नई दिल्ली : डेंगू और चिकनगुनिया का नाम सुनते ही आदमी भयभीत बो जाता है। बारिश के बाद डेंगू व चिकुनगुनिया जैसी बीमारी काफी तेजी से फैलती है। ऐसे में इसके बारे में कई बार सही जानकारी न होने पर मरीज की जान तक जा सकती है।
लोगों को लगता है कि सिर्फ प्लेटलेट्स की कमी पूरी होने से मरीज ठीक हो जाएगा लेकिन ऐसा पूरी तरह सही नहीं और भी सावधानियां जरूरी हैं। विशेषज्ञ डाक्टरों के मुताबिक, डेंगू में सबसे महत्त्वपूर्ण उतार-चढ़ाव तरल का है। मुख्य रक्तधारा से फ्लूइड के निकल जाने के कारण ही स्थिति गंभीर होती है।
प्लेटलेट्स की कमी से होता खून का बहाव उसी आग में घी का काम करता है। डेंगू में सबसे बड़ी समस्या कैपिलरी-लीक की होती है, इसे समझिए। कैपिलरी या केशिकाएं वे नन्हीं रक्तवाहिनियां होती हैं, जिनकी दीवार इस बीमारी में अधिक छिद्रदार हो जाती है। इस कारण कोशिकाओं से खून का द्रव रिसकर शरीर में ही आसपास जमा होने लगता है। तरल प्लाज्मा की इसी कमी के कारण ब्लड प्रेशर गिरने लगता है और हिमैटोक्रिट बढ़ने लगता है।
तीन जांचें जो डेंगू के रोगी के लिए सबसे अहम हैं वे ब्लडप्रेशर, हिमैटोक्रिट और प्लेटलेट्स काउंट। केवल प्लेटलेट पर ध्यान देना काफी नहीं बल्कि कई बार बड़ा नुकसान भी हो सकता है। डेंगू की शुरुआत में होने वाले बुखार और बदन दर्द के लिए कोई दवा खुद से नहीं खानी चाहिए। पैरासिटामॉल के सिवा कोई भी अन्य दवा हानिकारक हो सकती है।
डॉक्टर से संपर्क बनाए रखना चाहिए। अमूमन प्लेटलेट्स की गिरती संख्या जब बीस हजार के नीचे हो तभी डॉक्टर प्लेटलेट्स चढ़ाने की सलाह देते हैं। अधिक स्तर होने पर प्लेटलेट्स चढ़ाना बेकार है और उसका कोई फायदा नहीं है।
इसलिए इलाज कर रहे डॉक्टर की सलाह पर चलना चाहिए। डेंगू के इलाज का अर्थ केवल और केवल प्लेटलेट्स बढ़ाकर जान बचाना नहीं है, जान तभी बचेगी जब मरीज का कैपिलरी-लीक ठीक होगा।