शहंशाह ए गज़ल खु़मार बाराबंकवी की जयन्ती 15 सितंबर को मुगल दरबार में, तैयारिया पूरी

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तहलका टुडे टीम

बाराबंकी। खुमार मेमोरियल अकादमी की एक बैठक नगर के मुगल दरबार में खुमार मेमोरियल अकादमी के अध्यक्ष अमीर हैदर की अध्यक्षता में आयोजित हुई। बैठक में अकादमी के सचिव मो. उमेर किदवाई ने बताया कि आगामी 15 सितम्बर को मध्यान्ह 3 बजे मुगल दरबार सभागार में शहंशाह ए गज़ल खु़मार बाराबंकवी की जयन्ती पर समारोह का आयोजन किया जाएगा। खुमार मेमोरियल अकादमी के तत्ववाधान में आयोजित संगोष्ठी ‘ख़ुमार की शायरी और शख़्सियत‘ विषयक पर आधारित होगी। जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में पूर्व सांसद जफ़र अली नकवी, प्रख्यात शायर एवं साहित्यकार डॉ. शारिब रूदौलवी, उर्दू एकेडमी के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अस्मत मलिहाबादी, डा. अनवर हुसैन खान, अख़्तर जमाल उस्मानी अपने विचार व्यक्त करेंगे। श्री किदवाई ने बताया कि कार्यक्रम में पूर्व कैबिनेट मंत्री अरविन्द कुमार सिंह गोप, रामनगर विधायक हाजी फरीद महफूज किदवाई, विधायक सुरेश यादव, गांधीवादी चिन्तक राजनाथ शर्मा, जिला बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष बृजेश दीक्षित सहित कई गण्मान्य व्यक्ति विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद रहेंगे। बैठक में प्रमुख रूप से अनवर महबूब किदवाई, पत्रकार हशमत उल्ला,सैयद रिज़वान मुस्तफा,फैज़ ख़ुमार, रेहान अल्वी, फराज उद्दीन किदवाई, फज़ल इमाम मदनी, परवेज़ अहमद, प्रदीप सारंग, मेराज़ हैदर, अदील इम्तियाज़, मो. वकार सहित अकादमी के अन्य सदस्य गण मौजूद रहे।

खुमार बाराबंकवी के बारे में

15 सितम्बर वर्ष 1919 में जन्मे इस इंसान का नाम यूँ तो “मोहम्मद हैदर खान” था लेकिन शायद ही कोई उनके इस नाम से वाकिफ हो, वो तो मशहूर थे खुमार बाराबंकवी या खुमार साहब के नाम से | बाराबंकी जिले को अन्तर्राष्ट्रीय पटल पर पहचान दिलाने वाले अजीम शायर खुमार बाराबंकवी को प्यार से बेहद कम लोग ‘दुल्लन’ भी बुलाते थे |

“खुमार” ने शहर के सिटी इंटर कालेज से आठवीं तक शिक्षा ग्रहण की । इसके पश्चात वह राजकीय इंटर कालेज बाराबंकी जिसकी मान्यता उस समय हाईस्कूल तक ही थी वहां से कक्षा 10 की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके पश्चात लखनऊ के जुबली इंटर कालेज में उन्होंने दाखिला लिया लेकिन उनका मन पढ़ाई में नहीं लगा।
वर्ष 1938 से ही उन्होंने मुशायरों में भाग लेना शुरू कर दिया। खुमार ने अपना पहला मुशायरा बरेली में पढ़ा। उनका प्रथम शेर ‘वाकिफ नहीं तुम अपनी निगाहों के असर से, इस राज को पूछो किसी बरबाद नजर से’ था । ढाई वर्ष के अंतराल में ही वे पूरे मुल्क में प्रसिद्ध हो गये। उस दौर में जिगर मुरादाबादी उच्च कोटि के शायर माने जाते थे चूंकि खुमार ने ‘तरन्नुम’ से ही शुरूआत की, इसलिये शीघ्र ही वे जिगर मुरादाबादी के समकक्ष पहुंच गये। मुशायरों में अगर मजरूह सुलतानपुरी साहब के बाद अगर किसी को तवज्जो दी जाती थी तो वो “खुमार साहब” ही थे |

