दंड प्रक्रिया संहिता 1973 ने न्यायालय को उद्घोषणा और कुर्की जैसी अमूल्य शक्ति प्रदान की है। उद्घोषणा एवं कुर्की किसी भी फरार व्यक्ति को न्यायालय में हाजिर करवाने को बाध्य कर देने के उपयोग में लायी जाती है। उद्घोषणा के माध्यम से जिस व्यक्ति के विरुद्ध वारंट जारी किया जाता है उस व्यक्ति को उस स्थिति में फरार घोषित किया जाता है, जब न्यायालय को यह समाधान हो जाता है तथा यह विश्वास कर लिया जाता है कि ऐसा व्यक्ति जिसके विरुद्ध वारंट जारी किया गया है, वह गिरफ्तारी से बच रहा है। ऐसी स्थिति में न्यायालय व्यक्ति को उद्घोषणा के माध्यम से फरार घोषित कर देता है। उसके बाद कुर्की के माध्यम से उसकी जंगम तथा स्थावर संपत्ति को कुर्क कर लिया जाता है। भारत के किसी भी आपराधिक न्यायालय के पास उद्घोषणा एवं कुर्की सबसे अंतिम हथियार है। इस हथियार के माध्यम से न्यायालय फरार व्यक्ति को न्यायालय के समक्ष हाजिर होने के लिए बाध्य करता है। जब न्यायालय इस निर्णय पर पहुंच जाता है कि अब जिस व्यक्ति को न्यायालय में बुलाया जा रहा है वह व्यक्ति न्यायालय में नहीं आना चाहता है और वह सदा के लिए फरार हो चुका है, ऐसी स्थिति में न्यायालय उद्घोषणा और कुर्की का सहारा लेता है। उद्घोषणा (ऐलान) भारतीय दंड संहिता की धारा 82 के अंतर्गत फरार व्यक्ति के लिए उद्घोषणा की जाती है। धारा के अनुसार यदि किसी न्यायालय को चाहे साक्ष्य लेने के पश्चात या लिए बिना या विश्वास करने का कारण है कि कोई व्यक्ति जिसके विरुद्ध उसने वारंट जारी किया है फरार हो गया है या खुद को छुपा रहा है, जिससे ऐसे वारंट का निष्पादन नहीं किया जा सकता है तो ऐसा न्यायलय उससे यह अपेक्षा करने वाली लिखित उद्घोषणा प्रकाशित कर सकता है कि वह व्यक्ति विनिर्दिष्ट स्थान में और विनिर्दिष्ट समय पर जो उस उद्घोषणा के प्रकाशन की तारीख से कम से कम 30 दिन पश्चात का होगा, हाजिर हो। उद्घोषणा के प्रमुख तथ्य (अ) यदि अभियुक्त की गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी किया जा चुका है और यह विश्वास करने के लिए पर्याप्त कारण है कि अभियुक्त फरार हो चुका है अथवा वारंट का निष्पादन नहीं होने देने के लिए स्वयं को छुपा रहा है तो न्यायलय लिखित उद्घोषणा प्रकाशित करके फरार व्यक्ति से अपेक्षा करेगा कि वह स्वयं को न्यायालय के समक्ष उपस्थित करे। इस तथ्य से समझा जा सकता है कि उद्घोषणा तभी की जा सकती है जब व्यक्ति को फरार घोषित कर दिया है। (ब) न्यायालय ऐसे फरार व्यक्ति की संपत्ति को कुर्क कर सकता है। यदि अभियुक्त फिर भी न्यायालय के समक्ष उपस्थित नहीं होता है तो कुर्क की गई संपत्ति राज्य सरकार के अधीन रहेगी तथा राज्य द्वारा उसे विक्रय भी जा सकता है। उल्लेखनीय है कि उद्घोषणा के प्रकाशन की पूर्ववर्ती शर्त के रूप में वारंट का जारी किया जाना आवश्यक है अर्थात वारंट जारी किए बिना उद्घोषणा प्रकाशित नहीं की जा सकती है यदि कोई न्यायालय वारंट जारी करने के लिए प्राधिकृत नहीं है तो उद्घोषणा भी प्रकाशित नहीं कर सकता है। (स) जहां कोई व्यक्ति समन जारी होने के पूर्व ही भारत छोड़ देता है तो यह नहीं कहा जा सकता कि वह न्यायिक प्रक्रिया से बचने के लिए भागा है। ऐसी दशा में उस व्यक्ति के विरुद्ध की गयी उद्घोषणा संबंधी कार्यवाही अपास्त किए जाने योग्य होगी। इसके पश्चात अपनाई गई उत्तरावर्ती कार्यवाही भी अपास्त होगी। फरार होने के तात्पर्य नहीं है कि व्यक्ति किसी एक दिन अपने आवास से अनुपस्थित रहे, उसे फरार तभी माना जाएगा यदि वह सदा के लिए अपने आवास पर नहीं रहता है।