अखिलेश का चुनाव से पहले जिन्ना के जिन्न से मोहब्बत का खामियाजा अब भुगतेंगे बेचारे इंडिया के मुसलमान?

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पाकिस्तानियो की संपात्ति पर अब सरकार की टेढ़ी नज़र,इन
शत्रु संपत्तियों पर कब्ज़ा किये और 100 रुपये के स्टाम्प पेपर पर बेच रहे भु माफियाओ की भी अब नही खैर, होगी एफआइआर,तहसील के ज़रिये जब से कब्ज़ा किये है तब से होगी रिकवरी,सरकार ऐसी सम्पतियों को करेंगी अब नीलाम,

तहलका टुडे टीम

दिल्ली-राजा महमूदाबाद के एक बेटे है अली जो अपने आपको पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का मुशीर भी बताते है,शायद उनके मशविरे पर बोतल में बंद जिन्ना के जिन को अखिलेश ने चुनाव से पहले निकालकर भारत के मुसलमानों के लिए अपनी ही ज़मीनों को बचाने की जद्दो जेहद के लिए मुसीबत खड़ी कर दी,भाजपा की केंद्र सरकार ने उन शत्रु संपत्तियों के निपटान के लिए एक हाई लेवल कमिटी का पुनर्गगठन किया है जो पाकिस्तान और चीन की नागरिकता लेने वाले लोगों द्वारा छोड़ी गई है ज़मीनों को नीलाम कर भारत के खजाने को भरेंगी।

गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट बताती है कि यह कमिटी 12,600 से अधिक अचल संपत्ति का निपटान करेगी जिससे सरकारी खजाने को एक लाख करोड़ रुपये तक मिल सकता है। वही इन ज़मीनों पर कब्ज़ा किये और 100 रुपये के स्टाम्प पेपर पर बेच रहे भु माफियाओ की भी अब नही खैर, होगी एफआइआर,तहसील के ज़रिये रिकवरी,और ऐसी सम्पतियों को नीलाम कर खत्म कर देंगी हमेशा के लिए ये कलंक। ये एक्शन का रिएक्शन का नतीजा उस वक़्त से शुरू हुआ था पूर्व

गृह मंत्रालय के नोटिफिकेशन के मुताबिक एक एडिशनल सेक्रेटरी रैंक का अधिकारी कमिटी का अध्यक्ष होगा जबकि एक मेंबर सेक्रेटरी के साथ पांच अन्य विभागों के सदस्य होंगे। इस कदम को सरकार द्वारा विभाजन के दौरान और 1962 युद्ध के बाद भारत छोड़ने वाले लोगों द्वारा छोड़ी गई संपत्ति के मुद्रीकरण की एक नई कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।

न्यूज एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट मुताबिक 12,485 संपत्ति पाकिस्तानी नागरिकता लेने वालों की है और 126 चीन की नागरिकता लेने वालों की। सबसे अधिक 6255 दुश्मन संपत्ति उत्तर प्रदेश में हैं। इसके बाद पश्चिम बंगाल में 4088, दिल्ली में 658, गोवा में 295, महाराष्ट्र में 207, तेलंगाना में 158, गुजरात में 151, त्रिपुरा में 105 और बिहार में 94 दुश्मन संपत्ति हैं।

अब तक 2700 करोड़ रुपये की चल संपत्तियों का निपटारा किया जा चुका हैं और इन पैसों को भारत सरकार के फंड में जमा किया जा चुका है। हालांकि अभी तक कोई भी अचल संपत्ति नहीं बेची गई है।

हमने जिन्ना को छोड़ा, मुस्लिम लीग को छोड़ा, महात्मा गांधी की धर्मनिरपेक्ष आवाज पर भारत को अपनाया कि ये हमारी साझी विरासत है. क्या पाकिस्तान पर भारत को तरजीह देना हमारा गुनाह था, जो आज विभाजन के 65 साल बाद हमें उसकी सजा दी जा रही है?’ सरकार द्वारा जनवरी में शत्रु संपत्ति संशोधन अध्यादेश लाने पर ‘तहलका टुडे ’ से बातचीत में राज्यसभा के पूर्व सांसद मोहम्मद अदीब ने ये बात कही थी.