महान शायर और गीतकार मजरूह सुलतानपुरी आपके अज़ीज़ दोस्त थे| जितना बड़ा क़द विनम्रता की उतनी ही बड़ी मूरत, कभी-कभी तो मुशायरों में आपको घंटों तक ग़ज़ल पढ़नी पड़ती थी, लोग उठने ही नहीं देते थे | हर मिसरे के बाद “आदाब” कहने की इनकी अदा इन्हें बाकियों से मुख्तलिफ़ करती है । आपका अंदाजे बयां भी औरों से अलग था जो इनकी ख़ूबसूरत ग़ज़लों में और भी चार-चाँद लगता था |
वैसे तो खुमार साहब मुशायरों को ही तवज्जो देते थे , लेकिन फिर भी उन्होंने कुछ फ़िल्मों के गीत भी लिखे, जो उनकी ग़ज़लों की तरह ही उम्दा हैं |
हर दिल अजीज ‘खुमार बाराबंकवी’ को वर्ष 1942-43 में प्रख्यात फिल्म निर्देशक एआर अख्तर ने मुम्बई बुला लिया। यहाँ से शुरू हुआ उनका फ़िल्मी सफ़र और वे फ़िल्मी दुनिया में एक सफल गीतकार के रूप में जुड़ गए।
आपने 1955 में फिल्म “रुख़साना” के लिये “शकील बदायूँनी” के साथ गाने लिखे थे। उससे पहले 1946 में फ़िल्म “शहंशाह ” के एक गीत “चाह बरबाद करेगी” को “खुमार” साहब ने हीं लिखा था, जिसे संगीत से सजाया था “नौशाद” ने और अपनी आवाज़ दी थी गायकी के बेताज बादशाह “के०एल०सहगल” साहब ने |
फ़िल्म ‘बारादरी’ के लिये लिखा गया उनका यह गीत ‘तस्वीर बनाता हूँ, तस्वीर नहीं बनती’ आज भी लोगों के दिलों में बसा है। उन्होंने तमाम फ़िल्मों के लिये ‘अपने किये पे कोई परेशान हो गया’, ‘एक दिल और तलबगार है बहुत’, ‘दिल की महफ़िल सजी है चले आइए’, ‘साज हो तुम आवाज़ हूँ मैं’,’भुला नहीं देना’, ‘दर्द भरा दिल भर-भर आए’, ‘आग लग जाए इस ज़िन्दगी को, मोहब्बत की बस इतनी दास्ताँ है’, ‘आई बैरन बयार, कियो सोलह सिंगार’, जैसे गीत लिखे जो खासे लोकप्रिय हए।
खुमार के ये गीत आज भी हमारी ज़िन्दगी में रस घोल देते हैं।
खुमार साहब ने चार पुस्तकें भी लिखीं ये पुस्तकें शब-ए-ताब, हदीस-ए-दीगर,आतिश-ए-तर और रख्स-ए-मचा है।
खुमार की पुस्तकें कई विश्वविद्यालयों के पाठयक्रम में शामिल की गई। उन्हें उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी, जिगर मुरादाबादी, उर्दू अवार्ड, उर्दू सेंटर कीनिया और अकादमी नवाये मीर उस्मानिया विश्वविद्यालय हैदराबाद, मल्टी कल्चरल सेंटर ओसो कनाडा, अदबी संगम न्यूयार्क, दीन दयाल जालान सम्मान वाराणसी, कमर जलालवी एलाइड्स कालेज पाकिस्तान आदि ने सम्मानित किया।

वर्ष 1992 में दुबई में खुमार की प्रसिद्धि और कामयाबी के लिये जश्न मनाया गया। 25 सितम्बर 1993 को जिले में जश्न-ए-खुमार का आयोजन किया गया। जिसमें तत्कालीन गवर्नर मोतीलाल बोरा ने एक लाख की धनराशि व प्रशस्ति पत्र उन्हें देकर सम्मानित किया।
खुमार का अंतिम समय काफी कष्टप्रद रहा। मृत्यु के एक वर्ष पूर्व से ही उन्होंने खाना पीना छोड़ दिया था। 13 फरवरी 99 को उनकी हालत गंभीर हो गई। उन्हें बाराबंकी जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया। जहाँ 20फरवरी की सुबह उन्होंने आखिरी साँस ली। उनकी खवाहिश के मुताबिक कर्बला सिविल लाइन में उनकी तद्फीन हुए अब वह हमारे बीच नहीं है लेकिन उनकी यादें आज भी लोगों के जेहन में ताज़ा हैं। करबला में उनके कलाम मजलिसो में भी खास कर पढ़ कर उनको इसाले सवाब अक्सर किया जाता है,

हुसैन को कत्ल करने वाले बहुत ही खुश थे खुमार लेकिन
यजीदियत कब की मिट चुकी है हुसैनियत आज भी जवा है

उनका ये कलाम आज भी समाज के लिए पैगाम है

अकेले हैं वो और झुंझला रहे हैं
मेरी याद से जंग फ़रमा रहे हैं

इलाही मेरे दोस्त हों ख़ैरियत से
ये क्यूँ घर में पत्थर नहीं आ रहे हैं

बहुत ख़ुश हैं गुस्ताख़ियों पर हमारी
बज़ाहिर जो बरहम नज़र आ रहे हैं

ये कैसी हवा-ए-तरक्की चली है
दीये तो दीये दिल बुझे जा रहे हैं

बहिश्ते-तसव्वुर के जलवे हैं मैं हूँ
जुदाई सलामत मज़े आ रहे हैं

बहारों में भी मय से परहेज़ तौबा
‘ख़ुमार’ आप काफ़िर हुए जा रहे हैं

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