हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शहादत के दुःखद अवसर पर एक विशेष कार्यक्रम,सुनिये ज़रूर

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इस बीच हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपनी जगह से उठे और बोले हे ईश्वर के दूत! इस महीने में सबसे अच्छा कौन सा कार्य है? उनके जवाब में पैग़म्बरे इस्लाम ने फरमाया” हराम व अवैध कार्यों से दूरी। उसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने रोना शुरू किया। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने पैग़म्बरे इस्लाम के रोने का कारण पूछा। तो उन्होंने फ़रमाया हे अली मेरे रोने कारण वह अत्याचार है जो इस महीने में तुम पर किया जायेगा। मानो मैं देख रहा हूं कि तुम नमाज़ पढ़ रहे हो और अतीत और भविष्य के समस्त लोगों में सबसे बदतरीन इंसान तुम्हारे सिर पर हमला कर रहा है और उस हमले से तुम्हारी दाढ़ी लाल हो रही है। उस वक्त हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने पूछा तो उस समय मेरा धर्म सुरक्षित रहेगा? पैग़म्बरे इस्लाम ने जवाब दिया हां उस वक्त भी तुम्हारा धर्म सुरक्षित रहेगा। उस समय हज़रत अली अलैहिस्सलाम का चेहरा ख़ुशी से खिल उठा।

19 रमज़ान सन 40 हिजरी क़मरी को मानवता ने इस प्रकार का अत्याचार देखा कि पैग़म्बरे इस्लाम की महान हस्ती के बाद सर्वेश्रेष्ठ इंसान पर किस प्रकार हमला होता है। इब्ने मुल्जिम मुरादी नामक क्रूरतम व्यक्ति ने ज़हर से बुझाई तलवार से हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पावन सिर पर किस तरह प्राणघातक हमला किया था और हज़रत अली अलैहिस्सलाम कूफ़े की मस्जिद में सुबह की नमाज़ पढ़ा रहे थे। स्वयं इब्ने मुल्जिम मुरादी कहता हैः भोर का समय था। हज़रत अली मस्जिद में दाख़िल हुए। कुछ देर तक उन्होंने नमाज़ पढ़ी और उसके बाद मस्जिद की छत पर गये और ऊंची आवाज़ में अज़ान दी। उसके बाद बहुत प्यार से मुझे नमाज़ के लिए जगाया और उसके बाद मस्जिद के मेहराब में नमाज़ पढ़ाने के लिए खड़े हुए। बहुत कठिन घड़ी थी। जैसे ही हज़रत अली ने सज्दे से सिर उठाया मैंने पूरी शक्ति से उनके सिर पर वार किया। ठीक उसी जगह मैंने वार किया जहां जंगे खंदक में अम्र बिन अब्दऊद ने वार किया था। यह वार हज़रत अली के सिर से माथे तक था और उसकी वजह से सिर फट गया और खून का फव्वारा जारी हो गया किन्तु अली ने केवल इतना कहा कि काबे के ईश्वर की क़सम मैं कामयाब व सफ़ल हो गया।समस्त इतिहासकारों का कहना व मानना है कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम उपासना के मेहराब में अपने न्याय की भेंट चढ़ गये। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने इस्लाम को सुरक्षित रखने के लिए 25 वर्षों तक मौन धारण किया और इतने वर्षों के मौन धारण के बाद उनके पास इस्लामी शासन व्यवस्था की बाग़डोर संभालने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। हज़रत अली अलैहिस्सलाम की नज़र में इस्लामी मूल्यों में न्याय सर्वोपरि था और वह उनकी सरकार का सबसे महत्वपूर्ण आधार व स्तंभ था। जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने सत्ता की बाग़डोर अपने हाथ में ली तो पहले ही दिन अपनी नीति का आधार पूरी सच्चाई के साथ इस प्रकार बयान कर दिया।“ सत्ता की बाग़डोर संभालने से मेरा उद्देश्य समाज में धर्म को ज़िन्दा करना और न्याय को स्थापित करना है। मेरी शैली पैग़म्बरे इस्लाम की शैली होगी और इस चीज़ में किसी से समझौता नहीं करूंगा।

जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने इस्लामी सरकार का गठन किया तो महान ईश्वर द्वारा निर्धारित की गयी सीमा को व्यवहारिक बनाया। पथभ्रष्ट लोगों के खिलाफ युद्ध किया और ग़रीबों एवं ज़रूरतमंदों के अधिकारों का ध्यान रखा और मज़लूमों का हक़ उन्हें दिलाया और रोजकोष का न्यायपूर्ण ढंग से वितरण करते थे। स्वयं हज़रत अली अलैहिस्सलाम फरमाते हैं” मेरी जान की क़सम सत्य के विरोधियों और गुमराह लोगों से जंग करने में संकोच से काम नहीं लूंगा। ईश्वर की सौगंध बातिल को चीर कर उसके अंदर से न्याय को निकालूंगा”

हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने किसी के साथ भी अन्याय से काम नहीं लिया और जिन लोगों ने इस्लाम के प्रचार- प्रसार में भूमिका निभाई थी जब उन लोगों ने अपने अधिकार से अधिक मांगा तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने न केवल उनकी मांग का जवाब नहीं दिया बल्कि उनके और आम लोगों में कोई अंतर व भेदभाव नहीं किया और राजकोष का वितरण सबके मध्य न्यायपूर्ण ढ़ंग से करते थे। स्वयं हज़रत अली अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं। मैं भी आप लोगों में से एक हूं मेरा फायदा तुम्हारा फायदा है और मेरा नुकसान तुम्हारा नुकसान है। मैं तुम्हें तुम्हारे पैग़म्बरे के रास्ते पर ले चल रहा हूं। मैं तुम्हारे बीच उसी क़ानून को लागू कर रहा हूं जिसका दायित्व मुझे सौंपा गया है। जान कि अगर तुममें से कोई राजकोष से कुछ ले गया है तो उसे वापस कर दे। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि न्याय में बरकत है और जिसे हक़ नहीं भा रहा है अन्याय उसके लिए और सख़्त हो जायेगा।“

विद्वान, विचारक और बुद्धिजीवी हज़रत अली अलैहिस्सलाम के सामाजिक न्याय को दो दृष्टि से अविद्तीय मानते हैं। प्रथम यह कि सामाजिक न्याय के प्रति हज़रत अली अलैहिस्सलाम का जो दृष्टिकोण था उसका आधार उनका ईमान था। दूसरे यह कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम उन चुनिन्दा लोगों में से हैं जिन्होंने अपने दृष्टिकोण को अमली जामा पहनाया। जब उनके भाई हज़रत अक़ील ने राजकोष से थोड़ा अपने हक़ से अधिक मांगा था तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उनके हाथ में लोहे का गर्म टुकड़ा रख दिया। इस प्रकार हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने हज़रत अक़ील को अपने अमल से बता दिया कि राजकोष के वितरण में सब समान हैं और यहां पर कोई अपना और पराया नहीं है।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम के एक निष्ठावान साथी अबूल असवद दोअली थे। उन्हें हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने न्यायधीश के पद पर नियुक्त किया परंतु नियुक्ति के आरंभिक दिनों में ही उन्हें उनके पद से हटा दिया। अबूल असवद दोअली बड़े क्षुब्ध मन के साथ हज़रत अली अलैहिस्सलाम की सेवा में हाज़िर हुए और कहा हे मोमिनों के सरदार! किस वजह से आप ने मुझे न्यायधीश के पद से हटा दिया? मैंने न विश्वासघात व धोखा किया है और न ही मुझ पर विश्वासघात करने का आरोप है! इस पर हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने कहा” तुम सही कह रहे हो और अपने दायित्व के निर्वाह के दौरान तुमने अमानतदारी की शर्त का पालन किया है परंतु मुझे सूचना मिली है कि जब शिकायत करने वाले और आरोपी तुम्हारे पास आते हैं तो तुम्हारी आवाज़ उनकी आवाज़ से ऊंची होती है। संभव है कि जिन लोगों के पास समस्यायें हैं वे आसानी से अपनी बात न कह सकें।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपने एक निष्ठावान साथी व अनुयाई मालिके अश्तर को एक पत्र लिखा था जो इस बात का सूचक है कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम किस प्रकार लोगों से न्याय का बर्ताव करते और चाहते थे और पूरे इतिहास में विद्वानों, विचारकों, बुद्धिजीवियों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों व संस्थाओं ने उस पर ध्यान दिया और उसकी समीक्षा की है परंतु क्या हुआ कि इस प्रकार की न्यायप्रेमी महान हस्ती को तलवारों से शहीद कर दिया गया? इब्ने मुल्जिम मुरादी नाम के क्रूरतम व्यक्ति ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम को शहीद किया परंतु उन्हें शहीद करने का लक्ष्य समाज से न्याय को ख़त्म करना था। दूसरे शब्दों में हज़रत अली अलैहिस्सलाम को जो शहीद किया गया वह ग़लत सोच का नतीजा था और वह हज़रत अली अलैहिस्सलाम के काल से विशेष नहीं है और यह सिलसिला दूसरे इमामों के काल में भी जारी रहा यहां तक कि आज भी अगर कोई व्यक्ति न्याय की अधिक बात करता है तो बहुत से लोग उसके दुश्मन हो जाते हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम को एक रूढ़िवादी तथाकथित मुसलमान ने शहीद किया। आज भी रूढ़िवादी सोच रखने वाले नामनेहाद मुसलमानों की कमी नहीं है। आज भी एसे मुसलमान मौजूद हैं जो दूसरे मुसलमानों को काफिर कहते हैं और उन्हें इस्लाम की सीमा से बाहर निकाल देते हैं।

