दलितों, मुसलमानों के लिए राजपुरुष यानी स्टेट्समैन पी एल पुनिया कांग्रेस के लिए बनेंगे संजीविनी

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पाटेश्वरी प्रसाद

छः दशक से अधिक समय तक सत्ता के केंद्र में रही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अपनी खोई हुई सियासी जमीन तलाश रही है। 2024 में होने वाले आम चुनाव से पहले कांग्रेस ने अपनी कमर कस ली है। कांग्रेस पार्टी ने एक बार फिर दलितों को साधने के लिए केंद्र और राज्य में दलित नेतृत्व को उभारा है। कभी दलित, मुसलमान और ब्राह्मण कांग्रेस के सत्ता की चाबी हुआ करती थी। लेकिन कुछ सालों में उभरे क्षेत्रीय दलो ने कांग्रेस के इस मिथक को तोड़ा है। जिसका भारी नुकसान कांग्रेस को उठाना पड़ रहा है।

पिछले कुछ सालों में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मुँह की खानी पड़ी। वहीं लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का औसत प्रदर्शन ही रहा। 2014 में बीजेपी की अप्रत्याशित बढ़त के बाद कांग्रेस का ग्राफ दिन प्रतिदिन घट रहा है। अब स्थिति यह है कि लगातार घटते जनादेश ने सियासत में उनके बढ़ते कदम को रोक दिया है। ऐसे में सत्ता में वापसी के लिए कांग्रेस नए प्रयोग कर रही है। जिसका पहला प्रयोग केंद्र और उत्तर प्रदेश में दलित नेतृत्व होगा। जिसके जरिये दलितों को एक बार फिर कांग्रेस की मुख्यधारा से जोड़ने की कवायद दलित नेतृत्व करेगा।

बताते चले कि बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ऐसा मानती रही हैं कि दलित वोटों पर उनका सबसे ज्यादा प्रभाव है। वहीं बसपा नेताओं का मानना है कि मायावती अपने काम की वजह से इस दबे-कुचले वर्ग में राजनीतिक उत्कर्ष का प्रतीक बनी हुई हैं। इसीलिए उनकी एक आवाज पर दलित गोलबंद हो जाते हैं। लेकिन समय-समय पर ये भी सवाल उठता रहा है कि क्या दलित वोटों पर सिर्फ मायावती का ही एकाधिकार है या फिर कोई और ऐसा नहीं है जिस पर दलित भरोसा कर पाएं?

बहरहाल, भाजपा ने इस मिथक को तोड़ने की कोशिश हाल में हुए विधानसभा चुनाव में की है। जिसे अंजाम तक पहुंचाने की योजना कांग्रेस ने बनाई है। जिसकी शुरुआत उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव से की है। केंद्र में दिग्गज दलित नेता मल्लिकार्जुन खरगे और उत्तर प्रदेश में बसपा कैडर के पूर्व दलित नेता बृजलाल खाबरी को इस योजना का सूत्रधार बनाया है। वहीं सूबे के ही नहीं बल्कि देश के कद्दावर दलित नेता डॉ Pl Punia को मल्लिकार्जुन खरगे ने केंद्रीय स्क्रीनिंग समिति में शामिल करके शीर्ष नेतृत्व को इस बात का भरोसा दिलाया है कि दलितों के लिए पुनिया ट्रम्प कार्ड हो सकते है।

पुनिया ने बतौर सांसद और अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते हुए दलित समाज को मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया है। ब्यूरोक्रेसी में रहते हुए बसपा प्रमुख मायावती के बेहद करीबी माने जाने वाले पी.एल पुनिया सेवानिवृत्त होते ही कांग्रेस से जुड़ गए। उनका मानना है कि मायावती बहुजन मूवमेंट को आगे बढ़ाने के बजाए खुद को बढ़ाने में ज्यादा विश्वास रखती है। डॉ अम्बेडकर के मिशन की आड़ में उन्होंने दलितों को धोखा देकर उनके मताधिकार पर उपयोग सिर्फ सत्ता हस्तांतरण के लिए किया। जबकि कांग्रेस ने हमेशा दलितों को बराबरी और समानता का अधिकार दिया है।

