दंगाइयों के सियासी आकाओं का कब होगा पर्दाफाश,छोटी मछलियों की नहीं बड़े मगरमच्छों की गिरफ्तारी चाहती है हिंदुस्तान की अवाम ,उठने लगी है आवाज़

Latest Article

कृष्ण कुमार द्विवेदी(राजू भैया)

दिल्ली सामान्य स्थिति के पथ पर है! फिर भी दंगों के निशान इसे तड़पा रहे हैं। पूरा देश आहत हुआ है। ऐसे में दंगाइयों के सियासी आकाओं का पर्दाफाश देश के लिए बहुत जरूरी है ।यदि राजधानी को दंगों की आग में झोंकने वाले बड़े मगरमच्छ ना पकड़े गए तो यह देश की हार होगी! पूरे घटनाक्रम में साफ दिखा कि देश के कई नेता दंगों एवं लाशों पर अपने वोटों की खेती करते शर्मनाक ढंग से नजर आए?

देश की राजधानी दिल्ली में जिंदगी पटरी पर लौटती नजर आ रही है! बीते दिनों में दिल्ली जिस तरह से भयानक दंगों का शिकार हुई, तमाम निरीह लोग मौत का शिकार हुए, सैकड़ों लोग घायल हुए ,घरों को फूंका गया, दुकानों को जलाया गया, ऐसे कई मंजर दिल्ली ही नहीं बल्कि हर देशवासी को अंदर तक तड़पा गये।

अब तक लगभग पौने दो सौ से ज्यादा f.i.r. हो चुकी हैं। 900 से ज्यादा लोग गिरफ्तार हो चुके हैं। कई हिरासत में हैं। कांग्रेस के पूर्व पार्षद इसरत जहां गिरफ्तार हो चुके हैं। इसके अलावा आम आदमी पार्टी का पार्षद ताहिर हुसैन अभी भी फरार है। दिल्ली के नए पुलिस आयुक्त एसएन श्रीवास्तव सभी से सहयोग की अपील कर रहे हैं ।दिल्ली दंगों की जांच के लिए गठित एसआईटी ने सीसीटीवी फुटेज के जरिए अपनी जांच को आगे बढ़ाने का प्रयास शुरू कर दिया है। फिर भी कहीं ना कहीं दिल्ली इस समय के साए में है?

दिल्ली दंगों की परिणीत में जाया जाए तो दिखेगा कि इसके लिए सियासत से जुड़े नेता काफी दिनों से प्रयासरत थे? वह नेता जो मंच पर खड़े होकर देश को आगे ले जाने की बात करते हैं।वे जो सच्चे हिंदुस्तानी होने का दावा करते हैं? वह जो अपने आप को धर्मनिरपेक्ष का अलंबरदार बताते हैं? ऐसे सभी दलों के कई राजनेताओं ने इतना जहर उगला कि दिल्ली आज दंगों की आग में निरीह लोगों की लाशों पर बैठी नजर आ रही है! अभी छोटी मछलियां पकड़ में आई है? देश की जनता उन सियासी मगरमच्छों को सामने लाने की मंशा रखती है जिन्होंने इन दंगाइयों को अपने आंचल में पाला! देश को आगे ले जाने के लिए अब जरूरी हो गया है की धर्म, जात, संप्रदाय एवं दिशा विहीन राजनीति करने वाले नेताओं को अभिव्यक्ति के सही दायरे में रखा जाये? शायद यह भारत देश में ही है कि अभिव्यक्ति के नाम पर कोई भी नेता कुछ भी बोल सकता है! स्थिति यह है कि शर्मनाक बयानों पर भी ऐसे सिरफिरे नेताओं का बचाव करने के लिए देश के कई बड़े चेहरे धर्म और जाति के नाम पर सामने आ जाते हैं?