रोचक बात यह है कि यह रूढ़िवादी व अतिवादी मुसलमान हर वह कार्य करते हैं जो इस्लाम के दुश्मन चाहते हैं और उनके क्रिया- कलापों का इस्लाम से कोई लेना-देना नहीं होता है और वे स्वयं को सच्चा मुसलमान और दूसरों को काफ़िर कहते हैं। इस आधार पर हज़रत अली अलैहिस्सलाम का हत्यारा इस प्रकार की रूढ़िवादी और अतिवादी सोच का एक प्रतिनिधि था जिसने रोज़े की हालत में और वह भी सुबह की नमाज़ पढ़ाते हुए महान ईश्वरीय दूत पर प्राणघातक हमला करता है और स्वयं को मुसलमान भी कहता व समझता था। इस प्रकार की सोच रखने वालों से हमेशा मानव समाज को ख़तरा रहा है जबकि हज़रत अली अलैहिस्सलाम की जीवन शैली और उनके न्याय का आधार बुद्धि और धर्म था।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम की पहचान के संबंध में सुन्नी धर्मगुरू इब्ने अबिल हदिद लिखता है” रूढ़िवादी व अज्ञानी सोच को समझने के लिए इस बिन्दु पर ध्यान देना ज़रूरी है कि जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम के हत्यारे उन्हें शहीद करने पर सहमत हुए तो उन्होंने इसके लिए रमज़ान महीने की 19 तारीख़ का चयन किया और कहा कि हम ईश्वर की उपासना करना चाहते हैं क्योंकि हम अच्छा कार्य करना चाहते हैं तो बेहतर यह है कि यह कार्य रमज़ान महीने की किसी अच्छी रात को अंजाम दिया जाये ताकि अधिक पुण्य प्राप्त हो सके।“

इस बात से अच्छी तरह अनुमान लगाया जा सकता है कि रूढ़िवादी और अतिवादी सोच अज्ञानता की किस सीमा पर पहुंच चुकी थी। आज दाइश जैसे खुंखार आतंकवादी गुटों को देखकर इनकी सोच का अच्छी तरह अंदाज़ा लगाया जा सकता है। आज दाइश और उस जैसी सोच रखने आतंकवादी गुटों ने इस्लामी जगत में जो उत्पात मचा रखा है वह जगज़ाहिर है। आज का दाइश समय का इब्ने मुल्जिम है जो शीया- सुन्नी मुसलमानों को काफिर कहता है और आम लोगों विशेषकर महिलाओं और अबोध बच्चों की हत्या करने में लेशमात्र भी संकोच से काम नहीं लेता।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपने पावन जीवन के अंत से लोगों को यह समझा दिया कि वह नश्वर संसार की वास्तविकता को समझें और दुनिया के भौतिक बंधनों से मुक्ति के लिए उत्तम मार्ग का चयन करें। हज़रत अली अलैहिस्सलाम एक छोटे से वाक्य में फरमाते हैं” मैं कल तुम्हारे साथ उठता- बैठता था और आज तुम्हारे लिए पाठ बन गया हूं और कल तुमसे अलग हो जाऊंगा। कल जब तुम मेरी जगह खाली देखोगे तो इस बात का आभास करोगे कि दुनिया कितनी अविश्वसनीय है।“

पैग़म्बरे इस्लाम के उत्तराधिकारी और न्याय व प्रेम की प्रतिमूर्ति हज़रत अली अलैहिस्सलाम को शहीद कर दिया गया। जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने इस नश्वर संसार से विदा ली तो महान ईश्वर के विशेष फरिश्ते हज़रत जिब्रईल ने आसमान और ज़मीन के बीच में कहा कि ईश्वर की सौगंध मार्गदर्शन का स्तंभ टूट गया और नबुव्वत के ज्ञान के तारों पर अंधेरा छा गया और परहेज़गारी का चिन्ह मिट गया और ईश्वरीय रस्सी टूट गयी।“

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