भोपाल : मध्यप्रदेश में बहुजन समाज पार्टी अजा वर्ग को ही अपना वोट बैंक नहीं बना पाई। राज्य में पांच चुनाव बसपा ने लड़े, मगर उसे 2008 के चुनाव में ही 8.72 फीसदी वोट हासिल हुए, इसके अलावा 7 फीसदी और उससे कम मत ही उसे मिलते रहे हैं। मध्यप्रदेश में अजा वर्ग के लिए 35 सीटे आरक्षित हैं
इस वर्ग के लिए आरक्षित सीटें भी कांग्रेस और भाजपा के पक्ष में ज्यादा जाती रही। बसपा इन सीटों पर कभी भी अपना वजूद नहीं जमा पाई। पिछले 2013 के विधानसभा में देखा जाए तो बसपा ने जब 4 सीटों पर विजय हासिल की तो उनमें से सिर्फ 3 सीटें ही अजा वर्ग की थी।
चुनावी इतिहास देखा जाए तो बसपा प्रदेश में अब तक अपने वोट बैंक अजा वर्ग को ही साध नहीं पाई है। बसपा को वर्ष 1990 में 3.53 प्रतिशत वोट मिला था। इसके बाद 1993 में 7.02, 1198 में 6.04, 2003 में 7.26, 2008 में 8.72 और 2013 के विधानसभा चुनाव में 6.29 प्रतिशत वोट ही हासिल हुआ था।
वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में बसपा के 4 विधायक जीते थे और 12 विधानसभा सीटों में उसके प्रत्याशी दूसरे नंबर पर रहे थे। प्रदेश में अजा वर्ग के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 35 है पर इनमें से मात्र 3 सीटें ही बसपा के पास हैं। इनके अलावा लगभग 59 सीटें ऐसी हैं जहां अजा वर्ग का 25 से 30 फीसदी तक वोट माना जाता है।
इन 59 सीटों में ही बसपा 12 पर दूसरे नंबर पर रही है। बसपा जिन 12 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही वे भी सामान्य वर्ग की सीटें थी। इसके अलावा विंध्य और बुंदेलखंड के अलावा ग्वालियर-चंबल अंचल में जहां बसपा का प्रभाव है, वहां पर भी अजा वर्ग की सीटें पर वह जीत के लिए बसपा को अब तक मशक्कत ही करनी पड़ी है।
बहुजन समाज पार्टी द्वारा मध्यप्रदेश में बसपा के कद्दावर नेता फूलसिंह बरैया को जब से पार्टी से हटाया उसके बाद बसपा का वोट बैंक गड़बड़र गया। बरैया ने प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए जमीनी संपर्क बनाकर बसपा को खासा वोट बैंक बढ़ाया था, मगर 2003 के चुनाव के पहले राजनीतिक माहौल कुछ ऐसा बिगड़ा की मायावती ने बरैया को पार्टी से ही निष्कासित कर दिया।
इसके बाद बरैया ने अपने बूते पर पहले समता समाज और अब बहुजन संघर्ष दल के नाम से राजनीतिक दल बनाया। इसके बाद ग्वालियर-चंबल अंचल में बसपा के वोट बैंक में उन्होंने सेंधमारी कर दी, जिसके चलते प्रदेश में बसपा को वोट प्रतिशत नहीं बढ़ पा रहा है।