नई दिल्ली: दहेज उत्पीड़न के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने फैसले में बदलाव कर पति और उसके परिवार को मिला सुरक्षाकवच खत्म कर दिया है। शुक्रवार को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने पिछले साल दिये गए आदेश में बदलाव किया। सुप्रीम कोर्ट के नए आदेश के अनुसार अब शिकायत दर्ज होने पर फैमली वेलफेयर कमेटी की समीक्षा की जरूरत नहीं होगी । यानी गिरफ्तारी पुलिस अधिकारी के विवेक पर होगी। हालांकि आरोपी के पास अग्रिम जमानत का विकल्प रहेगा।
अदालत के इस आदेश के बाद पुलिस के पास पीड़ित महिला के पति और उसके परिवार वालों को गिरफ्तार करने का विकल्प खुल गया है।
गौरतलब है कि पिछले साल जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और जस्टिस यू यू ललित की बेंच ने आदेश दिया था कि 498A के अंतर्गत की गई शिकायतों पर तुरंत गिरफ्तारी नही होगी। बल्कि हर ज़िले में परिवार कल्याण विभाग की स्थापना की जाएगी जिसकी रिपोर्ट के आधार पर ही गिरफ्तारी की जाएगी। जिसके बाद कई समाजसेवी संस्थाओं ने इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की थी।
कोर्ट में दायर इन याचिकाओं के अनुसार सुप्रीम कोर्ट को कानून में इस तरह का बदलाव करने का हक नहीं है। कानून का मकसद महिलाओं को इंसाफ दिलाना है लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के चलते देश भर में दहेज उत्पीड़न के मामलों में गिरफ्तारी बंद हो गयी है।
दो जजों की बेंच के फैसले के खिलाफ 13 अक्टूबर 2017 को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई वाली बेंच ने कहा था कि इस मामले में दो जजों की बेंच ने 27 जुलाई को जो आदेश पारित कर तत्काल गिरफ्तारी पर रोक संबंधी गाइडलाइंस बनाई है उससे वह सहमत नहीं हैं।
बेंच ने कहा था कि हम कानून नहीं बना सकते हैं बल्कि उसकी व्याख्या कर सकते हैं।
अदालत ने कहा था कि ऐसा लगता है कि 498ए के दायरे को हल्का करना महिला को इस कानून के तहत मिले अधिकार के खिलाफ जाता है। अदालत ने मामले में एडवोकेट वी. शेखर को कोर्ट सलाहकार बनाया था।
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच ने दोबारा विचार करने का फैसला किया था और सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।