हारे राहुल,अमेठी की जनता ने किया टाटा- सहमी प्रियंका! स्मृति ने बजाया अमेठी में डंका

कार्यकर्ताओं व मतदाताओं की अनदेखी तथा चापलूसो की चौकड़ी से सपने चकनाचूर

स्मृति को मिला मोदी ,भाजपा,सत्ता, सजगता का जबरदस्त फायदा।

कृष्ण कुमार द्विवेदी(राजू भैया)

???????? अखिल कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी चुनाव हारे हैं तो वही उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा की इससे सहमी जरूर होंगी! जबकि भाजपा की स्मृति ईरानी ने चुनाव में जीत का डंका बजा दिया। अमेठी की जनता ने भाई-बहन की जोड़ी से ऐसा टा- टा किया कि गांधी परिवार इसे शायद ही कभी भुला पाए।

कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी का परंपरागत सियासी दुर्ग अमेठी ढह चुका है। आज इस किले पर भाजपा का झंडा फहरा रहा है। कहा जाता था कि रायबरेली और अमेठी में कांग्रेस की जीत पक्की है परंतु इस बार अमेठी में यह मिथक टूट गया ।राहुल चुनावी मतगणना में आगे पीछे होते हुए आखिरकार हार गए ।जबकि स्मृति ईरानी ने इस बार गजब की वापसी करते हुए राहुल गांधी से यह सीट छीन उनकी ऐसी दुर्गति की कि उसकी धमक पूरे देश में सुनाई दे रही है। यही नहीं स्मृति ईरानी ने इसके साथ ही अमेठी में प्रियंका गांधी वाड्रा को भी सहमा कर रख दिया है। सनद हो कि राहुल हो या फिर प्रियंका गांधी वाड्रा वह बचपन से अमेठी आते रहे हैं और पूरे गांधी परिवार का अमेठी से परिवारिक रिश्ता बना रहा है ।फिर क्या कारण है कि यहां स्मृति सफल हो गई और राहुल असफल? तो आइये कुछ बातें हो जाए खरी खरी।

अमेठी से राहुल कई बार सांसद बने लेकिन यह अमेठी की जनता का दुर्भाग्य था कि उसे एक बड़ा नेता तो मिला लेकिन अपना सांसद नहीं मिला! अमेठी क्षेत्र की ऐसी कई समस्याएं हैं जो कि प्रदेश स्तर तक की है अथवा जिला स्तर तक कि उनका निराकरण नहीं हो पाया! ऐसे में लोग कुढ़ कर भी राहुल गांधी को चुनाव में जितवाते रहे।

राहुल गांधी ने यहां पर स्थानीय कार्यकर्ताओं की भावनाओं को कम तरजीह दी! उन्होंने अपने नुमाइंदों की आंख कान को ही तवज्जो दी। चर्चा है कि ऐसे कई वेतन भोगी आइटमो की वजह से आज कांग्रेस इस दुर्गति का शिकार हो गई?
समझने योग्य बात यह भी है कि विधानसभा चुनाव की बात की जाए तो राहुल अपने संसदीय क्षेत्र की विधानसभाओ में भी अपने प्रत्याशियों को जिताने के लिए ढंग से प्रकट नहीं हुए। जबकि एक सांसद के तौर पर उन्हें अमेठी संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली सभी विधानसभा सीटों पर नुक्कड़ सभाओं का जाल फैला देना था ।कांग्रेस विधानसभा चुनाव हारी एवं अन्य चुनाव में भी कांग्रेस संगठन मजबूती से लड़ता नजर नहीं आया।तो यही घाव धीरे धीरे नासूर बनता चला गया। कार्यकरता केवल लकीर ही पीटता नजर आया।? यह कटु सत्य है कि राहुल गांधी चापलूसों की ऐसी चौकड़ी से घिरे रहे जो बस भैया भैया करती रही। लेकिन भैया को आगे चुनाव में दैया-2 ना करना पड़े इसकी असलियत से उन्हें अंजान रखा।