शत्रु संपत्ति अधिनियम भारत सरकार द्वारा 1968 में लाया गया था. इस कानून के तहत वे लोग जिन्होंने भारत विभाजन के समय या 1962, 1965 और 1971 युद्ध के बाद चीन या पाकिस्तान पलायन करके वहां की नागरिकता ले ली थी, उन्हें ‘शत्रु नागरिक’ और उनकी संपत्ति को ‘शत्रु संपत्ति’ की श्रेणी में रखा गया. सरकार को यह अधिकार मिला कि वह ऐसी संपत्तियों के लिए अभिरक्षक या संरक्षक (कस्टोडियन) नियुक्त करे.

महमूदाबाद के तत्कालीन राजा मोहम्मद आमिर अहमद खान भी 1957 में पाकिस्तान पलायन कर गए थे. लेकिन उनके परिवार के अन्य सदस्य भारत में ही बने रहे. शत्रु संपत्ति अधिनियम के तहत इस प्रकार उनकी संपत्ति भी भारत सरकार ने अपने कब्जे में ले ली थी. पिता की इसी संपत्ति पर उत्तराधिकार पाने के लिए उनके बेटे मोहम्मद आमिर मोहम्मद खान ने 32 वर्ष कानूनी लड़ाई लड़ी. 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने उनके हक में फैसला सुनाते हुए उनके पिता की हजारों करोड़ की संपत्ति उन्हें वापस लौटाने का आदेश दिया. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया था कि जो भारतीय नागरिक है उसे उसकी विरासत से दूर नहीं किया जा सकता.

क्या है शत्रु संपत्ति अधिनियम?

शत्रु संपत्ति अधिनियम भारत सरकार द्वारा 1968 में लाया गया था. यह कानून सरकार को शक्ति प्रदान करता है कि वह भारत विभाजन के समय या 1962, 1965 और 1971 युद्ध के बाद चीन या पाकिस्तान पलायन करके वहां की नागरिकता लेने वाले लोगों की संपत्ति जब्त कर ले और ऐसी संपत्ति के लिए अभिरक्षक या संरक्षक (कस्टोडियन) नियुक्त करे. ऐसी संपत्ति ‘शत्रु संपत्ति’ कहलाती है और ऐसे नागरिक ‘शत्रु नागरिक’.

इसके बाद मुंबई स्थित भारत के शत्रु संपत्ति संरक्षक (सीईपी) के कब्जे में संरक्षित कई अन्य और संपत्तियों पर उनके वारिसों ने दावे किए. पाकिस्तान जाकर बस गए लोगों के परिजन जिन्होंने भारत में ही रहना चुना, सरकार के अधीन अपने पूर्वजों की संपत्ति सरकार से वापस पाने के लिए अदालतों का रुख करने लगे.

पाकिस्तान में बसे लोग या उनके उत्तराधिकारी इन संपत्तियों का हस्तांतरण नहीं कर सकेंगे. सीईपी सभी जिलों में सहायक संरक्षक (जिलाधिकारी) के सहयोग से इन संपत्तियों का संरक्षण करता है.

राजयसभा के पूर्व सदस्य मोहम्मद अदीब कहते है यह कानून लाकर केंद्र सरकार मुसलमानों की रीढ़ तोड़ना चाहती है. संपत्ति मुसलमानों की रीढ़ है. वह अपने बांटने के एजेंडे के तहत काम करते हुए मुसलमानों के खिलाफ माहौल तैयार कर रही है’

मोहम्मद अदीब कहते हैं, ‘एक परिवार है. उसके एक आदमी ने पाकिस्तान जाने का फैसला किया लेकिन बाकियों ने नेहरू और गांधी की आवाज पर कहा कि हम नहीं जाएंगे. अब आप दशकों बाद उनसे उनकी संपत्ति छीन रहे हैं. क्या यह भारत न छोड़ने की सजा है? आप तो यह संदेश दे रहे हैं कि मुस्लिमों को भारत छोड़ देना चाहिए था. उस समय कोई और समुदाय होता तो उस देश का चुनाव करता जो उनके धर्म और संस्कृति के नाम पर बना था. हमने अपने मजहब के मुल्क को छोड़कर धर्मनिरपेक्ष मुल्क का चुनाव किया. क्या यही उसका इनाम है?’