पुलिस अभियुक्त के घर जाती है परंतु अभियुक्त नहीं मिल पाता है तो यह नहीं कहा जाता कि अभियुक्त फरार हो गया है। उद्घोषणा प्रकाशित करने की रीति संहिता की धारा 82 की उपधारा 2 के अंतर्गत उद्घोषणा प्रकाशित करने की रीति का उल्लेख है। धारा के अनुसार- (1) उस नगर या ग्राम के जिसमें ऐसा व्यक्ति मामूली तौर पर निवास करता है किसी सहज दृश्य स्थान में सार्वजनिक रूप से पढ़ी जाएगी। (2) उस ग्रह या अवस्थान में जिसमें ऐसा व्यक्ति मामूली तौर पर निवास करता है किसी सहज दृश्य भाग पर या ऐसे नगर या ग्राम के किसी सहज दृश्य स्थान पर लगाई जाएगी। (3) उसकी एक प्रति न्याय सदन के किसी सहज दृश्य भाग पर लगाई जाएगी जिसके द्वारा ऐसी उद्घोषणा जारी की गयी है। यदि न्यायालय ठीक समझता है तो वह यह निर्देश भी दे सकता है कि उद्घोषणा की एक प्रति किसी प्रसिद्ध दैनिक समाचार पत्र में प्रकाशित की जाए जहां ऐसा व्यक्ति मामूली तौर पर निवास करता है। कोई उद्घोषणा तभी वैध मानी जा सकती है जब धारा 82 की उपधारा 2 के अंतर्गत बतायी गयी रीति को न्यायालय द्वारा सम्यक रूप से अपनाया जाता है। कुर्की फरार व्यक्ति के लिए उद्घोषणा हो जाने के पश्चात न्यायालय द्वारा कुर्की की कार्यवाही की जाती है। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 83 के अंतर्गत फरार व्यक्ति की संपत्ति के कुर्की के प्रावधान दिए गए है। धारा 83 के अनुसार धारा 82 के अधीन उद्घोषणा जारी करने वाला न्यायालय ऐसे कारणों से जो लेखबद्ध किये जायेंगे। उद्घोषणा जारी किए जाने के पश्चात विधि द्वारा निर्धारित अवधि में उद्घोषित व्यक्ति की जंगम या स्थावर अथवा दोनों प्रकार की किसी भी संपत्ति की कुर्की का आदेश दे सकता है। देवेन्द्र सिंह नेगी उर्फ़ देबू बनाम उत्तरप्रदेश राज्य 1994 Cri LJ 1783 (All) के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह कहा था कि संपत्ति की कुर्की का आदेश देने के लिए अदालत को धारा 82 के अंतर्गत की गयी उद्घोषणा के पश्च्यात 30 दिन तक का इंतज़ार करना चाहिए जिसके पश्च्यात ही संपत्ति की कुर्की के आदेश दिए जा सकेंगे। उन परिस्थितियों में, जहाँ वह व्यक्ति जिसके सम्बन्ध में अदालत द्वारा उद्घोषणा की गयी है, वह नियत समय पर अदालत में उपस्थित नहीं होता है, तो उसकी संपत्ति राज्य सरकार के व्ययनाधीन हो जाती है (धारा 85, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अनुसार), हालाँकि इस संपत्ति को 6 माह तक नहीं बेचा जा सकता है। संहिता की इस धारा के अंतर्गत एक परंतु दिया गया है। जिस परंतु के अनुसार यदि न्यायालय को शपथ पत्र द्वारा या अन्यथा या समाधान हो जाता है कि जिस व्यक्ति के संबंध में उद्घोषणा की गई है वह व्यक्ति अपनी कोई जंगम या स्थावर संपत्ति को बेच कर फरार होना चाहता है या फिर उस संपत्ति के किसी भाग को बेचना चाहता है यह फिर समस्त संपत्ति बेचना चाहता है तो ऐसी स्थिति में न्यायालय उद्घोषणा जारी करने के साथ ही कुर्की का आदेश भी दे सकता है। जिस जिले में