लखनऊ : सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए 1967 के अपने उस फैसले को पलट दिया है, जिसमें यह कहा गया था कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) जैसे केंद्रीय विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा नहीं दिया जा सकता। सात जजों की इस संवैधानिक पीठ ने एस अज़ीज़ बाशा बनाम केंद्र सरकार मामले में पूर्व में दिए गए फैसले को संशोधित करते हुए अल्पसंख्यक संस्थानों के अधिकारों को नई दिशा दी है।
अंबर फाउंडेशन के चेयरमैन वफ़ा अब्बास ने इस ऐतिहासिक फैसले का स्वागत करते हुए इसे अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों और उनके शैक्षिक संस्थानों की पहचान के लिए सकारात्मक पहल बताया। वफ़ा अब्बास ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला ऐतिहासिक है और इससे एएमयू जैसे संस्थानों को अपनी सांस्कृतिक और शैक्षिक पहचान बनाए रखने में सहायता मिलेगी। इससे अल्पसंख्यक समुदायों में शिक्षा के प्रति एक नया जोश और विश्वास पैदा होगा।“
हालांकि, वफ़ा अब्बास ने यह भी कहा कि एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा प्राप्त करने का अंतिम निर्णय अभी एक नियमित बेंच द्वारा किया जाएगा। उन्होंने उम्मीद जताई कि इस निर्णय से अन्य अल्पसंख्यक संस्थानों को भी उनके अधिकारों की प्राप्ति में सहायता मिलेगी और उनकी विशेष पहचान को संरक्षित करने में मजबूती मिलेगी।
वफ़ा अब्बास ने इस फैसले को एक सकारात्मक संकेत बताया और कहा कि यह न्यायपालिका का अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति एक संवेदनशील और न्यायप्रिय कदम है। “यह फैसला उन संस्थानों को नई ऊर्जा देगा, जो शिक्षा और संस्कृति के क्षेत्र में अल्पसंख्यक समुदायों की विशेषता को कायम रखने के लिए समर्पित हैं,”
यह फैसला आने वाले दिनों में एएमयू और अन्य अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थानों के लिए एक नई राह खोल सकता है, जिससे शिक्षा के क्षेत्र में विविधता और सह-अस्तित्व का माहौल बनेगा।