लगभग दो दशकों से डॉ पी. एल पुनिया सक्रिय राजनीति में है। उन्होंने बाराबंकी ही नही बल्कि उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बिखर चुकी कांग्रेस को सहेजते हुए बूथ स्तर पर मजबूत किया है। यह उन्हीं के प्रयास से संभव हो पाया है कि कांग्रेस में कोई गुटबाजी नहीं है। पदाधिकारी और कार्यकर्ता सिर्फ लक्ष्य की ओर अग्रसर होकर काम कर रहे है। डॉ पुनिया अपने सरल स्वभाव, मिलनसार व्यक्तित्व की वजह से पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच बेहद लोकप्रिय माने जाते है। पुनिया की गिनती एक विलक्षण राजनेता, योग्य प्रशासक, संविधान के ज्ञाता और श्रेष्ठ अध्येता के रूप में की जाती है। उनका कद किसी भी राजनेता से ज्यादा बड़ा है जिसे उन्होंने बार-बार साबित भी किया है।

डॉ पुनिया को इस बात का श्रेय मिलना चाहिए कि वह ऐसे समय में छत्तीसगढ़ के प्रभारी बने जब देश की राजनीति करवट ले रही थी। भाजपा का वर्चस्व बढ़ता जा रहा था और कांग्रेस-युग की समाप्ति हो रही थी। ऐसे में लगभग डेढ़ दशक तक छत्तीसगढ़ की सियासत पर काबिज़ रहे भारतीय जनता पार्टी को पुनिया की रणनीति कांग्रेस के काम आयी। और छत्तीसगढ़ में एक बार फिर कांग्रेस का परचम लहराया।

यूपीए सरकार के अंतिम दो साल राजनीतिक संकट से भरे थे। सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे थे, अर्थव्यवस्था ढलान पर उतर गई थी और सत्तारूढ़ दल नेतृत्व विहीन नजर आने लगा था। वहीं यूपीए सरकार के जाने के बाद एक ताकतवर राजनेता प्रधानमंत्री के रूप में दिल्ली आया तो राजनीति में जबर्दस्त बदलाव की लहरें उठने लगीं। ऐसे में श्री पुनिया ने अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष पद पर रहते हुए जिस संयम और धैर्य के साथ काम किया, वह कम महत्वपूर्ण नहीं है। अपने पूरे कार्यकाल में उन्होंने ऐसा कोई फैसला नहीं किया, जिससे उन्हें विवादास्पद कहा जाए। यह एक परिपक्व राजनेता का गुण है।

डॉ पुनिया हमेशा अत्यंत संतुलित, सुलझे हुए राजनेता साबित हुए है। संसदीय व्यवस्था के अनुभवों का पूरा इस्तेमाल करते हुए उन्होंने हर मौके पर वही किया, जिसकी एक राजपुरुष यानी स्टेट्समैन से अपेक्षा की जाती है। श्री पुनिया के समर्पण, संघर्ष और परिश्रम को कांग्रेस पार्टी की हाईकमान ने हमेशा तरज़ीह दी है। इस बार भी कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने उनकी क्षमता और योग्यता को विशेषता देते हुए कांग्रेस स्टीयरिंग कमेटी में बतौर सदस्य के रूप में शामिल किया है। जिसमें देशभर के सिर्फ 47 लोग ही इस समिति के सदस्य बनाए गए है। इस समिति में पूर्व पीएम मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी, राहुल गांधी एवं पी. एल पुनिया सहित पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता समिति के सदस्य के रूप में शामिल हैं।

डॉ पुनिया का राजनीतिक अनुभव जरूर कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के काम आएगा। जो साबित करेगा कि आने वाले समय मे कांग्रेस का होगा। डॉ पुनिया बूथ मैनेजमेंट करके अपनी नेतृत्‍व क्षमता, राजनीतिक कौशल और एक बेहद कुशल संगठन शिल्‍पी होने का परिचय देते हुए लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस के लिए संजीवनी साबित होंगे। बहरहाल, इस समय भी सत्ता पक्ष के पास कांग्रेस की चुनावी रणनीतियों का कोई तोड़ नहीं है।

पुनिया जी को इस विशेष उपलब्धि के लिए बधाई। बाराबंकी से उनका आत्मीय लगाव और उनकी समर्पित कार्यशैली को लोगों ने काफी सराहा है।

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