नही रहे सहारा श्री सुब्रत रॉय: जानिए स्कूटर से लेकर प्लेन तक के सफर की दिलचस्प ज़िन्दगी की कहानी,जो भ्रष्ट सियासत दानों और नौकर शाहों का शिकार हो गए
तहलका टुडे टीम
सहारा श्री काफ़ी समय से वरंटिया बीमारी से ग्रसित चल रहे थे।उनका सियासतदानों और नौकर शाहों ने मिलकर जीना हराम कर दिया था उन्हें कैंसर हो गया था। उनके ब्रेन की सर्जरी हुई थी इसी साल जनवरी में। मुंबई के एक अस्पताल में आज उनका निधन हुआ। उनके निधन की सूचना से पूरे सहारा परिवार में शोक की लहर दौड़ गई। कल उनका पार्थिव शरीर लखनऊ के सहारा शहर लाया जायेगा जहां उन्हें अंतिम श्रद्धांजलि दी जाएगी।
सुब्रत रॉय का जन्म 10 जून 1948 को भारत के एक व्यवसायी परिवार में हुआ था। उन्होंने सहारा इण्डिया की स्थापना की। वे ‘सहाराश्री’ के नाम से भी जाने जाते हैं। इण्डिया टुडे ने उनका नाम भारत के दस सर्वाधिक शक्तिसम्पन्न लोगों में शामिल किया था।
उन्होने सन् 1978 में सहारा इण्डिया परिवार की स्थापना की। सन् 2004 में टाइम पत्रिका ने सहारा समूह को भारतीय रेल के बाद दूसरा सबसे बड़ा नियोक्ता बताया था। वे पुणे वॉरियर्स इंडिया, ग्रॉसवेनर हाउस, एमबी वैली सिटी, प्लाजा होटल, ड्रीम डाउनटाउन होटल के मालिक थे। सहारा श्री एक बंगाली परिवार से सम्बंध रखते है।
रॉय का जन्म 10 जून 1948 को बिहार के अररिया जिले में सुधीर चन्द्र रॉय /छबि रॉय के घर हुआ था। पश्चिम बंगाल उनका मूल निवास था। उन्होंने कोलकाता के होली चाइल्ड स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद राजकीय तकनीकी संस्थान गोरखपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया। उन्होने 1978 में गोरखपुर से अपना व्यवसाय प्रारंभ किया।
रॉय ने 1978 में गोरखपुर में सहारा इंडिया परिवार की स्थापना की, जिसके वे प्रबंध कार्यकर्ता (प्रबंध निदेशक) और चेयरमैन थे।यह भारत की एक बहु-व्यापारिक कंपनी है, जिसके कार्य वित्तीय सेवाओं, गृहनिर्माण वित्त (हाउसिंग फाइनेंस), म्युचुअल फंडों, जीवन बीमा, नगर-विकास, रीयल-इस्टेट, अखबार एवं टेलीविजन, फिल्म-निर्माण, खेल, सूचना प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य, पर्यटन, उपभोक्ता सामग्री सहित अनेकों क्षेत्रों में फैला हुआ है।
सुब्रत राय पर बहुत सारे आरोप लगे। उन्हें जेल जाना पड़ा। निवेशकों का पैसा अब भी सरकार निवेशकों के पैसे दिला रही है।
सुब्रत को जानने वाले बताते हैं कि वह शुरू से ही पढ़ाई में कमजोर थे। उनका मन पढ़ने से ज्यादा अन्य बातों में लगता था। एक छोटे से शहर से बिजनेस शुरू करने वाले इस शख्स ने 36 सालों में दुनिया भर में अपना कारोबार फैला लिया। 1978 में सहारा की शुरुआत के समय सुब्रत रॉय की जेब में महज 2000 रुपये ही थे।
सुब्रत को 70 के दशक से जानने वाले लोग बताते हैं कि तब वह गोरखपुर में एक स्कूटर से चलते थे। तब दिन में 100 रुपये कमाने वाले लोग उनके पास 20 रुपये जमा करते थे। सुब्रत रॉय ने स्वप्ना रॉय से प्रेम विवाह किया है। सुब्रत रॉय के साथ उनके स्कूल, कॉलेज में साथ पढ़े करीब 100 दोस्त भी काम करते हैं।
देश-विदेश तक फैला कारोबार
गोरखपुर से शुरू किया सफ़र लखनऊ होते हुए अब विदेशो तक पहुंच चुका है, लेकिन इन सबके बावजूद विवाद सहारा का पीछा नहीं छोड़ रहे हैं। निवेशकों के चौबीस हजार करोड़ का हिसाब देने के मामले में जब से कोर्ट का डंडा सहारा पर चला है तभी से सुब्रत रॉय सहारा के पक्ष में खड़ी वकीलों की फ़ौज सुप्रीम कोर्ट को कानूनी दांव पेच में मदद करने में जुटी रही।
