प्रियंका ! क्या हो गया ?

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के. विक्रम राव
बहना प्रियंका राबर्ट वाड्रा जीत के इतने करीब आ गई थीं| मंजिल से बस अधर भर की दूरी बच गई थी | पर वह हार मान गईं| वाराणसी-2019 को वे रायबरेली – 1977 जैसा बनाने वाली थीं| स्वयं राजनारायण द्वितीय बन जातीं| उनकी दादी को इस समाजवादी भूमिहार ने घर में घुसकर पटखनी दी थी| काशी में प्रियंका भी नरेंद्र मोदी को चित्त कर सकती थीं| इच्छा शक्ति की दरकार थी|
गत माह एक रिपोर्टर ने उनसे पूछा भी था की “आप चुनाव क्यों नहीं लड़तीं?” प्रियंका का जवाब था : “वाराणसी से क्यों न लडूं?” वाणी में सहज गुरूर था| बस मीडिया फुलझड़ी पा गई| यही खबर चैनलों तथा अख़बारों में फुदकती रही| सभी असमंजस में थे| ऐलान था कि अड़तालीस साल की युवती प्रियंका अड़सठ के वृद्ध मोदी से भिड़ेगी| उधर भाई और माँ सहम गये| तरोताजा कांग्रेसी नेता यदि पहले चुनावी दांव में ही धड़ाम हो जाती तो ? राखी की लाज रखने भाई बोला : “अमेठी से बहन प्रत्याशी बनेंगी|” मानो राहुल गांधी को वायनाड तथा अमेठी से विजयी घोषित कर दिया गया हो|
राहुल गांधी 2009 में चार लाख से अमेठी में जीते थे, जो पांच वर्षों बाद (2014) कट कर महज एक लाख पर आ गया| पराजय के बावजूद गत पांच सालों से स्मृति ईरानी इस क्षेत्र में ओवरटाइम करती रही हैं| यदि राहुल केरल से सांसद हो गये तो क्या तय है कि कांग्रेसी अमेठी उसके बाद भी भाजपायी होने से बच जायेगी? परिणाम में प्रियंका न गोमती (अमेठी) की रहेंगी, गंगा की (वाराणसी) तो अब हो ही नहीं पायीं !
माता और भाई की तुलना में प्रियंका राजनीति में लाचार स्थिति में है | निजी जय –पराजय बोध अभी उन्हें हुआ नहीं है| वाराणसी में अनुभव होना संभव था| नतीजन राजनेता जैसी हांकने – बघारने वाली फितरत पर रोक लग न पायी | मसलन प्रियंका ने प्रधान मंत्री के वोटरों से पूछा कि वाराणसी के गाँवों में उनके सांसद महोदय (मोदी) पहुँचे ? यह आरोप लगाया प्रियंका ने| अब ये पैराशूट से सियासत में उतरी प्रियंका क्या जानें कि साढ़े आठ सौ वर्ग किलोमीटर क्षेत्रवाले वाराणसी में 823 गाँव हैं, और पाँच लाख घर हैं| मोदी पांच वर्षों में (1755 दिन) में वाराणसी की पदयात्रा पर ही रहते तो भी सब जगह न पहुँच पाते| अमेठी के 286 गाँवों में उनके भ्राताश्री केवल सांसद रहकर भी कितनी बार कहाँ –कहाँ पधार पाये? रायबरेली में साढ़े तीन सौ गाँव हैं| सोनिया गांधी पंद्रह वर्षों की सांसदी में कहाँ –कहाँ गयीं? खुद प्रियंका का पाँच वर्षों में केवल एक बार, अमेठी तथा रायबरेली की जनता के अनुसार, दीदार होते हैं|
अब मोदी पर तरस आती है जब प्रियंका उनसे पांच वर्षों का हिसाब मांगती है | मोदी भी प्रत्युत्तर में दस वर्षों तक देश की एकछत्र मालकिन रहीं सोनिया गांधी के कृत्य-अकृत्य का लेखा जोखा मांगें| अर्थात् नेहरू वंश का लाभ उठाकर सत्ता पाने वालों से नेहरू-कुनबे के साठ साल के राजकाल का बहीखाता राष्ट्र देखना चाहेगा| इस पर प्रियंका का मौन शोरभरा है| उनसे महान तो उनके पति हैं जो पीतल विक्रेता थे मगर प्रियंकापति बनते ही दो दशकों में अरबपति बन गये| उनका बड़ा प्रभावी दावा रहा है कि भारत के किसी भी क्षेत्र से लोक सभा का चुनाव जीत सकते हैं | राबर्ट वाड्रा अत्यंत भाग्यशाली हैं क्योंकि उनके उन्नीस-वर्षीय पुत्र रेहान को मामा (राहुल) ने अमेठी में नेहरू-वाड्रा वंश का अगला युवराज गत माह नामित कर दिया है| विगत तीन महीनों में नामित कांग्रेस महासचिव प्रियंका की तूफानी तरक्की देखकर विश्वास पक्का हो गया कि नेहरू परिवार की परम्परा सम्यक और सुदृढ़ हो गई है| उनके पिता को अम्मा इंदिरा गांधी ने पार्टी महासचिव नामित कर दिया था| बिना पार्टी सदस्य बने अमेठी लोकसभा उपचुनाव में प्रत्याशी का टिकट (जून 1981) दे दिया था| पिता के बाद पत्नी, फिर पुत्र और अब बहन, सभी को पदाधिकारी मनोतीत कर दिया जाता रहा| एक वरिष्ठ पार्टी पर्यवेक्षक ने कहा भी कि कांग्रेस पदाधिकारी के चुनाव का मतपत्र देखे चालीस वर्ष से अधिक हो गया है| गनीमत है वोटर तो ईवीएम से सांसद को चुनता है| वरना निर्वाचन आयोग ख़त्म कर, वहाँ भी मनोनयन पद्धति चालू हो जाती| तब प्रियंका को वाराणसी से नामांकन का झंझट न होता| अमेठी से चयन तो घर की ही बात रहती|

K. Vikram Rao
Mobile -9415000909
E-mail –k.vikramrao@gmail.com

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