देश मे पक्ष अपनी बात कहता है और विपक्ष उसके विरुद्ध अपनी बात कहता है। सकारात्मक विरोध की बात पुरानी हो चुकी है! केवल विरोध के लिए ही विरोध दिखाई देता है! देश की पत्रकारिता पर भी सवालिया निशान हैं? कुछ सरकार के पक्ष में पत्रकारिता करते दिखाई देते हैं कुछ विपक्ष के हाथों पीत पत्रकारिता का खिलौना बने नजर आते हैं! इसमें कोई दो राय नहीं की दिल्ली की सड़कों पर जो दंगे हुए उन्हें स्पष्ट रूप से कई प्रमुख राजनीतिक दलों के बड़े सियासी नेताओं का प्रश्रय प्राप्त था? उनके खरीदे दंगाई, गुंडे, मवाली सड़कों पर रक्तपात करने में कामयाब रहे। जबकि दुख इस बात का है कि दिल्ली की पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी रही और दिल्ली जलती रही।

जहर बुझे बयानों की बात करें तो देश का कोई ऐसा दल नहीं है जो सीना तान कर यह कह सकें कि उसके आंगन से ऐसे बयान नहीं आए? जो सत्ता में है वह सत्ता बचाने के लिए परेशान है जो सत्ता से बाहर है वह सत्ता पाने के लिए परेशान है पूरा झगड़ा बस इसी बात का है?

जांच इस बात की भी होनी चाहिए कि क्या कारण है सी ए ए का विरोध करने के लिए भीड़ को स्टेशन ,सड़क तथा ऐसे स्थानों पर ही बैठाया गया जहां से आम आदमी का जनजीवन प्रभावित हो? इसकी भी जांच जरूरी है कि देश के कई कोनो में जो भी ऐसे प्रदर्शन हुए उन्हें ऐसे व्यस्त इलाकों में ही करने की क्या जरूरत थी अथवा किए गए ? साफ नजर आता है कि इसके पीछे कई सियासी चेहरे पूरी तरह सक्रिय थे/हैं। ऐसे चेहरो के गुर्गों ने दिल्ली को बीते चार-पांच दिनों में जो सौगात दी उसके घाव को दिल्ली शायद ही कभी भूल पाए।

जनता चाहती है कि ऐसे घृणित दंगाइयों के सियासी आकाओं के चेहरों को भी देश के सामने लाया जाये! यदि दंगा करने वाले कुछ लोगों की गिरफ्तारी कर भी ली गई है ? पूर्व अथवा वर्तमान पार्षद कार्यवाही के निशाने पर भी हैं तो इससे देश संतुष्ट नहीं हो सकता? जरूरत इस बात की है कि ऐसे बड़े दंगाई मगरमच्छों को भी पकड़ कर जनता के सामने लाया जाए! जिन्होंने पर्दे की आड़ में बैठकर के दिल्ली को दंगों की आग में जलाकर कहर फैला डाला?

अच्छी बात तो इन दंगों के दौरान यह भी दिखाई दी कि जहां तमाम उन्मादी भीड़ एक दूसरे की खून की प्यासी थी वही सच्चे हिंदुस्तानी कहीं मंदिर बचा रहे थे तो कहीं मस्जिद बचा रहे थे! कहीं धर्म को पीछे रखकर लोग इंसान के देवता बनकर बीमार व बूढ़े तथा दंगों में फंसे लोगों की मदद कर रहे थे। तो कहीं ऐसा भी मंज़र था कि लोग अपनों के घरों की रखवाली करते भी दिखाई दे दिए।इन दंगों ने अंकित शर्मा जैसे होनहार आई बी जवान को लील लिया ।पुलिस के शहीद रतनलाल को लील लिया। कई पुलिसकर्मी घायल हुए। लेकिन राजनीति का गंदा धंधा बंद नहीं हुआ ?विपक्ष के नेताओं का निशाना सत्ता दल था तो उससे ज्यादा पुलिस थी! स्पष्ट है कि पूरा देश यह चाहता है कि दिल्ली में दंगा कराने वाले सियासतदानों को भी कटघरे में लाया जाए !उनके चेहरे को जनता के सामने पेश किया जाए! यदि हमारे देश का कानून इस मुद्दे पर हारा तो जाहिर सी बात है यह देश की हार होगी ?क्योंकि धर्म एवं दंगों के नाम पर सियासत करने वाले नेता केवल और केवल बस अपना लक्ष्य वोटो तक ही निर्धारित करते हैं! अब यह राजनीति का खत्म होनी चाहिए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *