नई दिल्ली । भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा की कल बुधवार को होने वाली घोषणा से पहले मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की तीन दिवसीय बैठक सोमवार से शुरू हो गई। माना जा रहा है खुदरा और थोक महंगाई के बढ़ जाने के बाद शीर्ष बैंक मौद्रिक नीति को लेकर सख्त रवैया अपना सकता है। याद हो कि मौद्रिक नीति की घोषणा से पूर्व एमपीसी की इसी तरह की तीन दिवसीय बैठक इससे पहले जून में भी हुई थी
तब आरबीआई ने प्रमुख ब्याज दरों में कटौती के 2015 से जारी सिलसिले को तोड़ते हुए रेपो रेट को 25 आधार अंक बढ़ाकर 6.25 फीसदी कर दिया था। उस समय बैंक ने अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल में आई तेजी के कारण देश में बढ़ती महंगाई पर लगाम लगाने के लिए ब्याज दर में वृद्धि की थी। इससे पहले एमसीसी की बैठक मौद्रिक नीति की घोषणा से दो दिन पहले शुरू होती थी।
आरबीआई ने इससे पहले चार मौद्रिक नीति समीक्षा बैठक के दौरान रेपो रेट को यथावत छह फीसदी रखा था। मौजूदा हालात में आरबीआई के रवैये को लेकर विश्लेषकों का विभाजित मत है, क्योंकि एक ओर औद्योगिक उत्पाद वृद्धि दर अप्रैल के 4.9 फीसदी से घट मई में 3.2 फीसदी रह गई है।
वहीं खुदरा महंगाई इस साल जून में पांच फीसदी तक पहुंच गई, जबकि मई में 4.87 फीसदी थी। जून की मौद्रिक नीति समीक्षा के दौरान आरबीआई के गवर्नर उर्जित पटेल ने कहा था कि महंगाई दर केंद्रीय बैंक के मध्यवर्ती लक्ष्य चार फीसदी से ज्यादा हो गई। तब उन्होंने कहा था, आरबीआई आंकड़ों को ध्यान में रखेगा और वृद्धि को लेकर सावधानी बरतेगा।