अखिलेश को मिला मायावती का साथ, क्या शिवपाल से भी मिलेगा दिल

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समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान पारिवारिक कलह को सीट का झगड़ा बताते हुए अब सब कुछ सामान्य होने का दावा किया है. दूसरी तरफ, राज्य की दो लोकसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजों ने 2017 में करारी शिकस्त झेल चुकी सपा में जान फूंकने का काम किया है. ऐसे में चर्चा इस बात को लेकर भी है कि क्या ये जीत चाचा शिवपाल और अखिलेश के बीच की खाई को भरने में भूमिका निभाएगी.

दरअसल, इसके पीछे चुनाव नतीजों के बाद आए शिवपाल यादव के बयान भी हैं. वहीं, अखिलेश के नरम रवैये से भी अनबन दूर होने के संकेत मिलते दिखाई दे रहे हैं. 14 मार्च को गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव के नतीजों ने सपा कार्यकर्ताओं को होली मनाने का मौका तो दिया ही, साथ ही शिवपाल यादव को बधाई देने का भी अवसर मिला. शिवपाल यादव ने मॉरीशस से ही उपचुनाव में सपा की जीत पर मुबारकबाद दी. साथ ही ये भी कहा कि अगर 2017 में ऐसा हो गया होता तो अखिलेश यादव मुख्यमंत्री होते.

शिवपाल यादव ने कहा है कि वो विपक्षी दलों की एकता के हमेशा से पैरोकार रहे हैं. अगर हमने 2017 में भी इस तरह की एकता बनाई होती तो अखिलेश यादव फिर से मुख्यमंत्री होते.

नरेश अग्रवाल पर भी दोनों साथ!

हाल ही में अखिलेश यादव ने नरेश अग्रवाल को फिर से राज्यसभा न भेजने का फैसला लिया तो अग्रवाल पार्टी छोड़कर बीजेपी में चले गए. नरेश अग्रवाल के जाने पर सपा खेमे में एक बड़े नेता के चले जाने को क्षति के रूप में बिल्कुल नहीं देखा गया. वहीं, शिवपाल यादव ने भी नरेश अग्रवाल के जाने पर कलंक से मुक्ति मिलने की बात कही. उन्होंने कहा कि नरेश अग्रवाल समाजवादी पार्टी के लिए कलंक थे, जो अब बीजेपी में चले गए हैं. यानी जिस नेता को शिवपाल यादव कलंक मानते हैं, अखिलेश यादव ने उन्हें राज्यसभा नहीं भेजा.

होली पर भी दिखा साथ

इससे पहले 2 मार्च को होली के मौके पर भी दोनों की दूरियां कम होती दिखीं और पूरा परिवार एक मंच पर साथ नजर आया. सैफई में परिवार के सदस्यों और समाजवादी नेताओं ने मिलकर होली मनाई. इस जश्न में शिवपाल यादव भी पहुंचे थे. अखिलेश यादव ने उनके पैर छूकर आशीर्वाद भी लिया. इस बार शिवपाल का अखिलेश के साथ होली मनाना इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि पिछले साल विधानसभा चुनाव के दौरान दोनों के बीच जो विवाद सामने आया था, उस दौरान शिवपाल यादव ने इटावा में अपने घर पर समर्थकों के साथ होली मनाई थी.

कांग्रेस से गठबंधन

2017 के विधानसभा चुनाव में शिवपाल यादव कांग्रेस के साथ गठबंधन के बिल्कुल पक्ष में नहीं थे. उन्होंने सार्वजनिक मंचों से ये बयान दिया था. बावजूद इसके अखिलेश यादव ने राहुल गांधी से हाथ मिलाया और साथ चुनाव लड़ा और उन्हें सत्ता से बेदखल होना पड़ा. लेकिन हाल में हुए उपचुनाव में अखिलेश कांग्रेस से दूर रहे. जबकि दूसरी तरफ उन्होंने बहुजन समाज पार्टी जैसी चिर प्रतिद्वंदी के अलावा दूसरे छोटे दलों का साथ लिया और जीत हासिल की. इससे पहले भी कांग्रेस के साथ आम चुनाव में गठबंधन को लेकर सवालों से बचते रहे हैं या टालते रहे हैं.

इसके अलावा अखिलेश यादव ने हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि उनके परिवार में अब कोई झगड़ा नहीं है. वहीं, इस दौरान अखिलेश ने चाचा शिवपाल को 2022 में राज्यसभा भेजने की बात भी कही. हालांकि, पार्टी प्रवक्ताओं का कहना इसमें काफी वक्त बचा है. समाजवादी पार्टी की प्रवक्ता जूही सिंह ने बताया कि राज्यसभा भेजने पर दिया गया बयान महज एक सवाल का जवाब था. जूही सिंह ने कहा कि इसमें अभी काफी वक्त बचा है और फिलहाल ऐसा कोई एजेंडा नहीं है.

वहीं, शिवपाल यादव और अखिलेश सिंह के बीच की दूरियां कम होने के सवाल पर जूही सिंह ने कहा कि अखिलेश यादव बहुत ही शांत स्वभाव के नेता हैं और सबको साथ जोड़कर चलने में यकीन रखते हैं. उन्होंने कहा कि अखिलेश बहुत सकारात्मक स्वभाव के हैं और भविष्य में चीजें बेहतर होंगी.

अब जबकि अखिलेश देश बचाने के लिए किसी भी त्याग की बात कहकर मायावती के लिए शुभ संकेत दे चुके हैं तो क्या चाचा शिवपाल से उनके गिले-शिकवे भी बस अतीत का विवाद भर रह जाएंगे, ये वक्त बताएगा?

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