संपत्ति को कुर्क किया जाएगा उसके मजिस्ट्रेट द्वारा पृष्ठांकन किया जाना जिस भी जिले में कुर्क की जाने वाली संपत्ति स्थित है उस जिले के मजिस्ट्रेट द्वारा पृष्ठांकन किया जाना आवश्यक है। संपत्ति को कुर्क करने वाला न्यायालय संपत्ति को कुर्क करने के लिए प्राधिकृत ही उस स्थिति में हो सकता है जब संपत्ति जिस जिले में स्थित है उस जिले का मजिस्ट्रेट पृष्ठांकन करे। कुर्क की जाने वाली संपत्ति यदि जंगम संपत्ति है तो ऐसी स्थिति में रीति कुर्क की जाने वाली संपत्ति यदि जंगम संपत्ति है तो ऐसी स्थिति में अधिग्रहण द्वारा कुर्क की जाएगी या रिसीवर की नियुक्ति द्वारा की जाएगी। या उद् घोषित व्यक्ति को या उसके निमित्त किसी को भी उस संपत्ति का परिधान करने का प्रतिषेध करने वाले लिखित आदेश द्वारा की जाएगी। या फिर निम्न रीति में से सब या किन्हीं दो से की जाएगी जैसा न्यायालय ठीक समझे। कुर्की की जाने वाली संपत्ति यदि स्थावर संपत्ति है तो ऐसी स्थिति में कुर्की यदि वह संपत्ति जिसको कुर्क करने का आदेश दिया गया है स्थावर है तो इस धारा के अधीन कुर्की राज्य सरकार को राजस्व देने वाली भूमि की दशा में उस जिले के कलेक्टर के माध्यम से की जाएगी जिसमें वह भूमि स्थित है तथा अन्य दशा भी हो सकती है। कब्जा लेकर की जाएगी रिसीवर की नियुक्ति द्वारा की जाएगी उद्घोषित व्यक्ति को या उसके निमित्त किसी को भी संपत्ति का किराया देने से उस संपत्ति का प्रदान करने का प्रतिषेध करने वाले लिखित आदेश द्वारा की जाएगी। जो रीति बतायी गयी है इनमें से किन्हीं दो प्रकार से या फिर न्यायालय जैसा ठीक समझे, इन रीतियों में से किसी रीति से कुर्क की जाएगी पर कोई भी कुर्की मनमानी नहीं होगी। कुर्क की गयी संपत्ति की वापसी संहिता की धारा 85 बताती है कि यदि कुर्क की गयी संपत्ति में जिस व्यक्ति के विरुद्ध उद्घोषणा की गई है यदि व्यक्ति बताए गए समय के भीतर उपस्थित हो जाता है तो ऐसी स्थिति में न्यायालय संपत्ति को कुर्की से निर्मुक्ति करने का आदेश देगा। यहां पर न्यायालय को यह स्पष्ट आदेश दिए गए है कि यदि व्यक्ति उद्घोषणा के लिए समय के भीतर हाजिर हो जाता है तो ऐसी परिस्थिति में उसकी कुर्क की गयी संपत्ति को निर्मुक्ति दे दी जाएगी। इसके अलावा यदि उद्घोषित व्यक्ति संपत्ति की कुर्की से 2 वर्ष के भीतर न्यायालय में हाजिर हो जाता है या पकड़ कर लाया जाता है और वह न्यायालय में यह साबित कर देता है कि वह किसी वारंट के निष्पादन से नहीं बच रहा था तो ऐसी परिस्थिति में उसकी कुर्क की गयी संपत्ति या उसकी संपत्ति में से कोई भाग बेच दिया गया है तो उस भाग का मूल्य उस व्यक्ति को परिदान कर दिया जाता है। राज्य सरकार किसी भी कुर्क की गई संपत्ति का विक्रय तभी करता है जब विक्रय करना उद् घोषित व्यक्ति के हित में है अन्यथा उसकी संपत्ति को यथास्थिति में रहने दिया जाता है। संपत्ति के स्वामी के हित में संपत्ति का विक्रय किया जाता है तो ऐसा विक्रय कुर्की की तारीख से 6 माह बीत जाने के बाद ही किया जा सकता है पर जीवधन इत्यादि विक्रय किए जा सकते है या फिर वह संपत्ति जो विनाश्वर है। यदि कोई धारा 85 के अंतर्गत दिए गए किसी आदेश से व्यथित है तो वह आदेश के विरुद्ध उस न्यायालय में अपील कर सकता है जहां ऐसी आपराधिक अपील की जाती है।