तहलका टुडे टीम
दिल्ली यूनिवर्सिटी के फारसी, अरबी और उर्दू डिपार्टमेंट की जानिब से हिंदुस्तान में जामेअतुल मुस्तफा अल-आलमिया के नुमाइंदे हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन डॉ. रज़ा शाकरी के लिए एक रुखसती तक़रीब का इन्तेजाम किया गया। इस तकरीब में यूनिवर्सिटी के अहम अरकान और ओहदेदारों ने शिरकत की।
तक़रीब के आगाज़ में डॉ. अकबर अली शाह ने डॉ. शाकरी का इस्तेकबाल करते हुए तालीम की दुनिया में उनकी बे-लौस (निस्वार्थ) और बेशुमार खिदमतों का ज़िक्र किया और उनकी सराहना की। उन्होंने यूनिवर्सिटी के साथ तअल्लुकात क़ायम करने में डॉ. शाकरी की कोशिशों को सराहा और कहा कि उन्होंने ऐसे मजबूत रिश्ते क़ायम किए हैं जो इससे पहले के नुमाइंदों में कम नज़र आए हैं।
डॉ. शाह ने बताया कि जामेअतुल मुस्तफा अल-आलमिया की तारीख में पहली बार यूनिवर्सिटी कौंसिल का क़ियाम हुआ है और जामेअतुल मुस्तफा और दिल्ली यूनिवर्सिटी के बीच मुआहिदे पर दस्तख़त हुए हैं। इसके तहत “इमाम ख़ुमैनी और महात्मा गांधी की निगाह में मफहूम-ए-हयात” के उनवान से एक मुनअक़िदा कांफ्रेंस हुई जिसमें 600 से ज़्यादा असातिज़ा और तलबा ने हिस्सा लिया। उन्होंने यूनिवर्सिटी में फ़ारसी जबान के फ़रोग़ के लिए की गई कोशिशों का भी तज़किरा किया और इस सिलसिले में डॉ. शाकरी का शुक्रिया अदा किया।
इस तकरीब के दूसरे मुकर्रिर दिल्ली यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर बराए बेनुल-अकवामी उमूर प्रोफेसर चंद्र शेखर ने भी डॉ. शाकरी की कोशिशों की तारीफ़ की। उन्होंने कहा कि दिल्ली यूनिवर्सिटी में उनके दौर-ए-कार के दौरान इस मुआहिदे पर दस्तख़त उनके अहम तरीन कारनामों में से एक है और ये मुआहिदा सिर्फ़ काग़ज़ों तक महदूद नहीं रहा बल्कि इसे अमली शक्ल दी गई है।
फ़ारसी ज़बान व अदब के डीन प्रोफेसर अलीम अशरफ ने भी डॉ. शाकरी का इस्तेकबाल करते हुए फ़ारसी ज़बान के कोर्सेज़ की एहमियत का तज़किरा किया और जामेअतुल मुस्तफा की जानिब से इस सिलसिले के क़ायम रहने की उम्मीद जताई। उन्होंने उम्मीद जताई कि जामेअतुल मुस्तफा तीन महीने के लिए एक फ़ारसी ज़बान के उस्ताद को दिल्ली यूनिवर्सिटी भेजेगा और साथ ही एक मुस्तरका कांफ्रेंस के इनआदाद का इरादा भी रखता है।
तक़रीब के आख़िर में जामेअतुल मुस्तफा के नुमाइंदे डॉ. रज़ा शाकरी ने सबका शुक्रिया अदा किया। उन्होंने कहा कि दिल्ली यूनिवर्सिटी के असातिज़ा और तमाम अमला हमारे साथ हज़रत खिज़र नबी की तरह साथ रहे हैं।
डॉ. शाकरी ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के साथ तआवुन और मुआहिदे पर दस्तख़त का हवाला देते हुए अपनी खुशी का इज़हार किया। उन्होंने बताया कि हम फारसी असातिज़ा को भेजने, कांफ्रेंस मुनअक़िद करने और शॉर्ट कोर्सेज़ शुरू करने के लिए मुकम्मल तौर पर तैयार हैं।