे इस्लाम (स) के व्यवहार के बारे में बयान किया है और बताया है कि जिस नबी ने उसके पूर्वजों को क्षमा कर के स्वतंत्र कर दिया था उसकी के बेटे ने पैग़म्बर (स) की औलाद की हत्या की उस परिवार की महिलाओं को एक शहर से दूसरे शहर फिराया और इस प्रकार आपने यज़ीद के माथे पर अपमान की मोहर लगा दी।

3.    उसके बाद आप यज़ीद के कुफ़्र भरे शब्दों के बारे में बयान करती है और बताती है कि यज़ीद का इस्लाम या मुसलमानों से कोई लेना देना नहीं है, और आपने बता दिया की यज़ीद भी बहुत जल्द अपने पूर्वजों की भाति नर्क पहुंच जाएगा।
4.    फिर आपने शहीदों विशेष कर पैगम़्बर (स) के ख़ानदान के शहीदों के महान स्थान के बारे में बयान किया है और बताया है कि इनकी शहादत इस ख़ानदान के लिये सम्मान की बात है।

5.    उसके बाद आप यज़ीद के सामने ईश्वर के न्याय की तरफ़ इशारा करती हैं और कहती है कि सोंच उस समय क्या होगा कि जब न्याय करने वाला ईश्वर होगा तेरा विरोध अल्लाह का रसूल (स) होगा औऱ गवाह अल्लाह के फ़रिश्ते होंगे।

6.    उसके बाद आपने यज़ीद का अदिर्तीय अपमान किया और कहाः हे यज़ीद अगर ज़माने ने मुझ पर अत्याचार किया और मुझे बंदी बनाकर देते सामने पेश कर दिया तो तू यह न समझ कि मैंने तुझे सम्मान दे दिया, मैं तो तुझे बात करने के लायक़ भी नहीं समझती हूँ, और अगर इस समय बोल रही हूँ तो यह केवल मजबूरी है और बस।

7.    सबसे अंत में हज़रत ज़ैनब (स) ने पैगम़्बर (स) के ख़ानदान पर ईश्वर की बेशुमान अनुकम्पाओं पर उसका धन्यवाद और प्रशंसा की है और फ़रमाया है उस ईश्वर ने हमारा आरम्भ सौभाग्य और अंत शहादत के सम्मान पर किया है।

आइये इस शहादत के दिन हम कुछ सीखे और दुनिया के लिए मिसाल बने।

 

 

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