इजराइल के जुल्म पर भारी पड़ा भारत का शांति प्रस्ताव: नेतन्याहू की जिद से उजागर हुई वैश्विक त्रासदी
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तहलका टुडे टीम/सैयद रिजवान मुस्तफा
नई दिल्ली:भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शांति की बात अगर मान लेता इजराइल, तो नेतन्याहू इतनी बदनामी और जिल्लत से न गुजरते। भारत, जो शांति और अहिंसा के लिए विश्व में जाना जाता है, ने हमेशा संवाद और कूटनीति को प्राथमिकता दी है। लेकिन इजराइल ने अपनी जिद और दादागिरी के चलते खुद को एक असाधारण संकट में डाल लिया।
इजराइल के अत्याचार: एक जिद्दी नेतृत्व की परिणीति
इजराइल और नेतन्याहू का नाम आज दुनिया भर में कठोर और दमनकारी नीतियों के साथ जोड़ा जाता है। नेतन्याहू के नेतृत्व में इजराइल ने लंबे समय से फिलिस्तीनियों और अन्य पड़ोसी देशों पर आक्रमण और कब्जे की नीति अपनाई है। हर बार जब दुनिया ने शांति की अपील की, इजराइल ने उसे नजरअंदाज करते हुए सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया। यह स्थिति तब और भी बदतर हो गई जब इजराइल ने हिजबुल्लाह कमांडर हसन नसरूल्लाह पर हमला कर शहीद कर लेबनान को गाजा बनाने का साहस दिखाया, जिसे अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन माना जा रहा है। अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट ने भी कोर्ट ने फटकार लगाते हुए अनलीगल मुल्क घोषित कर दिया।
इस हमले के बाद, दुनिया में इजराइल की छवि और भी खराब हो गई। कई देशों ने इसे अमानवीय और गैरकानूनी कृत्य बताया, जबकि आम जनता में आक्रोश फैल गया। जिसमे भारत भी उबल गया,लेकिन इस सबके बीच, भारत ने एक बार फिर शांति और समझौते का संदेश दिया।
- भारत की शांति पहल: नरेंद्र मोदी की ज़बान का वजन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जो शांति और कूटनीति के जरिए समस्याओं को हल करने में विश्वास रखते हैं, ने इजराइल और ईरान के बीच के तनाव को कम करने के लिए शांति प्रस्ताव दिया था। मोदी ने नेतन्याहू से अपील की थी कि बातचीत के जरिए ही समाधान निकल सकता है, युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। लेकिन नेतन्याहू की जिद और युद्ध की राजनीति ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
नेतन्याहू ने भारत की शांति की अपील को नज़रअंदाज करते हुए ईरान को धमकी दी,और लेबनान गाजा,यमन पर हमला दिन भर करता रहा, जिसका परिणाम न केवल इजराइल के लिए बल्कि पूरे विश्व के लिए विनाशकारी साबित हुआ।
“अबे हल्का समझा था क्या मोदी जी की ज़बान को? यह भारत है जहां दुआओं की नदियां बहती हैं।”
यह वाक्य नेतन्याहू को शायद अब समझ में आ गया होगा। भारत की शांति नीति और मोदी जी की अपील को हल्के में लेना इजराइल के लिए एक बड़ी भूल साबित हुआ। अगर नेतन्याहू ने उस समय भारत के शांति प्रस्ताव को मान लिया होता, तो आज इजराइल इतनी शर्मिंदगी से न गुजरता।
शांति के लिए भारत का संदेश: गांधी की विरासत
भारत की शांति नीति महात्मा गांधी के सिद्धांतों पर आधारित है, जो अहिंसा, शांति और सहिष्णुता पर जोर देते हैं। भारत ने हमेशा विवादों का समाधान बातचीत के जरिए करने की वकालत की है, और प्रधानमंत्री मोदी ने इसी सिद्धांत पर चलते हुए इजराइल और ईरान के बीच तनाव को कम करने का प्रयास किया।
महात्मा गांधी के सिद्धांतों को मानते हुए, भारत ने दुनिया को यह संदेश दिया है कि शक्ति का वास्तविक प्रदर्शन युद्ध में नहीं, बल्कि संवाद और समझौते में होता है।
प्रधानमंत्री मोदी ने इजराइल और रूस-यूक्रेन संकट पर भी अपनी भूमिका निभाई, जिससे भारत को वैश्विक मंच पर एक महत्वपूर्ण स्थान मिला है। मोदी जी का यह कदम सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि एक नैतिक नेतृत्व का प्रतीक है, जिसमें वह पूरी दुनिया को शांति और स्थिरता की दिशा में प्रेरित कर रहे हैं।
भारत की वैश्विक भूमिका: शांति का मार्ग
भारत के इस प्रयास ने न केवल इजराइल और ईरान के बीच शांति की अपील की, बल्कि दुनिया भर के देशों को यह संदेश दिया कि भारत एक विश्वसनीय और जिम्मेदार राष्ट्र है। शांति और स्थिरता की दिशा में भारत की यह पहल न केवल अंतरराष्ट्रीय मंच पर उसकी स्थिति को मजबूत करती है, बल्कि वैश्विक शांति प्रयासों में भी भारत का महत्वपूर्ण योगदान सुनिश्चित करती है।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय के विभिन्न वर्गों ने भी भारत की इस पहल की सराहना की थी,
अंबर फाउंडेशन के चेयरमैन वफा अब्बास ने इसे “शांति का एक महत्वपूर्ण कदम” बताया और कहा, “प्रधानमंत्री मोदी का यह प्रयास न केवल भारत को वैश्विक मंच पर एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में स्थापित करता है, बल्कि यह दर्शाता है कि भारत की भूमिका शांति की दिशा में कितनी महत्वपूर्ण है।”
गांधीवादी विचारक पंडित राजनाथ शर्मा ने मोदी की इस पहल की सराहना करते हुए कहा कि भारत की शांति नीति केवल कूटनीति नहीं, बल्कि मानवता के प्रति भारत की समर्पित भावना का प्रतीक है। उनका मानना है कि भारत का यह संतुलित दृष्टिकोण ही उसे एक विश्वसनीय शांति दूत बनाता है।
शांति कुंज हरिद्वार के प्रवक्ता अखिलेश पांडे ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत ने जो पहल की है, वह न केवल भारत बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिए महत्वपूर्ण है।
इंडियन इंडस्ट्रीज चैप्टर ट्रस्ट के राजीव अग्रवाल का मानना था कि इस तरह की पहल से न केवल राजनीतिक बल्कि आर्थिक सहयोग के नए रास्ते भी खुल सकते हैं।
नेतन्याहू की जिद और इजराइल की बदनामी
नेतन्याहू की जिद और इजराइल की सैन्य कार्रवाई ने आज उसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय में अलग-थलग कर दिया है। उसके हमलों की वजह से न केवल ईरान, बल्कि दुनिया भर के देशों ने इजराइल के खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया दी है।
नेतन्याहू का यह मानना कि सैन्य शक्ति ही सब कुछ है, उसे भारी पड़ा। दुनिया में शक्ति का संतुलन अब बदल रहा है, और भारत जैसे देशों ने यह साबित कर दिया है कि कूटनीति और संवाद ही स्थिरता और शांति का असली मार्ग हैं।
ईरान पर हमले के बाद इजराइल की साख और उसकी वैश्विक प्रतिष्ठा दोनों ही बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। उसके अत्याचारों का सामना अब पूरी दुनिया कर रही है, और अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इजराइल के इस कदम को अस्वीकार कर दिया है।
शांति की जीत होगी और जुल्म की हार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शांति की पहल आज यह साबित करती है कि युद्ध और अत्याचार का कोई भविष्य नहीं है। नेतन्याहू की जिद और इजराइल की दमनकारी नीतियों के परिणामस्वरूप उसे वैश्विक बदनामी और आक्रोश का सामना करना पड़ रहा है।
भारत ने अपनी शांति नीति से यह दिखा दिया है कि शक्ति का असली रूप संवाद और समझौते में निहित है। दुनिया आज भारत की इस नीति से प्रेरणा ले रही है, और यह उम्मीद की जा रही है कि भविष्य में भी भारत इसी प्रकार विश्व शांति के लिए अग्रणी भूमिका निभाता रहेगा।
प्रधानमंत्री मोदी का यह संदेश स्पष्ट है:
“शांति के रास्ते पर चलने वाला ही सच्चा विजेता होता है।”