सपा को ढक्कन कर ,दस हज़ार कार्यकर्ताओं और दो सूटकेस के साथ बीजेपी में शामिल हुए अमर सिंह

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लखनऊ. पिछले बीस सालों में हुए हर राजनीतिक ‘उपद्रव’ में मुख्य भूमिका निभाने वाले पूर्व समाजवादी नेता अमर सिंह, अपने दस हज़ार कार्यकर्ताओं के साथ भाजपा में शामिल हो गए। हालाँकि, ये बात अलग है कि जब वो भाजपा में शामिल होने का नाटक कर रहे थे, तब बीजेपी का कोई भी नेता वहां मौजूद नहीं था। ना ही पार्टी में उनका किसी ने स्वागत किया और ना ही किसी ने उन्हें भगवा गमछा भेंट किया, फिर भी अमर सिंह बार-बार कहते रहे कि बीजेपी वालों ने मुझे स्वीकार कर लिया है।

पत्रकारों को संबोधित करते अमर सिंह

जब एक रिपोर्टर ने उनसे पूछा कि “यह कार्यक्रम तो मुझे फर्जी लग रहा है, कोई बीजेपी वाला यहाँ नज़र नहीं आ रहा?” तो वो तपाक से बोल पड़े “देखिए! तुम्हारे नैनों के दिवालियेपन का बोझ भला मैं क्यों उठाऊं! स्वयं अमित शाह ने मुझे अपना छोटा भाई कहा है! यदि छोटा भाई पार्टी में आना चाहे तो उसे किसी के दस्तखत की आवश्यकता नहीं है!”

उनका यह घोर डिप्लोमैटिक जवाब सुनकर वह रिपोर्टर वहीँ पर बेहोश हो गया। तभी एक और पत्रकार को चर्बी चढ़ गई और उसने अमर सिंह से सवाल पूछ लिया “लेकिन अमर सिंह जी! आपके कहने से थोड़ी ना हम मान लेंगे! कुछ सबूत भी तो होना चाहिए?”

इस बार अमर सिंह दांत रगड़ते हुए बोले “सबूत तो इस बात का भी नहीं है कि धरती गोल है या चपटी! इसलिए मैं इन सबूतों के प्रपंच से स्वयं को जितना दूर हो सके, रखने का प्रयास करता हूँ! छद्म वेश और वाणी की चपलता, ह्रदय की गहराइयों को नहीं नाप सकतीं! मेरा मोदी जी से नाता ‘किंतु’ और ‘परन्तु’ के बंधनों से मुक्त है!”

अमर सिंह का यह जवाब सुनकर रिपोर्टर झल्ला गया- “ये आप क्या कह रहे हैं मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है! आप सीधा-सीधा जवाब क्यों नहीं देते!” -कहकर वह माइक पटककर भाग गया।

आखिर में जिम जाने वाले फिट रिपोर्टर ने उनसे पूछ लिया कि “आपके दस हज़ार कार्यकर्ता तो कहीं नज़र नहीं आ रहे? दस-बारह लोग से ज्यादा नहीं हैं!” इस पर अमर सिंह ने जवाब दिया कि “देखिए! लोकतंत्र को भीड़तंत्र में परिवर्तित कर देने की साजिश के खिलाफ मैं हमेशा खड़ा रहा हूँ! आज भी मूंछ तानकर खड़ा हुआ हूँ! समय की मांग है कि हम भावनाओं पर ध्यान केंद्रित करें और ओछे आडम्बरों से स्वयं को ऊपर उठाएं!”

इस बार एक भी पत्रकार ना बेहोश हुआ और ना ही मैदान छोड़कर भागा, क्योंकि सबने यह मान लिया कि अमर सिंह से वाद-विवाद में कोई नहीं जीत सकता।

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