दादी की गलती पोते ने किया स्वीकार,क्या माफ़ करेंगा हिंदुस्तान,गांधीवादी चिंतक पंडित राजनाथ शर्मा ने दादी इंदिरा गाँधी की मौत के 37 वर्ष बाद पोते राहुल की सियासी समझ और दिमागी बगावती कीड़े की तड़प से निकली अंदर की आवाज़ की किया तारीफ़

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तहलका टुडे टीम
बाराबंकी। ‘इमरजेंसी लगाना मेरी दादी की भूल थी। जिसे मैं स्वीकार करता हूं।’ कांग्रेस नेता राहुल गांधी के इस बयान को डाॅ. लोहिया के अनुयायी, कांग्रेस के प्रबल विरोधी एवं लोकतंत्र रक्षक सेनानी, गांधीवादी राजनाथ शर्मा ने साहसिक वक्तव्य करार दिया है।

उन्होंने एक प्रेस वक्तव्य जारी करते हुए कहा कि राहुल गांधी एक योग्य और परिपक्व राजनेता है इसमें कोई दो राय नहीं। राजनीति करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को इस बात पर विचार करना चाहिए कि लोकतंत्र में कभी-कभी लोक राय में भूल वश गलती में अपना फैसला कर देती है। लेकिन वह सत्ता में बैठे लोगों को निरंकुश होने का अधिकार नहीं देती है।

श्री शर्मा ने कहा कि लोकतंत्र की राजनीतिक व्यवस्था एक घुमली हुई पहिया की तरह है। वह स्थिर नहीं होती है, वरन चलती रहती है। श्री गांधी का यह वक्तव्य उस समय आया जब एक लोकतांत्रिक सरकार तीन माह से अधिक समय बीत जाने के बाद भी किसानों की समस्याओं के निराकरण में विफल साबित हुई। यही नहीं सिर्फ बातों के जरिए किसान आन्दोलन को भ्रमित करने का प्रयास कर रही है।

श्री शर्मा ने राहुल गांधी को ट्वीट करके भारत विभाजन की घटना पर विचार करने और लाखों मुतक शरणाथियों के प्रति शोक संवेदना प्रकट करने का आग्रह किया।

श्री शर्मा ने इस बारे बताते हुए कहा कि 1947 में भारत विभाजन के समय महात्मा गांधी ने देश व कांग्रेस को एक संदेश दिया था कि परिस्थितियां अनुकूल न होने के कारण भारत विभाजन को स्वीकार करना पड़ा रहा है। लेकिन हमारा प्रयास होगा कि भारत और पाकिस्तान पुनः एक राष्ट्र बनें और यदि ऐसा होना संभव न हो तो एक ढीला-ढाला महासंघ बने। महासंघ के विचार का समर्थन करते हुए 12 अप्रैल 1964 में डा. लोहिया और दीनदयाल उपाध्याय के बीच संयुक्त वक्तव्य जारी हुआ। तत्कालीन उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण अडवाणी ने लंदन प्रवास के दौरान बीबीसी को दिए वक्तव्य में हिन्द पाक महासंघ बनने का समर्थन किया था।

श्री शर्मा ने बताया कि आज हमारी राजनीति अमेरिका जैसे शक्तिशाली देशों के ईदगिर्द घूम रही है। जब वह चाहते हैं तब हमको मजबूरन पाकिस्तान के साथ शान्ति और संधि की वार्ता करना पड़ता है और ज बवह चाहते हैं तो भारत या पाकिस्तान को संघर्षरत होना पड़ता है। 1965 की जंग के बाद से निरंतर ‘हिन्द-पाक एका’ यानि ‘भारत पाकिस्तान का महासंघ बने’ इस प्रयास में लगा हूं। वरिष्ठ पत्रकार पद्मश्री रामबहादुर राय ने जनसत्ता में सम्पादक रहते हुए महासंघ की प्रसांगिकता पर सम्पादकीय भी लिखा था।

उन्होने कहा कि भारत विभाजन की घटना और महासंघ के सवाल पर राहुल गांधी को विचार करना चाहिए। उन्हें यह भी विचार करना चाहिए कि उन 14 लाख लोगों के प्रति संवेदना प्रकट करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि देनी चाहिए।

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