लंदन । मलेरिया से त्रस्त देशों में मच्छरों को पूरी तरह से खत्म करने का अन्य प्रजातियों पर असर नहीं होगा। इंपीरियल कॉलेज लंदन में हुए अध्ययन में कहा गया है कि स्थानीय स्तर पर एक मच्छरों की एक प्रजाति को खत्म करने से मलेरिया के मामलों में अप्रत्याशित रूप से कमी आएगी। इससे अन्य जीवों के भोजन चक्र पर भी कोई असर नहीं होगा।
आंकड़ों की बात करें तो 2016 में 21.6 करोड़ मामले मलेरिया के हुए और इनमें से 445000 लोगों की मौत हो गई। इनमें से ज्यादातर 5 साल से कम उम्र के बच्चे थे। रिपोर्ट में विशेषज्ञों ने पूर्व में प्रकाशित हुए रिपोर्ट्स का आकलन किया है। अध्ययन में उन्होंने बताया कि कुछ जीव हैं जो एनोफिलीस गैंबी प्रजाति के मच्छरों को खाते हैं, मगर यह अन्य प्रजातियों को भी खाते हैं।
प्रमुख शोधकर्ता डॉ. टिली कॉलिंस ने कहा कि एनोफिलीस गैंबी प्रजाति के वयस्क मच्छर छोटे होते हैं और इन्हें पकड़ना मुश्किल होता है। यह रात के समय ज्यादा होते हैं। इस अध्ययन में और सुधार करने और मौजूदा नतीजों की पुष्टि करने के लिए टार्गेट मलेरिया प्रोजेक्ट यूनीवर्सिटी ऑफ घाना और यूनीवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड के साथ 4 साल के अध्ययन की शुरुआत करने जा रहा है।
यह अध्ययन घाना के स्थानीय वातावरण में किया जाएगा। सब-सहारा अफ्रीका में मलेरिया का सबसे ज्यादा प्रकोप है। यहां मच्छरों की स्थानीय प्रजातियों में से कुछ ही मलेरियावाहक होती हैं। शोधकर्ता इनमें से एक एनोफिलीस गैंबी प्रजाति में मलेरिया फैलाने की क्षमता को भविष्य में जेनेटिक इंजीनियरिंग की मदद से कम करने की कोशिशों में लगे हैं। मगर इससे पहले वह इकोसिस्टम और अन्य प्रजातियों पर इसके प्रभावों को समझना चाहते हैं।