अखिल भारतीय मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत (एआईएमएमएम) के राष्ट्रीय अध्यक्ष नावेद हमीद इस विधेयक को सांप्रदायिक करार देते हैं. वे कहते हैं, ‘सुप्रीम कोर्ट ने शत्रु संपत्ति को लेकर स्थिति पहले ही स्पष्ट कर दी है. उसके बाद भी सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अपमान कर अध्यादेश के रास्ते ऐसा विधेयक क्यों लाई? क्योंकि उसका मकसद मुसलमानों की रीढ़ तोड़ना है. संपत्ति मुसलमानों की रीढ़ है. वह अपने बांटने के एजेंडे के तहत काम करते हुए मुसलमानों के खिलाफ माहौल तैयार कर रही है. राम मंदिर की बात करो या जामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे को खत्म करने की, उसकी नीति सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने वाली ही रही है. यह विधेयक भी सांप्रदायिक है. सरकार की विचारधारा इसमें साफ दिख रही है. आप समाज के एक तबके को देश के दुश्मन के रूप में घोषित करने का प्रयास कर रहे हैं.’

हालांकि शत्रु संपत्ति अपने अधीन रखने की यह कोशिश केवल वर्तमान की भाजता नीत राजग सरकार ने ही की हो ऐसा भी नहीं है. ऐसा ही प्रयास कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार भी कर चुकी है. जिस तरह वर्तमान सरकार पहले अध्यादेश लाई, फिर विधेयक के रूप में उसे लोकसभा से पास करा लिया. उसी तरह वह भी लगभग समान प्रावधान वाला एक अध्यादेश 2010 में लेकर आई थी. डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार अध्यादेश को कानून में पारित कराने का मन भी बना चुकी थी. लेकिन पार्टी ही इसे लेकर दो फाड़ हो गई. सभी मुस्लिम सांसद इसके विरोध में लामबंद हो गए. उनका तर्क था कि इससे सिर्फ मुसलमान प्रभावित होंगे, क्योंकि शत्रु संपत्ति पर उनका ही हक है. सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव और राजद के मुखिया लालू प्रसाद यादव ने भी इसे मुस्लिम विरोधी करार दिया. चौतरफा दबाव के आगे सरकार झुक गई और अपने कदम वापस खींच लिए. इसके बाद मुस्लिम सांसदों के दबाव में अध्यादेश में कुछ और संशोधन करके इसे संसद की स्थायी समिति के सामने विधेयक के रूप में पेश किया गया. जो संशोधन किए गए, वे शत्रु संपत्ति के वारिसों के लिए उनकी संपत्ति पाने के द्वार खोलने वाले थे. हालांकि स्थायी समिति ने इसे भी खारिज कर दिया.

क्या है भोपाल के नवाब की संपत्ति का विवाद?

