जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी की रस्साकशी में गोप देवता का जलवा,बहुत दिन तक सपा में रहने वाली अब भाजपा की राजरानी और दूसरी तरफ भाजपा से आयी सपा की नेहा की मुस्कराहट में डूबती सत्ता की हनक बन रही है चर्चा का सबब

Breaking News Latest Article बाराबंकी

पाटेश्वरी प्रसाद

बाराबंकी जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी के लिए रस्साकशी शुरू हो चुकी है। सपा और भाजपा ने अपने पत्ते खोल दिये है। भाजपा ने चुनाव में पार्टी की दिग्गज खिलाड़ी को मैदान में उतारा है वहीं सपा ने प्रशिक्षु खिलाड़ी पर दांव लगाया है। इस सियासी जंग में भाजपा से पूर्व विधायिका राजरानी रावत और सपा की युवा नेत्री नेहा आंनद आमने सामने होंगी।
कांग्रेस इस स्थिति में नहीं है कि चुनाव लड़े। रहा सवाल बसपा का तो पहली बार वह इस चुनाव में साइलेंट मूड में दिख रही है जो प्रत्याशियों की परेशानी बढ़ा रही है।
हालांकि जिले की पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर समाजवादी पार्टी का दबदबा रहा है। क्योंकि आजादी के बाद से बाराबंकी के पंचायत अध्यक्ष सीट पर ज्यादा समय तक समाजवादी पार्टी के नेताओं का कब्जा रहा है। पार्टी के पास 15 सदस्य है। खास बात है कि जिला पंचायत अध्यक्ष की कुुर्सी हमेशा से बीजेपी के लिए अबुझ पहेली रही है। यूपी की सत्ता में रहते हुए भी पार्टी इस सीट पर कब्जा नहीं कर सकी है। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि क्या इस बार पार्टी इस अबुुझ पहेली को सुलझा पाएगी अथवा परिणाम पहले जैसा ही होगा।

बता दें कि बाराबंकी जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर लंबे समय तक कांग्रेस का कब्जा रहा। यूपी में जैसे ही कांग्रेस हाशिये पर आई और सपा-बसपा का उदय हुआ दोनों पाटिर्यों ने इस कुर्सी पर मजबूत पकड़ बनायी। वर्ष 2006 में हुए जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में सपा और बसपा के बीच खूनी संघर्ष भी हुआ। जिसमें सपा के तत्कालीन विधायक हरदेव सिंह रावत की हत्या हो गई।

जिले में पंचायत अध्यक्ष के इतिहास की बात करें तो आजादी के बाद 1952 से 1975 तक महंत जगन्नाथ बख्स दास 23 वर्षों तक आजीवन जिला पंचायत अध्यक्ष रहे। वहीं उनके निधन बाद 1975 से 1989 तक डीएम ने प्रशासक के रूप में जिला पंचायत का कार्यभार संभाला। इसके बाद 1989 से 1995 तक यह सीट पहली बार समाजवादी पार्टी के खाते में गई और देवनारायण सिंह अध्यक्ष निर्वाचित हुए। अगले पांच वर्ष 1995 से 2000 तक दिग्गज सपा नेता बेनी प्रसाद वर्मा ने समाजवादी पार्टी से रामगोपाल रावत को उम्मीदवार बनवाया और अध्यक्ष बनवाया। अगले चुनाव में 2000 से 2006 तक एकबार फिर समाजवादी पार्टी ने अपने प्रबल दावेदारी का परिचय देते हुए कुसुम सिंह अध्यक्ष निर्वाचित हुई। लेकिन 2006 में चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी के मौजूदा विधायक हरदेव सिंह रावत की हत्या के बाद यह सीट खिसक कर बसपा के खाते में चली गई और बसपा प्रत्याशी शीला सिंह ने विजय पताका फहराते हुए जिला पंचायत अध्यक्ष की सीट पर कब्जा जमा लिया। जो सिलसिला दस वर्षों तक चला। इसके बाद विगत वर्ष 2016 हुए पंचायत चुनाव में समाजवादी पार्टी एक बार फिर अध्यक्ष सीट को हथियाने में कामयाब रही। इस बार दिग्गज समाजवादी नेता एवं पूर्व मंत्री अरविंद कुमार सिंह गोप के बड़े भाई अशोक कुमार सिंह जिला पंचायत अध्यक्ष निर्वाचित हुए।

पिछले पांच चुनावों की बात करें तो सपा के सपा चार बार व बसपा दो बार अपना अध्यक्ष बनाने में सफल रही है। बसपा की तरफ से दो बार शीला सिंह अध्यक्ष रहीं। हमेंशा नंबर एक और दो की लड़ाई इन्हीं दलों के बीच देखने को मिली है। यह पहला चुनाव है जब बसपा की तरफ से उम्मीदवार की घोषणा नहीं हुई है। पार्टी चुनाव लड़ेगी या किसी का समर्थन करेगी इस मुद्दे पर कोई पदाधिकारी कुछ बोलने को तैयार नहीं है।

ऐसे में अभी सीधा मुकाबला भाजपा और सपा में दिख रहा है लेकिन सदस्यों के समर्थन के मामले में सपा भाजपा से आगे है। सपा के 15 सदस्य है जबकि वर्तमान में बीजेपी के पास 12 सदस्य हैं। बहुमत के लिए 29 सदस्यों के समर्थन की जरूरत है। यानि सपा बहुमत से 14 व भाजपा 17 कदम दूर है। कांग्रेस और बसपा के सदस्य किस दल के साथ जाएंगे। यह भविष्य के गर्भ में है। फिलहाल माना जा रहा है कि कांग्रेस के दो सदस्य सपा के साथ जा सकता है, वहीं बसपा के तीन सदस्यों पर भाजपा का दावा मजबूत होता दिख रहा है। ऐसे में निर्दलीय 23 सदस्यों को अपने अपने पाले में लाने की जी तोड़ कोशिश सपा और भाजपा कर रही है। बहरहाल यह कहना आसान नहीं है कि जीत का सेहरा किसके सिर बंधेगा। फिलहाल दोनों ही दल अपनी जीत का दावा कर रहे हैं।

भाजपा की तो चट भी अपनी और पट भी अपनी नज़र में है।
वही सदस्यों की चांदी है।
सूत्रों के मुताबिक 25 लाख का रेट अबकी खुला है कुछ सदस्यों ने माल भी पकड़ लिया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *