धंधेबाज़ों ने journalism को Jurnilisium बना दिया,माफियाओ,दुराचारियो के तलवे चाटने वाले प्रेमियों की करामात,देखिये वरिष्ठ पत्रकार नवेद शिकोह का तहलका

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नवेद शिकोह

“Jurnilisium” अंग्रेज के इस शब्द का अर्थ दुनिया की कोई डिक्शनरी नहीं बता पाएगी। मुझे इस अर्थहीन शब्द से जब नवाज़ा गया तो बहुत खुशी हुई।
सोशल मीडिया के जरिए पता चलता रहता है कि हर रोज हर घंटे कथित मीडिया संगठन और अन्य संगठन सम्मान समारोह करते हैं। अजीबो गरीब किस्म के ऐसे सम्मान समारोह को मैं सम्मान समारोह नहीं सम्मान सम्मान खेल कहता हूं। इस तमाशे के खिलाफ करीब पांच-सात साल से मुहिम छेड़े हूं। केवल इस विषय पर ही इतना लिखा है कि चार-पांच किताबें तैयार हो सकती हैं। लोग एतराज भी करते हैं कि कोई कुछ भी करे, अयोग्य लोगों को सम्मानित करे या योग्य लोगों कों.. संगठनों के नाम पर दुकान चलाए या ठेला चलाए तुमसे क्या मतलब !
मेरा जवाब होता है, क्यों नहीं मतलब। Journalism मेरा पेशा है, सवाल उठाना भी मेरा पेशा है। ये मेरी इबादत है। मेरा कर्तव्य है कि अपने पेशे के नाम पर संगठनों की अवैध दुकानों पर सवाल उठाएं।
सवाल उठाता रहा। दिलचस्प बात ये है कि जिन आयोजकों/संगठनबाजों के सम्मान-सम्मान खेल के खिलाफ में व्यंग्य करता हूं.. तल्ख सवाल करता हुं वो मुझे सबसे पहले सम्मान देने के लिए बुलाते हैं। कड़वे सच को करीब से जानने के लिए हर जगह हर रोज़ जाना संभव नहीं। पर पचास आमंत्रण पर एक दो जगह जाता हूं और वहां की ज़मीनी हक़ीकत देखता हूं। उनके ही मंच पर उनके इन तमाशों की आलोचना करता हूं। ऐसे ही एक जगह गया। सम्मान पत्र पढ़ा तो लिखा था-
Jurnilisium की सेवाओं के लिए मुझे ये सम्मान दिया गया है।
मुझे इस शब्द का अर्थ नहीं पता था। तमाम डिक्शनरी में देख डाला इसका कोई अर्थ ही नहीं था। ये शब्द ही अर्थहीन था।
ये जान बड़ी खुशी हुई कि सम्मान-सम्मान के खेलों में हमारे पेशे Journalism को नहीं लाया जाता है। यहां तो Jurnilisium जैसी सेवाओं के लिए सम्मान का खेल चलता है।
या फिर आयोजक हमसे भी बड़े व्यंग्यकार है। वो जानते है कि अब जर्नलिस्ट, जर्नलिस्ट नहीं रहा। पत्रकार, पत्तरकार हो गया है, मीडिया गोदी मीडिया हो गई तो Journalism अब jurnilisium हो गया हो !

हां, मै ग़द्दार हूं..

डर के आगे जीत है.. दाग़ अच्छे हैं.. इस तरह नकारत्मकता में सकारात्मकता ढूंढ निकाली जाती है।
लेकिन ग़द्दार ऐसा दाग़ है जिसमें आप सकारात्मकता ढूंढते रह जाओगे ! पर मैंने इसमें भी सकारात्मकता ढूंढ निकाली है। मैं अपनी गद्दारी को अपनी खूबी मानता हूं।
जो आपके लिए अच्छा हो, फायदा पंहुचाए, हमदर्दी करे, आश्रय दे, सम्मान दे उसी के सामने सवाल उठाने को आप गद्दारी कह सकते हैं। और ऐसी गद्दारी में अक्सर करता हूं।
सवाल उठाना मेरा पेशा है, फितरत भी है और अधिकार भी। गैरों, अंजानों,दुश्मनों और प्रतिद्वंद्वियों से पहले में खुद से और अपनों से सवाल पूछता हूं।और चाहता हूं कि मेरे ऊपर भी सवाल उठाए जाएं। मेरी कमियों को भी खूब इंगित किया जाए। मेरी भी खूब आलोचना हो। क्योंकि सवाल और आलोचना किसी भी शख्सियत या आयोजन में निखार पैदा करते हैं।

सम्मान-सम्मान खेल का एक वायरस फैला हुआ है। हर रोज हर जगह हर कोई हर किसी को सम्मान दे रहा है। कोई भी किसी को भी किसी तरह का भी सम्मान दे, आप से क्या मतलब, आप सवाल क्यों पूछ रहे हैं ???
इस सवाल में भी दम है और इस सवाल का भी जवाब है- कोई कुछ करे किसी से क्या मतलब। ये बात तब तक जायज है जब तक कोई कुछ पब्लिक के सामने, और पब्लिक को बुलाकर नहीं कर रहा हो। जब हम पब्लिक डोमेन पर और पब्लिक को बुलाकर सम्मान समारोह करेंगे और सुनार को लोहारी की खूबियों के लिए सम्मानित करेंगे तो पब्लिक का सवाल करना जायज़ है। हम अपनी दोस्ती निभाने के लिए, किसी को ओबलाइज करने के लिए, किसी को प्रचारित करने के लिए, अपने प्रमोशन के लिए अवार्ड बेचेंगे तो सवाल उठना लाजमी हैं। जिस पब्लिक के सामने आप ये तमाशा कर रहे हैं वो पब्लिक भी छली जा रही है, बेवकूफ समझी जा रही है। इसलिए वो सवाल उठाएगी और पूछेगी कि जिसको सम्मान दे रहे हैं उसकी सेवाओं की व्याख्या ज़रूर कीजिए।
मुझे अक्सर सम्मान के लिए बुलाया जाता हूं, ज्यादातर नहीं जाता। और यदि पचास बार में पांच बार चला भी जाता हूं तो उस आयोजक से भी ऐसे ही सख्त सवाल पूछता हूं। मेरी इस हरकत को आप गद्दारी भी कह सकते हैं।
और ये भी कह सकते हैं कि ये गद्दारी है तो ये गद्दारी अच्छी है।

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