हमीदुल्ला खान भोपाल के आखिरी नवाब थे. उनकी दो बेटियां थीं, आबिदा सुल्तान और साजिदा सुल्तान. नवाब का कोई बेटा नहीं था. रियासतों की उत्तराधिकारी चुनने की नीति के अनुसार बड़ी संतान को पिता की संपत्ति पर उत्तराधिकार मिलता था. इस लिहाज से आबिदा सुल्तान नवाब की उत्तराधिकारी थीं. आबिदा 1950 में पाकिस्तान जाकर बस गईं. लेकिन नवाब और उनका बाकी परिवार भारत में ही रहा. 1960 में नवाब का निधन हो गया. चूंकि बड़ी बेटी आबिदा पाकिस्तान जा चुकी थीं, इसलिए छोटी बेटी साजिदा नवाब की वारिस बन गईं. वर्ष 1961 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने साजिदा को भोपाल का राज्याधिकारी नियुक्त कर दिया, जिससे नवाब की जायदाद की वारिस साजिदा बन गईं. साजिदा सुल्तान मंसूर अली खान पटौदी की मां, शर्मिला टैगोर की सास और सैफ अली खान, सोहा अली खान और सबा अली खान की दादी थीं. 1968 में सरकार द्वारा शत्रु संपत्ति अधिनियम लाया गया, जो भूतलक्षी प्रभावों के साथ लागू हुआ. कानून के 47 साल बाद पिछले वर्ष सीईपी ने नवाब की संपत्ति को शत्रु संपत्ति घोषित किया था. जिसके बाद भोपाल के नवाब की संपत्ति को लेकर बवाल खड़ा हुआ था. वर्तमान में इस मामले पर मध्य प्रदेश के जबलपुर हाई कोर्ट में सुनवाई चल रही है. भोपाल के नवाब द्वारा और साजिदा सुल्तान के द्वारा उनकी संपत्ति कई लोगों को बेची गई थी. उन लोगों द्वारा वह दूसरे लोगों को बेची गई, जिसके कारण आज नवाब की संपत्ति का मालिकाना हक कई बार बदल चुका है. वर्तमान में जिनका उन पर मालिकाना हक है वे खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं. अगर हालिया विधेयक के बाद उनकी संपत्ति को शत्रु संपत्ति मानकर सीईपी अपने अधिकार में लेती है तो भोपाल में लाखों की संख्या में ऐसी आबादी के प्रभावित होने की संभावना है जो नवाब से खरीदी संपत्ति पर दशकों से रह रही है. इसमें कई आवासीय परिसर, व्यावसायिक प्रतिष्ठान, होटल और नगर निगम की जमीन भी शामिल है.

मोहम्मद अदीब बताते हैं, ‘यह पूरा विवाद राजा महमूदाबाद की संपत्ति के इर्द-गिर्द घूमता है. लखनऊ में कपूर होटल, बटलर पैलेस, आधा हजरतगंज उनका ही है. सीतापुर, लखनऊ, लखीमपुर खीरी में सरकारी अधिकारियों की जितनी कोठियां हैं, वे सब इनकी ही रियासत की हैं. हलवासिया मार्केट और कपूर होटल पर किरायेदारों का कब्जा है. कस्टोडियन ने उनको ये जगहें सामान्य से किराये पर दे रखी हैं. सुप्रीम कोर्ट के फैसले से इनके ऊपर बेदखली की तलवार लटक रही थी. इन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती दी और इनके वकील थे पी. चिदंबरम. इसलिए जब चिदंबरम कांग्रेस के कार्यकाल में केंद्रीय गृह मंत्री बने तो अपने पुराने मुवक्किल को फायदा पहुंचाने वाला अध्यादेश ले आए. हमने तब इसका विरोध किया था. अब आज भी वही हो रहा है. चिदंबरम के बाद वह केस अरुण जेटली और राम जेठमलानी लड़ने लगे. अब अरुण जेटली की पार्टी की सरकार आई तो उन्होंने भी वही कहानी वापस दोहरा दी.’ विधेयक के कानून में तब्दील होने के बाद सिर्फ राजा महमूदाबाद की ही नहीं, देश भर में चिहि्नत ऐसी 16,000 संपत्तियों का मालिकाना हक सरकार के पास होगा, जिनमें मुंबई स्थित मोहम्मद अली जिन्ना का बंगला और भोपाल के नवाब की संपत्ति भी शामिल हैं. ये दोनों मामले भी अदालत में विचाराधीन हैं.

