स्ट्रोक के बाद बढ़ जाता है डिमेंशिया का खतरा

देश सेहत

नई दिल्ली : स्ट्रोक का सामना कर चुके मरीजों में डिमेंशिया होने की संभावना काफी अधिक रहती है। विश्वस्तर पर लगभग 1.5 करोड़ लोग सालाना स्ट्रोक से ग्रस्त होते हैं। डिमेंशिया से पांच करोड़ लोग पीड़ित हैं, यह संख्या अगले 20 वर्षो में लगभग दोगुनी हो जाएगी। एक्सेटर मेडिकल स्कूल के नए अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ है।

विशेषज्ञों के अनुसार ‘स्ट्रोक या सेरेब्रोवास्कुलर एक्सीडेंट (सीवीए) के परिणामस्वरूप मस्तिष्क में अचानक रक्त की कमी या मस्तिष्क के भीतर रक्तस्राव होता है। जिसके परिणामस्वरूप न्यूरोलॉजिकल फंक्शन की हानि होती है। मोटापे, धूम्रपान, उच्च रक्तचाप, शराब की लत, मधुमेह और पारिवारिक इतिहास आदि पर स्ट्रोक के लिए विचार किया जाता है’।

स्ट्रोक के कुछ चेतावनी संकेतों में बांह, हाथ या पैर में कमजोरी शामिल होती है। शरीर के एक तरफ धुंधलापन, नजर में यकायक कमजोरी, खासकर एक आंख में, बोलने में अचानक कठिनाई, समझने में असमर्थता, चक्कर आना या संतुलन का नुकसान और अचानक भारी सिरदर्द आदि।

विशेषज्ञों की माने तो ‘स्ट्रोक दुनिया भर में प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंताओं में से एक है। क्योंकि पिछले कुछ दशकों में भारत में इसका बोझ खतरनाक दर से बढ़ रहा है। इस स्थिति को हल करने की तत्काल आवश्यकता है और यह केवल सभी जनसांख्यिकीय समूहों के बीच अधिक प्रभावी सार्वजनिक शिक्षा के माध्यम से किया जा सकता है।

सप्ताह में पांच बार मध्यम व्यायाम करें, फल सब्जियां और कम सोडियम वाला आहार खाएं, अपने कोलेस्ट्रॉल को कम करें। स्वस्थ बीएमआई या कमर का अनुपात बनाए रखें। इसके साथ ही धूम्रपान भी बंद करना चाहिए।

इसके साथ ही शराब के सेवन पर भी नियंत्रण लगाने की जरूरत है। पुरुषों के लिए दो और महिलाओं के लिए दिन में अधिकतम एक पैग ही काफी है। एट्रियल फाइब्रिलेशन हो तो तुरंत उसका इलाज करना चाहिए।

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