अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी एसोसिएशन के दोबारा अध्यक्ष बने बाराबंकी के डीएमओ बालेंदु द्विवेदी

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तहलका टुडे टीम

लखनऊ। उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी एसोसिएशन के द्विवार्षिक अधिवेशन में सोमवार को बाराबंकी के जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी बालेंदु द्विवेदी को दोबारा अध्यक्ष पद पर मनोनीत किया गया। इस मौके पर विभाग के अनुषंगी संगठनों के पुर्नगठन करने, सीधी भर्ती के संवर्ग के अधिकारियों

के स्थाईकरण, सहयक सर्वे वक्फ आयुक्त को मजिस्ट्रेट के अधिकार दिलाने, समय से एसीपी कराई जाय और वेतन विसंगति के संबंध में मुख्य सचिव से मिलकर पक्ष रखने पर सहमति बनाई गई। अधिवेशन में बस्ती के उप निदेशक विजय कुमार यादव को उपाध्यक्ष, सीतापुर डीएमओ कृष्ण मुरारी को महामंत्री बनाया गया। संवाद

बलरामपुर डीएमओ पवन कुमार सिंह को कोषाध्यक्ष, रायबरेली के डीएमओ सुनीता देवी और ललितपुर डीएमओ दिलीप कुमार को संगठन का सदस्य मनोनीत किया गया। इसके लावा शेषनाथ पांडेय, आरपी सिंह, सोन कुमार, एसपी तिवारी और प्रियंका अवस्थी को संरक्षक मंडल का सदस्य बनाया गया है।

कौन है बालेंदु द्विवेदी?

बालेंदु द्विवेदी का नाम हिंदी साहित्याकाश में नए उपन्यासकारों में एक अत्यंत उदीयमान और प्रतिभावान साहित्य के रूप में लिया जाने लगा है.बालेन्दु द्विवेदी का जन्म मूलत: उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जनपद के ब्रह्मपुर नामक गाँव में हुआ तथा उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा उनके अपने ही गाँव के मारुति नंदन प्राथमिक विद्यालय तथा लल्लन द्विवेदी इंटर कालेज में हुई।उन्होंने इंटरमीडिएट की पढ़ाई (1989-1991)चौरी चौरा के ऐतिहासिक स्थल स्थित गंगा प्रसाद स्मारक इंटर कालेज से की और आगे की पढ़ाई इलाहाबाद विश्वविद्यालय में स्नातक (1991-1994)और परास्नातक (1994-1996) से की.वर्त्तमान में बालेन्दु द्विवेदी ज़िला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी, बाराबंकी में तैनात हैं।और अब फिलहाल लखनऊ में रहते हैं।

बालेन्दु मारीशस में आयोजित होने वाले 11वें विश्व हिंदी सम्मेलन में न केवल प्रतिभाग कर बल्कि विदेश मंत्रालय द्वारा उन्हें वैदिक संस्कृति बनाम बौद्ध संस्कृति पर अपना आलेख प्रस्तुत करने हेतु आमंत्रित किया गया था।यह आयोजन 17 अगस्त 2018 से 20 अगस्त 2018 के बीच हुआ था।

बालेन्दु अपने अतीत के बारे में बताते हुए कहते हैं कि वे निरंतर अपने जीवन की नकारात्मक परिस्थितियों से जूझते रहे,संघर्ष करते रहे।लेकिन उनके लिए यह
संघर्ष भी संजीवनी की ही तरह था-उनके जीवन के अनुभवों को परिपक्वता शायद इन्हीं संघर्षों से मिली और शायद इन जीवन-संघर्षों ने उन्हें लेखन की ओर
उन्मुख भी किया।

आज वाणी प्रकाशन से प्रकाशित उनके प्रथम उपन्यास ‘मदारीपुर जंक्शन’(2017) की हिंदी साहित्य में जो धूम है,उनकी नींव पड़ी इलाहाबाद में और वह परवान चढ़ा जनपद बहराइच में उनकी तैनाती के समय। उन्हें यह उपन्यास पूरा करने में लगभग साढ़े तीन साल लगे।

