लंदन । श्वेत व अश्वेत महिलाओं और पुरुषों के मुकाबले एशियाई महिलाओं में डिमेंशिया (भूलने की बीमारी) होने का खतरा कम होता है। 25 लाख लोगों पर हुए अध्ययन के बाद विशेषज्ञों ने यह दावा किया है। इस अध्ययन में कहा गया है कि अश्वेत लोगों में डिमेंशिया होने का खतरा दुनिया की अन्य संस्कृति से जुड़े लोगों के मुकाबले कम होता है। यूनीवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन के विशेषज्ञ 8 साल तक चले अध्ययन के बाद इस नतीजे पर पहुंचे हैं।
अध्ययन से जुड़े विशेषज्ञों का दावा है कि इसके लिए जीन्स और पर्यावरण दोनों कारण जिम्मेदार हो सकते हैं। अध्ययन के दौरान विशेषज्ञों ने देखा कि डिमेंशिया होने की आशंका एशियाई महिलाओं में 18 और पुरुषों में 12 फीसदी कम थी। शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन के दौरान दावा किया कि अश्वेत महिलाओं व पुरुषों में श्वेत महिलाओं व पुरुषों के मुकाबले डिमेंशिया की मानसिक बीमारी होने की आशंका अधिक होती है।
अश्वेत पुरुषों को इस मानसिक बीमारी का खतरा 28 फीसदी जबकि महिलाओं को 25 फीसदी अधिक था। जातीय पृष्ठभूमि के आधार पर किया गया यह पहला अध्ययन है। शोधकर्ताओं की टीम की अगुवाई करने वाली डॉक्टर क्लॉडिया कूपर ने बताया कि जिन 25,11,681 लोगों को अध्ययन में शामिल किया गया उनमें से 66000 को डिमेंशिया था। यह अध्ययन क्लीनिकल एपिडेमियोलॉजी में प्रकाशित हो चुका है।
विभिन्न जातीय समूहों के नतीजों की तुलना विशेषज्ञों ने अपने पूर्व में जताए गए अनुमानों से भी की। हालांकि उन्होंने कहा कि डिमेंशिया में लक्षणों की पहचान श्वेत के मुकाबले अश्वेत लोगों में होने की संभवना न के बराबर होती है। शोध के लेखक ट्रा मी फैम का कहना है कि अश्वेत लोगों में डिमेंशिया होने की आशंका अधिक होती है, मगर उनमें इसकी पहचान करना मुश्किल होने से स्थिति चिंताजनक है।
डॉक्टर कूपर का कहना है कि अश्वेत लोगों में हाई ब्लड प्रेशर के इलाज की संभावना भी कम होती है, जो डिमेंशिया का अहम कारण माना जाता है। विशेषज्ञ इस बात को लेकर अधिक चिंतित हैं कि किसी खास जातीय समूह में यह बीमारी होने की आशंका ज्यादा क्यों है। डिमेंशिया कोई एक बीमारी नहीं कई तरह के मासिक विकारों का समूह है। हालांकि इसके लिए शौक्षिक, वित्तीय, धूम्रपान, व्यायाम और मानसिक स्वास्थ्य जैसे कारणों को भी जिम्मेदार ठहराया जाता है।