महात्मा गांधी की जयंती से बेजार जनता: क्या भारत की आवाम गांधीजी के संदेशों को भुला रही है।
तहलका टुडे टीम/सैयद रिजवान मुस्तफा
बाराबंकी। महात्मा गांधी, वह नाम जिसने भारत को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया, आज उनकी जयंती पर देशभर में उदासीनता का माहौल देखने को मिल रहा है। बाराबंकी की 40 लाख से अधिक की आबादी वाले शहर में महात्मा गांधी भवन में आयोजित गांधी जयंती समारोह में 1000 लोग भी नहीं पहुंचे, जो समाज के भीतर पनप रही उदासीनता और गांधीजी के प्रति अवहेलना को दर्शाता है। जहां स्कूल और सरकारी कार्यालयों में यह दिन सिर्फ एक औपचारिकता तक सिमट कर रह गया है, वहीं व्यापक स्तर पर लोगों की भागीदारी में भारी कमी दर्ज की गई।
महात्मा गांधी, जिन्होंने सत्य, अहिंसा और स्वराज के मार्ग पर चलकर भारत को स्वतंत्रता दिलाई, आज उनके विचार और सिद्धांत समाज से कहीं खो से गए हैं। क्या गांधीजी के विचारों को भुला देना और उनकी जयंती को केवल औपचारिकता तक सीमित कर देना भारत की आवाम के लिए भविष्य में खामियाजा साबित हो सकता है?
स्वदेशी का संदेश और गांधीवादी मूल्यों की जरूरत
पूर्व मंत्री और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव अरविन्द कुमार सिंह गोप ने गांधी भवन में गांधीजी की 155वीं जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में उनके योगदान को याद किया। गोप ने गांधीजी की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की और चरखा चलाकर स्वदेशी का संदेश दिया। इस अवसर पर उन्होंने गांधीजी के दिखाए सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा, “गांधीजी का आत्मबल ही था जिसने स्वाधीनता संग्राम को एक नई प्राणवायु दी। उनका हर विचार उनके कर्म की कसौटी पर खरा उतरता है।”
गोप की इस नसीहत में वह सच झलकता है जिसे आज के समाज ने दरकिनार कर दिया है। गांधीजी के विचार न केवल भारत की आजादी का आधार थे, बल्कि वह एक बेहतर समाज की नींव भी थे। फिर आज हम क्यों उनके मूल्यों और विचारों से दूर होते जा रहे हैं?
क्यों कार्यक्रमों से बनाता है जनता दूरी?
महात्मा गांधी जैसे महापुरुष की जयंती पर भीड़ का न जुट पाना इस बात का संकेत है कि समाज में गांधीजी के सिद्धांतों के प्रति जागरूकता और सम्मान की कमी हो रही है। क्या नई पीढ़ी गांधी के विचारों को उस रूप में समझ पा रही है जैसे उन्हें समझना चाहिए? भाजपा नेता और वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. विवेक सिंह वर्मा ने इस बात पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा, “आज की पीढ़ी गांधीजी के विचारों से दूर हो रही है। हमें यह जिम्मेदारी उठानी होगी कि हम गांधी के सिद्धांतों को नए तरीके से युवाओं तक पहुंचाएं।”
यह चिंतन का विषय है कि जिस गांधीजी ने देश को स्वराज का मार्ग दिखाया, आज उनकी जयंती पर 40 लाख की आबादी वाले शहर में 1000 लोग भी नहीं पहुंचे। क्या यह गांधीजी की शिक्षाओं की उपेक्षा है, या समाज का खुद से ही विमुख हो जाना?
गांधी के सपनों का भारत अभी भी अधूरा
गांधीवादी विचारक और गांधी जयंती समारोह ट्रस्ट के संयोजक पंडित राजनाथ शर्मा ने गांधी के सपनों के भारत की बात की। उन्होंने कहा, “डॉ. राममनोहर लोहिया का समाजवादी दर्शन ही गांधी का रामराज्य था। गांधीजी ने दुनियाभर के चिंतकों को अपने विचारों से प्रभावित किया। आज भी गांधीजी का सपना अधूरा है और हमें इसे साकार करने के लिए बहुत लंबा सफर तय करना है।”
पंडित राजनाथ शर्मा का यह दृष्टिकोण एक मजबूत नसीहत देता है। गांधी के रामराज्य का सपना आज भी जिंदा है, लेकिन क्या हम उस सपने को पूरा करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, या गांधीजी के विचारों से दूर होते जा रहे हैं?
क्या भारत भुगतेगा इस अवहेलना का खामियाजा?
महात्मा गांधी के अहिंसक संघर्ष ने जिस देश को स्वतंत्रता दिलाई, उस देश की नई पीढ़ी आज उनके विचारों को दरकिनार कर रही है। सत्य, अहिंसा, और स्वदेशी जैसे विचार आज केवल भाषणों तक सीमित हो गए हैं। क्या समाज इस उदासीनता और अवहेलना का खामियाजा भविष्य में भुगतेगा? क्या हम गांधीजी के उस पैगाम को नहीं समझ पाए, जिसमें उन्होंने एक बेहतर समाज का निर्माण करने का सपना देखा था?
गांधी भवन में कार्यक्रम का आयोजन
बाराबंकी के गांधी भवन में आयोजित इस कार्यक्रम में बालाजी का बचपन स्कूल की छात्राओं ने गांधी भजन और राम धुन की मनमोहक प्रस्तुति दी, जिसे लोगों ने खूब सराहा। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे समाजसेवी मो. उमैर किदवई ने गांधीजी के मानवता और दया पर आधारित विचारों की प्रासंगिकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “महात्मा गांधी सत्य के बाद मानवता के हामी थे। उनकी मानवता दया एवं परोपकार पर आधारित थी। गांधीजी कल भी प्रासंगिक थे, आज भी हैं, और कल भी रहेंगे।”
इस मौके पर प्रमुख रूप से रामनगर विधायक फरीद महफूज किदवई, पूर्व विधायक सरवर अली खान, समाजसेवी अंकुर माथुर, साझी विरासत के संयोजक परवेज अहमद, वरिष्ठ कांग्रेस नेता शिवशंकर शुक्ला, और भाजपा नेता डॉ. विवेक सिंह वर्मा सहित कई गणमान्य लोग मौजूद रहे।
महात्मा गांधी की जयंती पर समाज में यह बहस जरूरी है कि क्या हम उस रास्ते पर हैं जो गांधीजी ने दिखाया था। गांधीवादी मूल्यों को केवल औपचारिकताओं तक सीमित कर देना समाज के लिए घातक हो सकता है। अगर हम इन मूल्यों को जीवन में नहीं उतारते हैं, तो वह दिन दूर नहीं जब गांधी के आदर्श केवल इतिहास की किताबों तक ही सीमित रह जाएंगे।
बाराबंकी में इस वर्ष का गांधी जयंती समारोह न केवल महात्मा गांधी की शिक्षाओं को याद करने का मौका था, बल्कि यह हमें इस सवाल पर भी विचार करने के लिए मजबूर करता है कि क्या हम उनकी विरासत का सही तरीके से निर्वहन कर रहे हैं।