अपने प्रकाशन के समय ‘मदारीपुर जंक्शन’ लखनऊ में प्रख्यात कवि और समीक्षक अशोक चक्रधर के हाथों यह विमोचित हुआ (4 December 2017)और फिर देश के विभिन्न शहरों में भी इसका विमोचन का चलन शुरू हुआ.इंदौर में लिटरेचर फेस्टिवल के दौरान इसका विमोचन झाँसी में बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सुरेंद्र दूबे ने.प्रभा खेतान फाउंडेशन द्वारा बालेंदु को ‘कलम ईस्ट’ कार्यक्रम में भुवनेश्वर में बतौर लेखक आमंत्रित किया गया और वहां मौजूद पाठकों ने इनके उपन्यास की भरपूर सराहना की.

उपन्यास की अपनी लोकप्रियता का आलम यह था कि अपने प्रकाशन के एक माह के भीतर ही प्रथम संस्करण की सारी प्रतियाँ बिक गईं.यह प्रकाशन जगत और हिंदी उपन्यास जगत का एक नया रिकार्ड था।जनवरी,२०१८ में विश्व पुस्तक मेले में वाणी प्राशन ने इसका दूसरा संस्करण निकाला और मेले में यह सर्वाधिक चर्चित पुस्तकों में से रही.पुस्तक मेले में ही इलाहाबाद की संस्था ‘दि थर्ड बेल’ के रंग निर्देशकआलोक नायर ने इसके नुक्कड़ नाटक के मंचन का बीड़ा उठाया और फिर बाद में उन्होंने इलाहाबाद के उत्तर मध्य सांस्कृतिक केंद्र और लखनऊ के बाबू बनारसी दास यूनिवर्सिटी के डाक्टर अखिलेश दास आडिटोरियम में इसका भव्य मंचन किया.कई दूसरी भाषाओं मसलन उड़िया की मुक्ति आदि नाट्य संस्थाओं ने भी इसके मंचन में रुचि दिखाई और इस पर काम शुरू किया। मदारीपुर जंक्शन की समीक्षाएं देश की कई बड़ी पत्रिकाओं में छपीं.प्रसिद्द रंगकर्मी देवेंद्र राज अंकुर ने इंडिया टुडे में इसकी विस्तृत समीक्षा लिखी और लोकप्रिय नवीतकार ओम निश्छल ने आउटलुक में इस पर अपना लेख लिखा.शायद ही कोई ऐसा प्रमुख दैनिक पत्र हो जिसमे मदारीपुर जंक्शन की समीक्षा न छपी हो.शीघ्र अवधि में अपनी लोकप्रियता और पाठक वर्ग के विस्तार के चलते मदारीपुर जंक्शन केवल हिंदी भाषा तक ही सीमित नहीं रही,बल्कि इसके अंग्रेज़ी,उर्दू और उड़िया आदि विविध भाषाओं में अनुवाद का कार्य आरंभ हुआ और फ़्रांस की सबसे बड़ी प्रकाशन कंपनी ने ही इसके प्रकाशन में अपनी रुचि दिखाई।

बालेंदु द्विवेदी को उनके सामाजिक-साहित्यिक क्षेत्र में इस योगदान के लिए लखनऊ की डाक्टर खुर्शीद जहां फाउंडेशन ने उन्हें सर सय्यद अहमद खान के
वार्षिक पुरस्कार से सम्मानित किया.बालेन्दु वर्तमान में अपने नए उपन्यास ‘वाया फुरसतगंज’ हैं,जो इलाहबाद की पृष्ठभूमि पर केंद्रित
है.इसके अलावा वे एक नाटक, आचार्य रामचंद्र शुक्ल पर एक समीक्षात्मक कृति तथा भाषा विज्ञान के वैज्ञानिक विवेचन संबंधी पुस्तक की भी रचना में लगे हैं।

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