अमेठी में आना और फिर जनता को देखकर हाथ हिलाकर अभिवादन करना। धीरे-धीरे यह बात जनता को खाने लगी कि राहुल गांधी हो या प्रियंका गांधी वाड्रा। यहां आते हैं और हाथ हिलाकर कर हमसे हम से टाटा करके चले जाते हैं। आखिरकार जनता ने जो राहुल -प्रियंका ने दिया वही दोनों भाई बहनों को इस चुनाव में वापस कर दिया? अर्थात अमेठी की जनता ने दोनों को टाटा करके अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली। राहुल की हार से अमेठी के कई आम लोग भी दुखी है लेकिन उनका कहना था कि उन्हें एक बार हार का हार पहनना भी जरूरी था ।अब राहुल गांधी जी को भी कुछ समझ में आएगा और अमेठी की जनता को भी कुछ समझ में आएगा।

दूसरी ओर भाजपा प्रत्याशी स्मृति ईरानी पिछला लोकसभा चुनाव हारने के बाद अमेठी से अपने तार जोड़े रखने में जुटी रही। उन्होंने राहुल गांधी को लापता सांसद घोषित किया। ग्राम प्रधानों एवं आम भाजपा कार्यकर्ताओं से सीधे संबंध स्थापित रखे। केंद्र सरकार की योजनाओं को लेकर के अमेठी की जनता तक पहुंची। यह अलग बात है कि पूर्व की यूपीए सरकार में अमेठी में लगने वाली कई इकाइयों के चले जाने का विरोध न कर सकी। लेकिन फिर भी एक नेता की तरह जनता से जुड़ने का उन्हें काफी फायदा मिला ।भाजपा का संगठन एवं संघ की ताकत तथा प्रदेश की सत्ता की धमक खूब ढंग से काम करती नजर आई। चर्चा है कि कई ग्राम प्रधानों एवं कई बड़े नेताओं को भाजपा सत्ता के आगे नतमस्तक होना पड़ा? मोदी मैजिक अमेठी में भी चला! चुनाव के दौरान किसानों के खाते में रुपए भी वरदान बने !कई कारण थे स्मृति को अमेठी की महारानी बनाने के लिए मुख्य हथियार बन चुके थे ।यही नहीं स्मृति ईरानी ने राहुल के वायनाड से चुनाव लड़ने को मुद्दा बना दिया ।उन्होंने साफ कहा कि राहुल अमेठी से भाग रहे हैं क्योंकि उन्हें यहां हार् का डर है । शायद आज वह बात यहां सिद्धि हो गई क्योंकि जनता ने स्मृति की इस बात को दिल से ले लिया था। फिलहाल आज स्मृति ईरानी अमेठी से चुनाव जीतकर भाजपा नेतृत्व की निगाहों में महानायक बन गई है ।तो दूसरी ओर स्मृति की जीत ने राहुल गांधी को हार का हार पहनाया है। तो वहीं प्रियंका गांधी वाड्रा भी इससे सहमी है? क्योंकि प्रियंका का कांग्रेस में आगमन और उनका जमकर चुनाव प्रचार करना भले ही उत्तर प्रदेश व देश में कांग्रेस को मिलने वाले मतों में बढ़ोतरी करता दिखे पर अमेठी में उनके भाई की हार उनकी भी सियासी हार है? कुल मिलाकर अमेठी में अब कांग्रेस को मांजने की जरूरत है, चापलूस , चौकड़ीबाजो की टोलियो से कांग्रेस को आजाद करने की जरूरत है। आम जनता से सीधे जुड़ने की जरूरत है। गांव तथा कस्बों की छोटी से बड़ी समस्याओं के लिए एक नेता के रूप में लड़ने की जरूरत है ।इतना तो कांग्रेस को वापस अमेठी में लौटने के लिए करना ही पड़ेगा। जबकि दूसरी और स्मृति ईरानी के सामने भी काफी चुनौतियां हैं। जिससे उन्हें निपटना है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top