यदि देखा जाए तो देश से लेकर विदेश तक सहारा समूह की कई करोड़ों की प्रोपर्टी फैली हुई है। इसके अलावा, सुब्रत रॉय सहारा की कर्मभूमि रही लखनऊ में भी कई प्रोपर्टी हैं, लेकिन सबसे ज्यादा विवादों में रहे सहारा स्टेट को ‘सहारा श्री’ अपनी राजनीतिक पहुंच का इस्तेमाल करते इसके विवादों को टालते रहे।
सहारा स्टेट सुब्रत रॉय का था ड्रीम प्रोजेक्ट
सहारा ने लखनऊ के पॉश इलाके गोमती नगर के विपुल खंड और देश में विख्यात मायावती के सपने के तौर पर प्रचलित और दलित वर्ग के स्वाभिमान के तौर पर स्थापित अंबेडकर स्मारक के बगल में मौजूद 170 एकड़ जमीन को यह कह कर एलॉट करने का अनुरोध किया कि वह इस भूमि पर आवासीय, व्यावसायिक और हरित पट्टी विकसित करेंगे।
दरअसल, लखनऊ के गोमतीनगर में बना सहारा स्टेट सुब्रत रॉय का ड्रीम प्रोजेक्ट था, लेकिन अपने इस ड्रीम प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए सहारा ने हेरफेर का सहारा लिया। गोमतीनगर में मायावती के ड्रीम प्रोजेक्ट अंबेडकर पार्क के बगल में सहारा ने 170 एकड़ जमीन आवासीय, व्यावसायिक और हरित पट्टी विकसित करने के नाम पर एलॉट करवाई थी। इस सहारा शहर में राजनेता, अभिनेता और बड़े-बड़े प्लेयर्स तो जा सकते हैं लेकिन लखनऊ का आम आदमी नहीं घुस सकता है।
करीब 20 पहले नगर निगम ने जारी किया था कारण बताओ नोटिस
जब यह सहारा शहर बना तब भी इसकी खूब चर्चा हुई थी, लेकिन जब जिम्मेदार अधिकारियों ने इसका निरीक्षण किया तो उ तब तक देर हो चुकी थी। नगर निगम ने कार्यवाही करते हुए सहारा द्वारा निर्धारित शर्तों का अनुपालन न करने और लीजडीड और अनुज्ञप्ति अनुबंध दिनांक 22.10.1994 को लखनऊ नगर निगम द्वारा कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया।
नगर निगम की लापरवाही तब तक सुब्रत रॉय सहारा के लिए संजीवनी का काम कर चुकी थी। नोटिस मिलने के बाद सहारा ने भी देर ना करते हुए नोटिस के विरुद्ध न्यायालय सिविल जज सीनियर डिवीजन के यहां वाद दाखिल कर दिया। सहारा यहीं नहीं रुके उसने उच्च न्यायलय की लखनऊ खंडपीठ में आर्बिटेशन मध्यस्था दाखिल कर दिया। जिस पर हाईकोर्ट ने दिनांक 20.11.2009 को अवकाश प्राप्त न्यायाधीश कमलेश्वर नाथ को आर्बिट्रेटर मध्यस्थ नियुक्त कर दिया और आर्बिटेशन की अनुमति प्रदान कर दी। आर्बिटेशन वाद आज भी कोर्ट में विचाराधीन है। इस कार्यवाई में एक दशक से ज्यादा का समय बीत चुका है,
मायावती के कार्यकाल में नगर निगम ने की थी कार्रवाई
सहारा के कंधे पर जब तक मुलायम का सहारा रहा तब तक कोई दिक्कत नहीं हुई, लेकिन जैसे ही 2007 में सत्ता परिवर्तन हुआ तो मायावती की निगाहें ‘सहारा श्री’ पर टेढ़ी हो गई। नगर निगम ने कार्यवाई करते हुए सहारा स्टेट के बड़े-बड़े दरवाजों पर नोटिस चस्पा कर दिया गया और उसकी बड़ी-बड़ी दीवारे गिराई भी गई, लेकिन सहारा को इससे कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ा।
बहरहाल, यह तो रही सुब्रत रॉय सहारा के विवादों की एक झलक। टीम इंडिया से स्पॉंसरशिप जाने के बाद जहां सहारा की साख पर बट्टा लगा है वहीं, पुणे वॉरियर्स की फ्रेंचाइजी भी निरस्त हो चुकी है। ऐसे में ‘सहारा श्री’ के खिलाफ गैर जमानती वारंट आग में घी का काम कर रहा था,जो आज उनकी ज़िंदगी के खात्मे का सबब बना।