मंज़िले मकसूद: इमाम की मोहब्बत और खुदा पर भरोसा ही असली है रास्ता
बाराबंकी की मजलिस में मौलाना नामदार अब्बास का प्रेरणादायक खिताब
तहलका टुडे टीम/सरवर अली रिजवी
बाराबंकी: जिसको खुदा पर यकीन होता है, वह मैदान में डटकर खड़ा रहता है, जबकि असलहों पर भरोसा करने वाला हमेशा बंकरों में छिपने की कोशिश करता है। यह विचार मौलाना नामदार अब्बास ने बाराबंकी में आयोजित मजलिसे बरसी में व्यक्त किए। मरहूमा अतीया मोहम्मदी के ईसाले सवाब के लिए आयोजित इस मजलिस में मौलाना ने इमाम हुसैन की शहादत, कर्बला की घटना, और उनके संदेशों के प्रति अटूट विश्वास और मोहब्बत की ज़रूरत पर जोर दिया। उनका यह संदेश सुनने वालों के दिलों को छू गया और सभी को उनके द्वारा कही गई बातों में जीवन का असली मकसद नजर आया।
मौलाना नामदार अब्बास ने कहा, “शीयत न कभी खौफजदा थी, न है और न होगी। जिसके दिल में खुदा पर अटूट विश्वास होता है, वह किसी और चीज़ से खौफजदा नहीं होता। हमारा माजी (अतीत) कर्बला है और हमारा मुस्तकबिल (भविष्य) जुहूर पर आधारित है। ऐसे लोग कभी डर का सामना नहीं करते जो इन मूल्यों से जुड़े होते हैं।”
खुदा पर यकीन और इमाम से मोहब्बत: असल राह की कुंजी
मौलाना ने कहा कि मंज़िले मकसूद (लक्ष्य की प्राप्ति) सिर्फ उन्हीं लोगों को मिलती है, जो दुनियावी मोहब्बतों को छोड़कर इमाम से दिल लगाते हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि जब इंसान अपने दिल से दुनियावी इच्छाओं और लालच को निकालकर इमाम की मोहब्बत को अपनाता है, तब ही उसे अपने जीवन का सच्चा मकसद मिलता है।
उन्होंने यह भी कहा कि दिल के अंधे होने से बेहतर है कि इंसान आँख का अंधा हो, क्योंकि जिनके दिल अंधे होते हैं, वे सही और गलत का फर्क नहीं समझ पाते। लेकिन, जो लोग दिल की आँख से देख सकते हैं, उन्हें मंज़िल तक पहुँचने के लिए सहारे की ज़रूरत नहीं होती।
करबला का संदेश: कभी न खत्म होने वाली हिम्मत और यकीन
मौलाना नामदार अब्बास ने कर्बला की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि जिसने कर्बला के संघर्ष को समझा, वह कभी खौफ का शिकार नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि शीयत के अनुयायी हमेशा अपने विश्वास और उसूलों पर कायम रहते हैं और किसी भी विपरीत परिस्थितियों से डरते नहीं।
उन्होंने कहा, “जिन्हें खुदा पर भरोसा होता है, वही सरे मैदान नजर आता है।” मौलाना ने आगे कहा कि इमाम हुसैन की तालीमात हमें सिखाती हैं कि जीवन में किसी भी प्रकार की कठिनाई से डरना नहीं चाहिए, बल्कि उसका सामना करके अपने उसूलों और ईमान पर अडिग रहना चाहिए।
मसायब की प्रस्तुति: आंसुओं में दर्द और वफ़ा का संदेश
मजलिस का अंत मसायब की प्रस्तुति से हुआ, जिसे सुनकर पूरी सभा भावुक हो गई। मौलाना ने जिस अंदाज़ में कर्बला के दर्द और पीड़ा को बयां किया, उसे सुनकर लोग रोने लगे और वहां मौजूद सभी लोग इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत को याद करके ग़मगीन हो गए।
अकीदत की पेशकश
मजलिस का आगाज तिलावते कलाम-ए-पाक से हुआ, जिसे हाजी सरवर अली करबलाई ने प्रस्तुत किया। इसके बाद कशिश सन्डीलवी, बाकर नकवी और अबान सल्लमहू ने भी नज़रानये अकीदत पेश किया। सोज़खान जनाब शकील और नायाब साहब ने बेहतरीन अंदाज में शोजो सलाम पेश किया, जिसने पूरी सभा को एक अलग ही भावना में बांध लिया।
आखिर में बानिये मजलिस ने सभी का शुक्रिया अदा किया।