जकार्ता : एशियाई खेलों की कुराश प्रतियोगिता में रजत पदक विजेता पिंकी बलहारा को यहां तक पहुंचने में खासा संघर्ष करना पड़ा। पिछले तीन माह में परिवार के तीन लोगों की मौत से पिंकी टूट गयी थी पर उसने अपना हौंसला नहीं खोया। अपने पिता के सपने को पूरा करने के लिए पिंकी ने खुद को संभाला तभी वह देश के लिए पदक जीत सकी हैं।
19 साल की पिंकी बलहारा दिल्ली के नेब सराय इलाके में रहती हैं। हाल में उनके पिता सहित परिवार में तीन लोगों की मौत हुई थीं, जिनमें से एक उनके पिता भी थे। वह खेलों के शुरू होने से सिर्फ तीन महीने पहले दुनिया छोड़कर चले गए थे। बावजूद इसके पिंकी ने खुद को लक्ष्य से भटकने नहीं दिया और महिलाओं की प्रतियोगिता में रजत पदक जीता। उन दिनों को याद करते हुए पिंकी ने कहा,
‘वह मेरे जीवन का सबसे कठिन और बुरा दौर था। सबसे पहले मैंने अपने चचेरे भाई को खोया। फिर मेरे पिता जी की हार्ट अटैक से मौत हो गई। फिर मेरे दादा जी भी दुनिया से चले गए। यह सब बहुत कम समय में हुआ था।’
पिंकी ने बताया कि एशियाई खेलों में चयन होने के कुछ वक्त बाद ही उनके पिताजी की मौत हो गई थी।
वह पिंकी के सिलेक्शन पर काफी खुश थे। फिर पिता की मौत के बाद पिंकी के लिए अपने को संभालना कठिन हो गया था। उस समय उनके एक चाचा समुंदर टोकस आए और सहारा दिया। टोकस जो खुद पहले जूडो खिलाड़ी रह चुके थे उन्होंने पिंकी को याद दिलाया कि उनके पिताजी चाहते थे कि वह एशियाई खेलों में अच्छा करें और वह अब ऐसे हार नहीं मान सकतीं।
पिंकी जो खुद पहले जूडो ही खेलती थीं, उन्हें अपने अंकल की बात अच्छे से समझ आ गई। जूडो और कुराश खेल में काफी समानता है, इसलिए पिंकी ने बदला था खेल।
अपने पिता की अंतिम क्रिया के बाद नैशनल की तैयारी के लिए पिंकी पर सिर्फ 5 दिन का वक्त था। इस खिलाड़ी ने कहा, ‘उस समय मेरा वजन 58 किलो था
मुझे जिम जाकर उसे 52 किलो तक लाना था। मैं रात को जिम जाया करती थी क्योंकि दिन में जिम जाने पर लोग मुझे ताना मारते कि अपने पिता की मौत के तुरंत बाद मैं जिम जाने लगी।’