मायावती के दाहिने हाथ रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी क्या फिर बहन जी की आवाज़ पर लबबैक कहेंगे?

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तहलका टुडे टीम

वक़्त और हालात बदल रहे है दूर हुए लोग करीब आ रहे है इन्ही हालात में चर्चा गरम है की बसपा में मुस्लिम कद्दावर नेता की बेहद कमी है इन हालात में मायावती के दाहिने हाथ रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी क्या फिर बहन जी की आवाज़ पर लबबैक कहेंगे?

मालूम एक समय मायावती के बेहद करीबी रहे और उत्तर प्रदेश के बांदा के दिग्गज नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी को 10 मई 2017 को बीएसपी से अचानक निष्कासित कर दिया गया था। पार्टी के वरिष्ठ नेता सतीश चंद्र मिश्रा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर नसीमुद्दीन सिद्दीकी को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया था। पार्टी से निकाले जाने के बाद नसीमुद्दीन की नाराज़गी भी खुलकर सामने आई और उन्होंने मायावती पर कई गंभीर आरोप लगाए थे।

बीएसपी से निष्कासित होने के बाद 2017 में एक कार्यक्रम में नसीमुद्दीन ने मायावती पर टिप्पणी करते हुए कहा था, ‘मुझे तो आजतक पता नहीं है कि बहन जी ने मुझे पार्टी से क्यों निकाल दिया? कम से कम मुझे मेरा गुनाह तो बता देना चाहिए था। मायावती ने मुझे सजा-ए-मौत तो दे दी अब ये भी बता देना चाहिए कि मेरा कसूर क्या था? कम से कम उन्हें ये तो बताना चाहिए था कि मैंने कत्ल किसका किया था।’

नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने कहा था, ‘एक बार मायावती ने मुझे बुलाया था और मुझसे 50 करोड़ रुपए मांगे थे। मैंने जब उन्हें पैसे नहीं होने की बात बताई तो उन्होंने मुझे संपत्ति बेचने के लिए कहा। मैंने उन्हें नोटबंदी के बारे में भी बताया कि अभी कैश पैसे मिलना बहुत मुश्किल है, बावजूद इसके वो मुझसे पैसे मांगती रहीं। इसके बाद मैंने पैसे जुटाने शुरू किए। संपत्ति तक भी बेच दी, लेकिन बहन जी पूरे पैसे मांगने पर अड़ी रहीं।’

मायावती की सरकार में मंत्री थे नसीमुद्दीन: नसीमुद्दीन साल 1985 से कांशीराम के मिशन से जुड़े हुए थे। उन्होंने नगरपालिका का पहली बार चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गए थे। अब उनकी नज़र विधानसभा पर थी और उन्हें ये मौका मिला साल 1991 में। ‘राम लहर’ के बीच नसीमुद्दीन ने बीएसपी के टिकट पर बांदा से विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। इसके बाद एक बार फिर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव आए और साल 1993 में वह फिर मैदान में उतरे, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

नसीमुद्दीन बांदा के अलीगंज के रहने वाले हैं। उनका जन्‍म 4 जून 1959 को बांदा में हुआ है। नसीमुद्दीन के पिता कमरुद्दीन सिद्दीकी किसान थे। उन्होंने खानकाह हायर सेकंडरी स्कूल बांदा से हाईस्कूल किया है। बांदा के डीएवी इंटर कॉलेज से उन्‍होंने इंटरमीडिएट की पढ़ाई की। नसीमुद्दीन ने बुंदेलखंड विश्वविद्यालय झांसी से स्‍नातक किया जबक‍ि एलएलबी महमूदाबाद विश्वविद्यालय जिला कानपुर से की। उनकी पत्नी का नाम हुस्ना सिद्दिकी है। उनके दो बेटे हैं। उन्‍हें शुरू से खेल का शौक था। वह राष्ट्रीय स्तर के वाॅलीबाल के खिलाड़ी भी रह चुके हैं।

नसीमुद्दीन ने राजनीति जीवन की शुरुआत 1988 में की थी। उससे पहले वह रेलवे में कांट्रेक्‍टर का काम करते थे। पहली बार वह बांदा से नगर निगम अध्यक्ष का चुनाव लड़े थे। उसमें वह हार गए थे। इसके बाद वह 1988 में बसपा में शामिल हो गए। 1991 में वह बांदा से बसपा के टिकट पर विधायक बने। 1993 में हुए 2 साल के बाद चुनाव में उन्हें बांदा में हार मिली। 1995 में जब बसपा मुखिया मायावती भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री बनी थीं, तो नसीमुद्दीन को कैबिनेट मंत्री पद से नवाजा गया था। 2007 से 2012 की बसपा सरकार नसीमुद्दीन फिर से कैबिनेट मंत्री बने। उन्‍हें 18 विभाग दिए गए थे। बसपा सरकार में उनको मिनी सीएम कहा जाने लगा था। बसपा ने नसीमुद्दीन को विधानपरिषद भेजा था। वह आज भी एमएलसी हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा के खराब प्रदर्शन के बाद मई में उन्‍हें पार्टी से निकाल दिया गया था। बसपा सुप्रीमो मायावती ने उन पर रुपयों के लेनदेन में गड़बड़ी करने का भी आरोप लगाया था। इसके बाद नसीमुद्दीन ने भी मायावती पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था। फरवरी 2018 में नसीमुद्दीन ने कांग्रेस का दामन थाम लिया था।

 

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