दिल्ली के बल्लीमारान में स्थित मुस्लिम मुसाफिरखाना. 26 साल की कानूनी लड़ाई के बाद इसके मुतवल्ली (ट्रस्टी) डॉक्टर मौलाना मोहम्मद फारूक वस्फी यह साबित करने में सफल हुए कि यह शत्रु संपत्ति नहीं है. जमीर अहमद जुमलाना ने भी 13 साल संघर्ष किया. इस कानून के खिलाफ लड़े और जीते. ऐसे ही अनेक उदाहरण हैं जहां कस्टोडियन ने मनमर्जी से भारतीय नागरिकों को भी नोटिस थमा दिया कि उनकी संपत्ति शत्रु संपत्ति है. पर जब नोटिस को अदालत में चुनौती दी गई तो कस्टोडियन को मुंह की खानी पड़ी. शत्रु संपत्ति मामलों के विशेषज्ञ सुप्रीम कोर्ट के वकील नीरज गुप्ता बताते हैं, ‘अनेक मामलों में लोग अपनी संपत्ति कस्टोडियन के फंदे से छुड़ाने में सफल रहे हैं. शत्रु संपत्ति के मामलों में अदालतों ने हमेशा कस्टोडियन की आलोचना ही की है. उसकी कार्यशैली पर गंभीर प्रश्न उठाए हैं.’ जमीर अहमद जुमलाना बताते हैं, ‘1995 में मेरी बहन की संपत्ति पर कस्टोडियन ने नजर गड़ाई थी. हमने वो संपत्ति आसिफा खातून नाम की महिला से 1990 में खरीदी थी. 1995 में नोटिस आया कि आसिफा खातून पाकिस्तानी नागरिक हैं. लेकिन आसिफा कभी पाकिस्तान गई ही नहीं थीं, वे भारतीय नागरिक थीं. उनके पास भारतीय वोटर कार्ड, राशन कार्ड और पासपोर्ट तक मौजूद थे. हमने सारे सबूत पेश किए लेकिन कस्टोडियन तब भी मानने को तैयार नहीं था. 13 साल हमारा संघर्ष चला और हम साबित करने में सफल हुए कि कस्टोडियन गलत है.’ इसके अलावा कस्टोडियन पर भ्रष्टाचार के भी आरोप लगते रहे हैं. मुंबई के एक मामले का जिक्र करें तो वहां कस्टोडियन ने करोड़ों की शत्रु संपत्ति का सौदा नियमों को ताक पर रखकर कुछ लाख में कर दिया. जुमलाना कहते हैं, ‘शत्रु संपत्ति की लिस्ट में संपत्तियों के नाम जोड़ने-घटाने का भी खेल चलता है. जो समृद्ध हैं वे अपनी संपत्ति का नाम हटवाने में सफल हो जाते हैं. वहीं किरायेदार-मालिक के विवाद में किरायेदार कस्टोडियन से साठ-गांठ कर मालिक की संपत्ति को शत्रु संपत्ति का नोटिस भिजवा देता है. ताकि मालिक का कस्टोडियन से विवाद चलता रहे और वह बिना किराया दिए संपत्ति पर कब्जा जमाए रखे.’

डॉक्टर वस्फी बताते हैं, ‘मेरा किरायेदार से विवाद था. वह न तो किराया बढ़ाना चाहता था और न खाली करना. जब हमने दबाव बनाया तो उसने कस्टोडियन से शिकायत कर दी कि मुस्लिम मुसाफिरखाना शत्रु संपत्ति है. कस्टोडियन ने हमें नोटिस थमा दिया. हम 26 साल तक यह साबित करते रहे कि इसके पुराने मालिक भारतीय नागरिक थे और वह किरायेदार अपना कब्जा जमाए रखा. टोकने पर कहता कि आप तो इसके मालिक ही नहीं हो, कस्टोडियन मालिक है, आप नहीं निकाल सकते.’

दिल्ली के सदर बाजार, बल्लीमारान, दरियागंज जैसे इलाकों में कुछ माह पहले कई लोगों को कस्टोडियन ने शत्रु संपत्ति का नोटिस दिया है. अकेले सदर बाजार में ही 200-300 दुकानों को नोटिस थमाए गए हैं. जब ‘तहलका’ ने इन लोगों से बात की तो कोई भी मीडिया के सामने आने को तैयार नहीं था. अपना नाम या फोटो छपवाने से लोग कतरा रहे थे. लोगों को डर था कि अगर एक बार मीडिया में नाम आ गया तो वे कस्टोडियन की निगाह में चढ़ जाएंगे और मामले में उसके साथ किसी भी प्रकार के समझौते की संभावना नहीं रह जाएगी. इससे जुमलाना के इस कथन की पुष्टि हो जाती है कि कस्टोडियन में शत्रु संपत्ति के नाम जोड़ने व घटाने का खेल चलता है. जुमलाना कहते हैं, ‘कोई आदमी इतनी बड़ी प्रॉपर्टी पर क्यों नुकसान का जोखिम लेगा! अपने लिए क्यों टेबल के नीचे से मामला निपटाने की संभावनाएं खत्म करेगा!’

इसके बाद यह प्रश्न उठना लाजिमी है कि मनमर्जी से भारतीयों की संपत्ति को भी शत्रु संपत्ति बताने वाले कस्टोडियन को कानून के माध्यम से ऐसे अधिकार देना, जिससे उसका उन संपत्तियों पर मालिकाना हक स्थापित हो जाए और वह उन्हें बेचने का हकदार हो, साथ ही उसके फैसले के खिलाफ सिविल अदालत में जाने का भी विकल्प न हो, क्या उसे निरंकुश नहीं बना देगा! ऐसे में जुमलाना और डॉ. वस्फी जैसे न जाने कितने लोग अपनी संपत्तियों से हाथ धो बैठेंगे.

डॉ. वस्फी की अभी और भी कई संपत्तियों पर विवाद है. लेकिन एक संपत्ति के लिए इतनी लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद न तो उनमें हिम्मत बची है और न ही इतना पैसा कि अब आगे और लड़ सकें. उम्र भी जवाब दे गई है. नीरज गुप्ता कहते हैं, ‘नए कानून के बाद बड़ी संख्या में ऐसे लोग भी प्रभावित होंगे जिनकी संपत्ति को बिना किसी ठोस आधार के कस्टोडियन शत्रु संपत्ति घोषित कर देता है

वैसे इसके पीछे कारण यह माना जा रहा है कि राजा महमूदाबाद की अरबों की संपत्ति पर सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मुकदमों पर जल्द ही फैसला आने वाला था, जिसके सरकार के खिलाफ जाने की संभावना थी. सरकार इतनी बड़ी राशि की संपत्ति अपने कब्जे से जाने देना नहीं चाहती थी इसलिए वह अदालत के फैसले को खारिज करने वाला अध्यादेश पहले ही ले आई. वहीं इंडियन नेशनल लीग के सचिव जमीर अहमद जुमलाना कहते हैं, ‘विधेयक को लाने के पीछे सरकार एक कारण यह भी दे रही है कि भारत और पाकिस्तान के बीच 1966 में शत्रु संपत्ति को लेकर ताशकंद में एक समझौता हुआ था, जिसे तोड़कर पाकिस्तान ने 1971 में अपने यहां मौजूद भारतीय नागरिकों की संपत्तियों को बेच दिया था. यह विधेयक उसी की प्रतिक्रिया है.’ इस पर वह पूछते हैं, ‘जापान पर द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान कोरियन महिलाओं के साथ अत्याचार और उनसे जबरन देह व्यापार करवाने के आरोप लगते हैं, तो क्या अब कोरिया को भी जापानी महिलाओं को चुन-चुनकर उनके साथ यही करना चाहिए? सरकार को करना यह चाहिए था कि वह पाकिस्तान के सामने यह मुद्दा उठाती और उनसे कहती कि उसने तब जिन भारतीयों की संपत्तियों को बेचा, उन्हें वापस अपने अधिकार में ले और भारतीयों को लौटाए या मुआवजा दे. बजाय इसके वह अपने ही नागरिकों को प्रताड़ित कर रही है.’

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